हजारीप्रसाद द्विवेदी के पत्र

प्रथम खंड

संख्या - 95


IV/ A-2091

काशी विश्वविद्यालय

  25.7.50

श्रध्देय पंडित जी,

              सादर प्रणाम

       आपका कृपापत्र मिल गया है। मैं लगभग एक सप्ताह से यहाँ आ गया हूँ। काम-काज करने लगा हूँ। आपको पत्र लिखने का साहस नहीं कर रहा था। शान्तिनिकेतन को छोड़ना अपराध-सा लग रहा है। वहाँ मुझे इतना प्यार मिला था कि क्या बताऊँ। फिर भी मैं यहाँ चला आया। यहाँ का वातावरण एकदम भिन्न है। मैं फिर आपको विस्तारपूर्वक लिखूँगा। अभी आपसे विशेष भाव से निवेदन है कि मालवीय जी की जीवनी के विषय में एक मोटी सी रुपरेखा तैयार कर दें। मेरे इधर खींचने का एक बड़ा कारण उस जीवनी का लिखना भी है। सामग्री नहीं के बराबर है। आपको भिजवाए पत्र मुझे मिल गए हैं। पं. गोविन्द मालवीय जी अस्वस्थ हैं। फिर भी काम करते रहते हैं। आप जब उन्हें पत्र लिखें तो लिख दें कि वे कुछ विश्राम अवश्य कर लें। आपका लेख और विस्तृत पत्र शीध्र ही भेजूँगा।

       परिवार के लोग भी कल यहाँ आ गए हैं। चाय पीने अवश्य पधारें। दार्जिलिंग से एक बहन ने बड़ी सुन्दर चाय भेजी है। उसका आस्वाद तो आपको अवश्य कर लेना चाहिए।

हजारी प्रसाद

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© इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र १९९३, पहला संस्करण: १९९४

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प्रकाशक : इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, नई दिल्ली एव राजकमल प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली