The Illustrated Jataka : Other Stories of the Buddha by C.B. Varma
097 -   Vipassi Buddha / विपस्सी बुद्ध    

पालि परम्परा में विपस्सी उन्नीसवें बुद्ध माने जाते हैं। उनका जन्म बन्धुमती के खेम-उद्यान में हुआ था। उनकी माता का नान भी बन्धुमती था। उनके पिता का नाम बन्धुम था, जिनका गोत्र कोनडञ्ञ था। उनका विवाह सूतना के साथ हुआ था जिससे उन्हें समवत्तसंघ नामक पुत्र की प्राप्ति हुई थी।

एक रथ पर सवार हो उन्होंने अपने गृहस्थ-जीवन का परित्याग किया था। तत: आठ महीने के तप के बाद उन्होंने एक दिन सुदस्सन-सेट्ठी की पुत्री के हाथों खीर ग्रहण कर पाटलि वृक्ष के नीचे बैठ सम्बोधि प्राप्त की। उस वृक्ष के नीचे उन्होंने जो आसन बनाया था उसके लिए सुजात नामक एक व्यक्ति ने घास दी थी।

सम्बोधि प्राप्ति के बाद उन्होंने अपना पहला उपदेश अपने भाई संघ और अपने कुल पुरोहित पुत्र-लिस्स को खोयमित्रदाय में दिया था। अशोक उनके मुख्य उपासक थे तथा चंदा एवं चंदमिता उनकी मुख्य उपासिकाएँ थी। पुनब्बसुमित्त एवं नाग उनके मुख्य प्रश्रयदाता तथा सिरिमा एवं उत्तरा उनकी प्रमुख प्रश्रयदातृ थीं। अस्सी हजार वर्ष की अवस्था में वे परिनिवृत हुए।

विपस्सी बुद्ध के काल में बोधिसत्त अतुल नामक नागराज के रुप में जन्मे थे। तब उन्होंने विपस्सी बुद्ध को एक रत्न-जड़ित स्वर्ण-आसन प्रदान करने का गौरव प्राप्त किया था।

Vipassi Buddha on the panel Cave 17, Ajanta  

I n the Pali tradition Vipassi Buddha is identified as the nineteenth of the twenty-four Buddhas. Born of the father Bandhuma and mother Bandhumati in the Khema Park at a place called Bandhumati he belonged to the Kondanna clan ( gotta ). He was married to Sutana and had a son Samavattakkhandha.

  He renounced the worldly life on chariot; and practised austerities for eight months. Then he sat on the foot of the patali tree; and just before his Enlightenment he accepted the milk-rice from Daughter-of-Sudassana-Setthi; and sat on the seat prepared for him by Sujat. He delivered his first sermon at Khemamigadaya to his step-brother Khandha and his priests son Tissa. His chief attendant was Asoka. Chanda and Chandamitta were his chief women disciples. Punabbasummitta and Naga were his principal male patrons; and Sirima and Uttara were the chief women patrons. He died at the age of eighty thousand.

During the Age of Vipassi Buddha the present Bodhisatta lived as a Naga king with the name Atula; and had the privilege of having offered a golden seat embossed with jewels to Vipassi Buddha.

 

See Buddhavamsa Atthakatha ; Digha Nikaya ii.2ff; Dhammapada Atthakatha iii.236.

 


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