The Illustrated Jataka : Other Stories of the Buddha by C.B. Varma
101 -   Konagamana Buddha / कोनगमन बुद्ध  

Konagamana Buddha on the panel Cave 17, Ajanta

 

कोनगमन तेईसवें बुद्ध माने जाते हैं। ये भद्वकप्र (भद्र कल्प) के दूसरे बुद्ध हैं। सोभावती के समगवती उद्यान में जन्मे कोनगमन के पिता का नाम यञ्ञदत्त था। उत्तरा उनकी माता थी। इनकी धर्मपत्नी का नाम रुचिगत्ता था; और उनके पुत्र का नाम सत्तवाहा।

तीन हज़ार सालों तक एक गृहस्थ के रुप में रहने के बाद एक हाथी पर सवार होकर इन्होंने गृह-त्याग किया और संयास को उन्मुख हुए। छ: महीनों के कठिन तप के बाद इन्होंने अग्गिसोमा नाम की एक ब्राह्मण कन्या के हाथों खीर ग्रहण किया। फिर तिन्दुक नामक व्यक्ति द्वारा दी गई घास का आसन उदुम्बरा वृक्ष के नीचे बिछा कर तब तक समाधिस्थ रहे जब तक कि मेबोधि प्राप्त नहीं की। तत: सुदस्मन नगर के उद्यान में उनहोंने अपना पहला उपदेश दिया।

भिथ्य व उत्तर उनके प्रमुख शिष्य थे और समुद्दा व उत्तरा उनकी प्रमुख शिष्याएँ। कोपगमन का नाम कनकगमन से विश्पत्त है क्योंकि उनके जन्म के समय समस्त जम्बूद्वीप (भारतीय उपमहाद्वीप) में सुवर्ण-वर्षा हुई थी। इन्हीं का नाम संस्कृत परम्परा में कनक मुनि है। इनके काल में राजगीर के वेपुल्ल पर्वत का नाम वंकक था और वहाँ के लोग रोहितस्स के नाम से जाने जाते थे। उन दिनों बोधिसत्त मिथिला के एक क्षत्रिय कुल में उत्पन्न हुए थे। तब उनका नाम पब्बत था। तीस हज़ार वर्ष की आयु में पब्बताराम में उनका परिनिर्वाण हुआ।

कोनगमन की कथ् केवल साहित्यिक स्रोत्रों पर ही आधारित नहीं है, उनका पुरातात्त्विक आधार भी है क्योंकि सम्राट अशोक ने अपने राज्याभिषेक के बीसवें वर्ष में कोनगमन बुद्ध के छूप को, जो उनके जन्मस्थान पर निर्मित था, दुगुना बड़ा करवाया था। इसके अतिरिक्त, फाहियान व ह्मवेनसांग ने भी उस छूप की चर्चा की है।

K onagamana was the twenty-third Buddha, and the second among the five Buddhas born in the Bhadda Kappa (Aeon).

Born in Subhagavati Park in Sobhavati, the capital of king Sobha, he was the son of a Brahmin named Yannadatta. Uttara was his mother. His chief wife was Ruchigatta and Satthavaha was their son. He lived as a house-holder for three thousand years in three palaces: Tusita, Santusita and Santuttha. Then he renounced the worldly life by riding on an elephant. He practised austerities for six months. He accepted the milk-rice from a Brahmin woman Aggisoma; and the grass for his seat from Tinduka. His tree of Enlightenment was Udumbara. He preached his first sermon in Sudassana Nagara Park.

He died in Pabbatarama at the age of thirty thousand. His chief disciples among the monks were Bhiyya and Uttara; and Samudda and Uttaraa among the nuns. His chief attendant was Sotthiya. Ugga and Somadeva were his popular lay devotees among the men; and Sivala and Sama were the most popular devotees among the women.

When the Buddha was born, there followed a gold-shower all over the ancient India (Jambu dvipa). The Buddha was therefore called Kanakagamana, which in course of time became Konagamana. During his time Mount Vepulla of Rajgir was known as Vankaka; and the people of the region were called as Rohitassa.  

He died at Pabbatarama at the age of thirty thousand.

The Bodhisatta was born as a Khattiya (Chatriya) in Mithila at the time of Konagamana Buddha and his name was Pabbata then.

The archaelogical sources corroborate to the existence of the thupa erected on the birth place of the Konagamana Buddha as Asoka the Great doubled its size and worshipped it on his twentieth year of his reign. (See Hultszch, Inscription of Asoka p.165). Faxian (Fahsien), who visited India from 399-414 AD); and Xuangzang (Huan Tsang), who stayed in India from 629-645 AD also refer to the physical existence of the Konagamanas thupas in the place of his birth.

The Sanskrit Buddhist texts like the Divyavadana (333 f.) ; Mahavastu (i. 114) refer Konagamana as Kanakamuni.

 

See Dipavamsa ii.67, xv.25, 34; Mahavamsa xv. 91-124; Digha Nikaya i.7; Majjhima Nikaya i.333; Buddhavamsa xxiv; Buddhavamsa Atthakatha 213-14; Dhammapada Atthakatha ii.236.

 


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