The Illustrated Jataka : Other Stories of the Buddha by C.B. Varma
084 - The Savatthi Miracles / सावत्थि चमत्कार 

चमत्कार बुद्ध कथाओं व आख्यायिकों का महत्त्वपूर्ण अंग है। बुद्ध के जन्म के साथ अनेकों अद्भुत, दैविक एवं चमत्कारिक घटनाओं का प्रचुर आख्यान अनेकों स्थान पर उपलब्ध व प्रचलित हैं।

एक बार भिक्षु पिण्डोल भारद्वाज राजगृह में भ्रमण कर रहे थे। वहाँ उन्होंने एक श्रेष्ठी को एक ऊँची यष्टि पर चंदन की लकड़ी का एक कटोरा लटकवाते देखा। कारण पूछने पर उन्हें ज्ञात हुआ कि उस श्रेष्ठी को न तो आध्यात्मिक सिद्धियों पर विश्वास था और न ही किसी सिद्ध संयासी पर। अत: संयासियों का माखौल उड़ाने के उद्देश्य से उसने उस बाँस के लंबे डंडे पर वह कटोरा लटकवाया था। भिक्षु पिण्डोल भारद्वाज ने श्रेष्ठी के अभिमान को दूर करने के लिए उड़ते हुए उस बाँस के शीर्ष पर से चंदन के उस कटोरे को उतार लिया।

बुद्ध ने जब भिक्षु पिण्डोल भारद्वाज द्वारा राजगीर में दिखाए गये उस रास्ते चमत्कार की चर्चा सुनी तो उन्होंने भिक्षुओं को जनसाधारण को बीच चमत्कार न दिखाने का आदेश दिया।

तत: कई छोटे-मोटे संयासी लोगों को अपने चमत्कार दिखा कर प्रभावित करते और बौद्धों को पाखण्डी घोषित करते क्योंकि बौद्ध भिक्षुओं ने लोगों के समक्ष चमत्कार दिखाना बंद कर दिया था।

जब मगध-राज बिम्बिसार को इसकी सूचना मिली तो वे बुद्ध के पास पहुँचे और उनसे श्रावस्ती में चमत्कार दिखाने की प्रार्थना की। चूँकि गौतम बुद्ध के पूर्वोत्तर बुद्धों ने भी श्रावस्ती में चमत्कार दिखाए थे। अत: गौतम ने भी बिम्बिसार की प्रार्थना स्वीकार की और श्रावस्ती में अपने चमत्कार दिखाये।

वहाँ उन्होंने रत्नों की एक छत बनाई और उड़ते हुए उस पर पहुँच चक्रमण करने लगे। तत: कुछ प्रचलित लोक-मान्यताओं के अनुसार उन्होंने स्वयं को हजार रुपों में एक साथ ही प्रकट किया। फिर अन्य बुद्धों की तरह ही तीन पगों में तावलिंस लोक पहुँच गये।

बुद्ध को इन चमत्कारों से उनके आलोचक श्रावस्ती छोड़ भाग खड़े हुए। कहा जाता है कि पूरण कस्सप ने भी तभी श्रावस्ती छोड़ा और रास्ते में उनका अन्तकाल हुआ था। 

N arratives on miracles are integrated with the Buddhas life and legends ever since he was born.

The Buddha, however, did not approve of the public demonstrations of the miracles, particularly after the report of the Pindola Bharadvajas feat at Rajagaha. There, Pindola had accepted the challenge of a merchant, who by placing a sandal-wood bowl on a high pole had ridiculed and challenged all holy persons to bring that down. Accepting the challenge, Pindola flew in the air and brought that down to the sheer amazement of all the gazers.

King Bimbisara requesting the Buddha to demonstrate his power in Savatthi to refute the heretics

Showing the miracle at Savatthi Buddha manifested in myriad forms in one time as is popularly believed in India

Since then, the Buddha laid down a rule for the monks to refrain from the demonstration of the miracles in public. Capitalising on the monks abstinence from the miracles the heretics started speaking ills of the Buddha and his followers.

King Bimbisara, however, was hurt with the news and had visited the Buddha to request him to accept the challenge by demonstrating miracles. So, following the tradition of earlier Buddhas, who had demonstrated their miracles in Savatthi, he, too, reached Savatthi and demonstrated the miracles on the foot of the gandamba tree on the full-moon day of Asalha. (This was the seventh year of his Enlightenment).

To convince the heretics, the Buddha created a jewelled terrace in the air and walked on it. Further, he made his appearance in thousand forms according to some tradition. His miracles made many heretics flee from Savatthi. This was the time when Purana Kssapa, too, fled but died on the way.

After the conclusion of the Savatthi miracles he landed on Tavatimsa Loka, in three strides, following the example of the preceding Buddhas.

 

See Dhammapada Atthakatha iii.20; Theragatha 1.244; Udana Atthakatha 252;

 


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