मलिक मुहम्मद जायसी

मलिक मुहम्मद जायसी - संक्षिप्त परिचय

महात्मा कबीर दास मुसलमान और हिंदू दोनों के कट्टरपन को फटकार चुके थे। कबीर काल में जनता "राम' और "रहीम' की एकता मान चुकी थी। साधुओं और फकीरों को दोनो दीन धर्म के लोग आदर और सम्मान की दृष्टि से देखते थे। ऐसे साधू या फकीर, जोकि भेदभाव से परे थे, लोग उनको हर सम्मान देते थे। काफी दिनों तक एक साथ रहते- रहते मुसलमान एक- दूसरे के सामने अपना- अपना हृदय खोलने लग गए थे। इससे ऐसा प्रतीत होने लगा था कि लोग मानवता के सामान्य भावों के प्रवाह में मग्न होने और करने लगे थे। दोनों एक- दूसरे की कहानियाँ, जैसे हिंदू मुसलमान की दास्तान हमजा और मुसलमान हिंदूओं की रामकहानी को सुनने को तैयार हो गये थे। चारों तरफ मुसलमान नल और दमयंती और हिंदू लैला- मजनूँ की कथा जान चुके थे। कबीर ने ऐसा पाठ पढ़ाया था कि दोनों समुदायों के लोग ईश्वर तक पहुँचने वाला मार्ग ढूँढ़ने की सलाह साथ बैठ कर ही करने लगे थे। एक तरफ आचार्य व महात्मा भाव- प्रेम को सर्वोपरि ठहरा चुके थे और दूसरी तरफ सूफी महात्मा मुसलमानों को ""इश्क हकीकी'' का सबक पढ़ाते थे। हिंदू और मुसलमान दोनों के बीच "साधुता' का सामान्य आदर्श प्रतिष्ठित हो गया था। बहुत से मुसलमान फकीर भी अहिंसा का सिद्धांत स्वीकार करके मांस भक्षण को बुरा कहने लगे थे।

ऐसे समय में कुछ भावुक मुसलमान "प्रेम की पीर' की कहानियाँ लेकर साहित्य क्षेत्र में काफी आगे तक आए। इन्हीं कवियों और लेखकों में एक मलिक मुहम्मद जायसी भी थे।


संक्षिप्त परिचय :-

मलिक मुहम्मद जायसी, मलिक वंश के थे। मिस्त्र में मलिक सेनापति और प्रधानमंत्री को कहते थे। खिलजी राज्यकाल में अलाउद्दीन खिलजी ने अपने चचा को मारने के लिए बहुत से मलिकों को नियुक्त किया था। इस कारण यह नाम इस काल में काफी प्रचलित हो गया। इरान में मलिक जमींदार को कहते हैं। मलिक जी के पूर्वज निगलाम देश इरान से आये थे और वहीं से उनके पूर्वजों की पदवी मलिक थी। मलिक मुहम्मद जायसी के वंशज अशरफी खानदान के चेले थे और मलिक कहलाते थे। तारीख फीरोजशाही में है कि बारह हजार रिसालदार को मलिक कहा जाता था।

मलिक मूलतः अरबी भाषा का शब्द है। अरबी में इसके अर्थ स्वामी, राजा, सरदार आदि होते हैं। मलिक का फारसी में अर्थ होता है - "अमीर और बड़ा व्यापारी'। जायसी का पूरा नाम मलिक मुहम्मद जायसी था। मलिक इनका पूर्वजों से चला आया "सरनामा' है। मलिक सरनामा से स्पष्ट होता है कि उनके पूर्वज अरब थे। मलिक के माता- पिता जापान के कचाने मुहल्ले में रहते थे। इनके पिता का नाम मलिक शेख ममरेज था, जिनको लोग मलिक राजे अशरफ भी कहा करते थे। इनकी माँ मनिकपुर के शेख अलहदाद की पुत्री थी।


मलिक का जन्म :-

मलिक मुहम्मद जायसी का जन्म ९०० हिजरी ( सन् १४९२ के लगभग ) हुआ माना जाता है। जैसा कि उन्होंने खुद ही कहा है :-

या अवतार मोर नव सदी।
तीस बरस उपर कवि बदी।।

कवि की दूसरी पंक्ति का अर्थ यह है कि वे जन्म से तीस वर्ष पीछे अच्छी कविता कहने लगे। जायसी अपने प्रमुख एवं प्रसिद्ध ग्रंथ पद्मावत के निर्माण- काल के संबंध में कहा है :-

सन नव सै सत्ताइस अहा।
कथा आरंभ बैन कवि कहा।।

इसका अर्थ यह है कि "पदमावत' की कथा के प्रारंभिक वचन कवि ने सन ९२७ हिजरी ( सन् १५२० ई. के लगभग ) में कहा था। ग्रंथ प्रारंभ में कवि ने ""शाहे वक्त'' शेरशाह की प्रशंसा की है, जिसके शासनकाल का आरंभ ९४७ हिजरी अर्थात सन् १५४० ई. से हुआ था। उपर्युक्त बात से यही पता चलता है कि कवि ने कुछ थोड़े से पद्य १५४० ई. में बनाए थे, परंतु इस ग्रंथ को शेरशाह के १९ या २० वर्ष पीछे समय में पूरा किया होगा।



जायसी का जन्म स्थान :-

जायसी ने पद्मावत की रचना जायस में की --

जाएस नगर धरम् अस्थान।
तहवां यह कबि कीन्ह बखानू।।

जायसी के जन्म स्थान के विषय में मतभेद है कि जायस ही उनका जन्म स्थान था या वह कहीं और से आकर जायस में बस गए थे। जायसी ने स्वयं ही कहा है :-

जायस नगर मोर अस्थानू।
नगर का नवां आदि उदयानू।।
तहां देवस दस पहुँचे आएउं।ं।।
या बेराग बहुत सुख पाय

जायस वालों और स्वयं जायसी के कथानुसार वह जायस के ही रहने वाले थे। पं. सूर्यकांत शास्री ने लिखा है कि उनका जन्म जायस शहर के "कंचाना मुहल्लां' में हुआ था। कई विद्वानों ने कहा है कि जायसी गाजीपुर में पैदा हुए थे। मानिकपुर में अपने ननिहाल में जाकर रुके थे।

डा. वासदेव अग्रवाल के कथन व शोध के अनुसार :-

जायसी ने लिखा है कि जायस नगर में मेरा जन्म स्थान है। मैं वहाँ दस दिनों के लिए पाहुने के रुप में पहुँचा था, पर वहीं मुझे वैराग्य हो गया और सुख मिला।

इस प्रकार स्पष्ट है कि जायसी का जन्म जायस में नहीं हुआ था, बल्कि वह उनका धर्म-स्थान था और वह वहीं कहीं से आकर रहने लगे थे।

 

| कवि एवं लेखक |

Content Prepared by Mehmood Ul Rehman

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