The Illustrated Jataka : Other Stories of the Buddha by C.B. Varma
095 -   The Spiritual Journey of Janapada Kalyani / जनपद कल्याणी की आध्यात्मिक यात्रा

जब नन्द के प्रत्यावर्तन की सभी आशाएँ विफल हो गईं, तो शनै:-शनै: जनपद कल्याणी इस दु:ख से उबरने लगीं। थोड़े समय बाद, उन्हें लगा कि उनका सम्पूर्ण जीवन व्यर्थ और उद्देश्यहीन हो चुका है, सो उन्होंने संघ में शरण लेने का विचार बनाया। पजापति के निर्देशन में उन्होंने सांसारिक जीवन का परित्याग कर दिया और संघ में शरण ले ली। तब तक बुद्ध ने संघ में भिक्षुणियों के प्रवेश की अनुमति दे दी थी।

यद्यपि उन्होंने संसार-त्याग कर दिया था पर अपने शरीर के प्रति उनका मोह कम नहीं हुआ था। अपने शारीरिक सौष्ठव का गर्व सदा उनमें पलता रहता। अपि च, शारीरिक सौन्दर्य सहित अन्य सभी सांसारिक वस्तुओं की अनित्यता को रेखांकित करते बुद्ध-वचनों को सुनने की वे हिम्मत न करतीं। साथ ही, उन्होंने यह भी कभी नहीं सोचा कि उनकी अप्रतिम सुन्दरता एक दिन धूमिल हो जाएगी।

फिर भी, एक दिन, मठ की अन्य भिक्षुणियों के साथ वे बुद्ध के उपदेशों को सुनने चली ही गईं। बुद्ध ने उनका मन पढ़ लिया था। अत: उन्होंने एक अति लावण्यमयी आकृति का निर्माण किया जो उनके सम्मुख उस दिन प्रवचन के समय चँवर डुलाती रही।

उपदेश के दौरान भी, जनपद कल्याणी अपने लावण्य के प्रति काफी सजग रहीं और इसी विषय में सोचतीं रहीं। पर जैसे-जैसे बुद्ध का उपदेश आगे बढ़ा, उन्होंने अपने को तेज़ी से बूढ़ा होते पाया और वे वृद्धत्व की चरम सीमा तक पहुँच गईं; उनकी त्वचा पर झुर्रियाँ पड़ गईं, बाल सफेद हो गए, स्तन लटक गए और अचानक लोगों की अब तक लोलुप आँखों के भाव बदल गए। फिर उन्होंने स्वयं को मृत देखा और देखा कि उनका शरीर मात्र एक मल-पिण्ड है। इस दृश्य ने उन्हें आध्यात्मिक रुप से उन्नत किया और वो एक सोतपन्न बन गईं। बाद में बुद्ध के कायाविच्छन्दिक सुत्त (शरीर के क्षरण की प्रक्रिया पर प्रवचन) को सुनकर, उन्होंने अर्हत् पद प्राप्त किया।

W hen all hopes of Nandas return withered away, Janapada Kalyani gradually recovered from her trauma. Further, in course of time, she felt that her entire life was going to be a waste, and there was nothing very significant for her to pursue, she, too, decided to join the Order. So, she renounced the worldly life under the guidance of Pajapati joined the Order because by then the Buddha had allowed the admission of the nuns in his Sangha.

Though she renounced the world yet, her attachment to her body was intense. She still fostered her pride for her physical beauty. Further, she never dared to listen to the Buddhas sermons, which highlighted the transience of all worldly phenomena including the physical beauty. Besides, she never allowed the thought that her surpassing beauty would fade one day.

Nonetheless, one day, she visited the Buddha to hear his preaching along with other nuns of the monastery. The Buddha had known her mind. So, he created the form of the most gorgeous maiden, who stood fanning him before he started his discourse that day.

When listening to the discourse Janapada Kalyani was still quite conscious of her beauty and was thinking about it. But when the sermon of the Buddha progressed, she saw herself ageing fast and reaching the stage of extreme old age, with all her skins wrinkled; hair turning grey; drooping of the firmness of her breasts; and the sudden change in the peoples gaze, which was no longer lustful. Further, passing through that stage she saw herself dead; and her body decomposed to become a mass of filth. This demonstration made her spiritually elevated and she became a Sotapanna. Laater, upon hearing the Buddhas Kayavicchandika Sutta (The discourse on the process of the decomposition of the body) she attained arahatahood .

Janapada Kalyani (right)

See Samyutta Nikaya iv.341; Udana Commentary 170; Jataka 1.394; Majjhima Nikaya i.387; Dhammapada Atthakatha i.105; Theragatha Atthakatha i.318.

 


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