जायसी का खुद के बारे में कथन |
जायसी सैय्यद अशरफ को प्यारे पीर मानते हैं और स्वयं को उनके द्वार का मुरीद बताते हैं। उनकी काव्य शैली में --
एक स्थान पर वो अपने बारे में काफी विनम्र भाव से कहते हैं --
इस पंक्तियों से लगता है कि ये प्रेम- मधु के भ्रमर थे। उनका नाम तो बहुत बड़ा था, पर वह दरसन थोड़ा थे। ज्यों- ज्यों वृद्धा अवस्था आ रही थी, त्यों- त्यों उनमें अभिनवता का सन्निवेश हो रहा था। जायसी संसार को अस्थिर मानते थे, उनके हिसाब से प्रेम और सद्भाव ही स्थिर है या रहेगा, जबकि संसार की तमाम वस्तुएँ अस्थिर है। जायसी ने संसार की अस्थिरता का वर्णन अन्य स्थल पर इस प्रकार किया है --
एक स्थान पर चित्ररेखा में उन्होंने अपने बारे में लिखा है --
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| कवि एवं लेखक | |
Content Prepared by Mehmood Ul Rehman
Copyright IGNCA© 2004
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