The Illustrated Jataka : Other Stories of the Buddha by C.B. Varma
075 - The Four Sights / चार दृश्य

ज्योतिषियों की भविष्यवाणी सुन राजा सुद्धोदन ने सिद्धार्थ गौतम को एक चक्रवर्ती सम्राट बनाना चाहा ; न कि एक बुद्ध। अत: संन्यास और बुद्धत्व के सारे मार्ग अवरुद्ध कर उन्होंने सिद्धार्थ को एक योग्य राजा बनने की समस्त सुविधाएँ उपलब्ध करायी।

राजकुमार सिद्धार्थ जब उनतीस वर्ष के हो गये तो देवों ने उनके सम्बोधि-काल को देख उन्हें राज-उद्यान में भ्रमण को प्रेरित किया। वहाँ उन्होंने लाठी के सहारे चलते एक वृद्ध को देखा। तब उन्हें यह ज्ञान हुआ कि वे भी एक दिन वैसे ही हो जाएंगे ; सभी एक दिन वैसी ही अवस्था को प्राप्त होते हैं। 
वितृष्ण-भाव से वे तब प्रासाद को लौट आये। जब राजा को उनकी मनोदशा का ज्ञान हुआ तो उन्होंने राजकुमार के भोग-विलास के लिए और भी साधन जुटा दिये। किन्तु सांसारिक भोगों में राजकुमार की आसक्ति और भी क्षीण हो चुकी थी।

दूसरे दिन राजकुमार फिर से उद्यान-भ्रमण को गये। वहाँ उन्होंने एक रोगी व्यक्ति को देखा। उसकी अवस्था देख उन्हें यह ज्ञात हुआ कि हर कोई जो जन्म लेता है रोग का शिकार भी होता है। एक सम्राट भी रोग-मुक्त नहीं रह सकता। संसार का यह सत्य है।

तीसरे दिन भी सिद्धार्थ उद्यान-भ्रमण को गये। वहाँ उन्होंने एक मृत व्यक्ति को देखा। तब उन्हें ज्ञात हुआ कि मृत्यु भी एक सत्य है। जो प्राणी जन्म लेता है एक दिन मरता भी है। उसके समस्त साधन जो उसके शरीर और अहंकार आदि प्रवृत्तियों को तुष्ट करते हैं और जिन्हें वह उपने जीवन का सार समझता है, वस्तुत: निस्सार हैं। हर मनुष्य राजा या रंक अपने मोह, अज्ञान और प्रमाद में उन्हें ही सार समझ अपना समस्त जीवन निस्सार को ही पाने में व्यर्थ गँवा देता है। मृत्यु ही वह कसौटी है जो चिता की धूमों से आसमान में यह लिख देता है कि जाने वाला सम्राट या फकीर संसार से क्या लेकर जाता है।

अगला दिन आषाढ़-पूर्णिमा का दिन था। उस दिन भी सिद्धार्थ उद्यान-भ्रमण को गये। मार्ग में उन्होंने एक संन्यासी को देखा। सारथी धन्न से उन्हें ज्ञात हुआ कि संन्यासी संसार की सारहीनता को समझ संसार से विरक्त हो सत्य और सार के अन्वेषी होते हैं। धन्न की बातें सुन गौतम के मन में संन्यास का औत्सुक्य जागृत हुआ और वे भी संन्यास वरण को प्रेरित हुए।

जब वे अपने महल को लौट रहे थे तो मार्ग में उन्हें यह सूचना मिली कि वे एक नवजात शिशु राहुल के पिता बन चुके थे। थोड़ा आगे बढ़ने पर उन्होंने राजपरिवार की एक महिला दिसीगोतमी को गाते सुना " --------------निवृत्त हुई अब तो वह माता।ट्" सिद्धार्थ के लिए " निवृत्ति" तो इस सांसारिकता के अर्थ में थी। प्रसन्न मन उन्होंने अपने गले से मोतियों का हार निकाल कर उस भद्र महिला को भिजवा अपनी कृतज्ञता का ज्ञापन किया ; क्योंकि दिसीगोतमी ने उन्हें झ्रसंसार ठनिवृत्ति' का संदेश जो दिया था। 

K ing Suddhodhana took every precaution to prevent Siddhattha from any sight, which could inspire him to become an ascetic ever since he was born.

When prince Siddhattha was twenty-nine, the devas felt that it was time for him to attain Enlightenment. So, they instilled a desire in his heart to visit the park. On the way, he encountered an old man, who wass walking with the help of a stick. Shocked with the stark reality - that everybody becomes old and no mortal can escape it - he returned home in serious mood.

When the king learnt of his mental shock he made every object of mundane pleasure available to his son.. Nonetheless, the prince was not interested in the worldly pleasure. Next day, he again went to the park. There he saw a sick person; and felt that disease too, is a reality of life, which no one can escape. On the third day, he saw a corpse; and realised that death is another reality, which no one can escape. Thus, he realised the triviality of the mundane life, which is bound to crumble; because if one is born one would undergo the process of ageing, sickness, death and all kinds of suffering. Even the mightiest of all monarchs are not capable of overpowering those realities of life.

Next, on the full-moon day of Asalha he saw an ascetic. Curious, he asked his charioteer Channa about the identity of the person. Channa then informed him that the person was an ascetic, who had renounced the world in pursuit of eternal bliss. He also praised the ideals of an ascetic. The ascetics resolution to renounce the worldly life in quest of the truth infused greater happiness in his heart and inspired him to lead the life of an ascetic.

Siddhattha watching an old-man  

Siddhattha on chariot, the Thai version

Upon his return to the city, he received the news of the birth of his son Rahula. When advanced further to the palace to see his newly born babe, he heard the royal lady Kisagotami singing out of joy at his graceful appearance. The song -   Nibbutta nuna sa mata is very popular and is identified as Nibbuta Pada in the tradition. The word Nibbuta , which referred to the delivery of the mother in the above statement was interpreted by Siddhattha as Deliverence from the webs of worldly life. Rejoicing at the song Gotama took off his pearl necklace and sent it to the lady as a token of gratitude for having sung such a song.

 


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