समन्वय |
हिंदी के सूफी कवियों में भारतीय इरानी सूफी दार्शनिक तत्वों का सुंदर समन्वय हुआ है। जायसी के यहाँ भी अद्वेैतवाद का स्वर प्रमुख है --
इस्लाम में एकेश्वरवाद की मान्यता है और सूफी मत में अद्वेैतवाद की। इस्लाम में ईश्वर, जीव एवं जगत की पृथक- पृथक सत्ता को माना ही गया है। अद्वेैतवाद में ब्रह्म को ही वास्तविक सत्ता के रुप में माना जाता है। शेष संपूर्ण जगत उसी से जन्मा है और उसी में विलीन हो जाता है। ब्रह्म से जगत का अभेद है। अद्वेैतवाद में नाना रुपात्मक दृश्य जगत की व्याख्या के लिए प्रतिबिंबवाद, वितर्कवाद आदि का सहारा लिया जाता है। ब्रह्म बिंब है और जगत उसका प्रतिबिंब। यद्यपि सूफियों के उपास्यदेव निराकार हैं, तथापि वे प्रेम प्रभू हैं। इस निराकार प्रेम- प्रभू की अभिव्यंजना के लिए सूफियों ने साकार का अवलंबन लिया है। साकार तो माध्यम है, निराकार की अभिव्यक्ति का। भक्ति मार्ग को सूफी मत की यह एक देन है। ईश्वर एक है, अद्वितीय है, उसका कोई स्थान नहीं है और न ही कोई स्थान उससे रिक्त है --
उससे ही संसार और दृश्यमान जगत की सर्जना की है। वह अहं और इदम सबमें व्याप्त है -- ं उसके जीव नहीं है, फिर भी जीता है, हाथ नहीं है।
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| कवि एवं लेखक | |
Content Prepared by Mehmood Ul Rehman
Copyright IGNCA© 2004
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