छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के बीच सामान्य जन का मसीहा "कबीर'

जन्त्रारुढ़ वि का जीवन गीत


कबीरीय संगीत

 

कबीरीय वाणी

कब भजि हो .......

पानी में मीन .......

बोले काया में .....

घूंघट के पट .....

करम गति ........

मन मस्त हुआ ...

प्यारे प्रपंच ........

चादर झीनी ......

मोको कहां ढूंढ़े ....

मन फूला ......

मोरी चुनरी ......

जो खुदाय ......

उमर सब ......

कुछ लेना .......

कबीर की साखियां .....

Top

कबीरीय वाणी

छत्तीसगढ़ में बहुप्रचलित कबीर जी के भ

तुम जिनि जानों गीत यह, यह निज ब्रह्म विचार।
केवल कहि समुझाइया, आतम साधन सार रे।

- कबीर

हां, कबीर ने गीतों के माध्यम से केवल अपना व जग का ""आत्मशोधन'' किया था। आत्मा की खोज की यह प्रक्रिया सभी पहलुओं को छूती-परखती वहां पहुंची है - जहां वह मन को समझने में समर्थ हो सके। क्योंकि मन ही सभी समस्याओं का कारण व समाधान दोनों है। कबीर ने ""मन गढ़ने'' का संकल्प लिया था। इसलिए वे इतिहास गढ़ सके।

""मन गोरख, मन गोविन्दौ, मन ही औघड़ होई।
जे मन राखे, जतन करि, तो आपै करता सोई।''

 

- कबीर

 

१.

कब भजि हो सत्यनाम सो मेरे मन।
कब भजि हो सत्यनाम।
बालापन सब खेल गमायो,
जवानी में व्याप्यो काम।
वृद्ध भये तन कांपन लागे,
लटकन लागे लग्यो चाम।
लाठी टेकी चलत मारग में,
सहज जात नाहीं घाम।
कानन बहिर नयन नहीं सूझे,
दाँत भये बेकाम।
घर की नारि विमुख होय बैठी,
पुत्र करत बदनाम।
बरबरात है विरथा बूढ़ा।
अटपट आटो याम।
खटिया से भुंइया करि देहैं,
छुटि जैहे धन धाम।
कहैं कबीर काह तब करि हो,
परि हैं यम से काम।...

 

टिप्पणी -  

कब मेरे भाग जागेंगे। कब मुझे कबीर साहर की कृपा प्राप्त होगी, जब मुझमें सत्बुद्धि आयेगी और मैं प्रभु चरणों में अपने को अर्पित कर दूंगा। सारी उमर विषयों के उपयोग में बीत गई। अब वृद्धावस्था है। शरीर जीर्ण शीर्ण है। अब केवल साहब आपकी कृपा का भरोसा है। अविलम्ब दयादृष्टि दीजिए।

Top

२.

पानी में मीन पियासी, मोहि सुन-सुन हावे हाँसी।
आतम ज्ञान बिना नर भटके, कोई मथुरा कोई काशी।
मिरगा नाभि बसे कस्तूरी, बन बन फिरत उदासी।
जल-बिच कमल कमल बिच कलियाँ तापर भँवर निवासी।
सो मन बस त्रैलोक्य भयो हैं, यति सती सन्यासी।
है हाजिर तेहि दूर बतावें। दूर की बात निरासी।
कहै कबीरा सुनो भाई साधो, गुरुबिन भरम न जासी।...

 

टिप्पणी -  

""गुरु बिन मिले न ज्ञान,
गुरु बिन मिले न मोक्ष।
गुरु बिन मिले ने सत्य,
गुरु बिन मिटे ने दोष।''

- कबीर

 

Top

३.

बोले काया में सुगनवा बनके लहरी।
पांच तत्व के पिंजरा वाके तामं दुगना बोले।
कभी-कभी मस्ती में आके दिले के जौहर खोले।।
डोले संध्या और बिहनवा......।।१।।
पांच तत्व के पिंजरा वाके तामें दश दरवाजा।
मध्य भाग में लगाके आसन बैठे बन के राजा।।
झूले प्रेम के झूलनवा ......।।२।।
अपनी सेवा के खातिर में, राखी नव पटरानी।
सब रानिन से बात करत है आप भरे हुँकारी।।
माने उनहूं के कहनवा.....।।३।।
कहै कबीर जा दिन सुगना पिंजड़े से उड़ जैहैं।
यमराजा के हाथ में पड़कर आँसुवन से मुख धोई हैं।।
रोके पड़ि हैं मौत जखनवा....।।४।।....

 

टिप्पणी -

जीवन क्षण भंगुर है। शरीर रुपी पिंजरे से जब प्राण पखेरु उड़ जाएगा, तब यह प्राणहीन मिट्टी का तन माटी में ही पड़ा रह जाएगा। जिन सांसारिक सुखों के पीछे भागता फिर रहा है वे साथ नहीं देंगे। अत: समय के रहते प्रभु की आराधना कर ले।

Top

४.

धूँघट के पट खोल रे तोको पिया मिलेगें।
घट-घट में वह सांई रमता
कटुता वचन मत बोल रे।
धन यौवन का गर्व न कीजै।
झूठा पचरंग चोल रे।
शून्य महल में दियना बारिले,
आसन से मत डोल रे।
योग जुगति से रंग महल में,
पिय पायो अनमोल रे।
कहैं कबीर आनंद भयो हैं,
बाजत अनहद ढोल रे।...

 

टिप्पणी -

माया मोह का आवरण फाड़ दे। अज्ञानता और विषय वासना की दीवाल तोड़ दे। देह का परदा खोल दें। अपने अंतर में झांक। तू ही हंस रुप में वहां विद्यमान है। नीर-क्षीर, विवेक तेरा गुण है। अत: अपने प्रभु, अपने राम को पा ले। वही तेरा अपने आप को पाना है।

Top

५.

करम गति टारे नाहिं टरी।
गुरु वशिष्ठ महामुनि ज्ञानी,
सोधि के लगन धरी।
सीता हरण मरण दरशथ को,
वन वन विपति पड़ी।
कहां वे राहु कहां वे रवि,
शशि आन संयोग पड़ी।
सतवादी हरिशचन्द्र राजा,
नीच घर नीर भरी।
दुर्वासा ॠषि श्राप दियो है,
जदुकुल नाश करी।
पाण्डव के हरि सदा सहायक,
उनहुंन वन विचरी।
तीनों लोक करम गति के वश,
जीव से काह सरी।
कहहिं कबीर सुनो हो संतों
भटकि भूल भरी।।...

 

टिप्पणी -

जो भाग्य में लिखा है, वह अवश्य होता है। बड़े से बड़ा व्यक्ति भी उससे बच नहीं सकता। संसार का इतिहास ऐसी घटनाओं से भरा पड़ा है। कबीर दास जी कहते हैं यह जीवन भटकन भरा है अत: प्रभु की वंदना में ध्यान लगायें।

Top

६.

मन मस्त हुआ तब क्यों बोले।
हीरा पायो गांठ गठियाओ।
बार-बार वाको क्यों खोले।
हलुकी थी, तब चढ़ी तराजू।
पूरी भई तब क्यों तोले।।
सुरति कलारी भई मतवारी,
मदवा पी गई बिन तोले।
हंसा पाये मान सरोवर,
ताल तलैया क्यों डोले।
तेरा साहेब है घट माहीं
बाहर नैना क्यों खोले।
कहैं कबीर सुना भाई साधो।
साहिब मिल गये तिल आले।....

 

टिप्पणी -

""तेरा साँहि तुझमें बसे, ज्यूं पुहुपन में वास।
कस्तूरी का मिरग ज्यों, फिर-फिर सूंघे घास।''

- कबीर

जेहि खोजत कल्पौ गयो, घटहि माँहि सोमूर।

- कबीर

 

Top

७.

प्यारे प्रपंच में तो दिन रात तुम गुजारो।
मानुष का तन ये पाके, कुछ तो जरा विचारो।
दो दिन का ले बसेरा, करते हो मेरा मेरा।
सब छोड़ अपना डेरा, खाली गये हजारो।
आशा की पाश पागे, तृष्णा के पीछे लागे।
फिरते हो क्यों अभागे, संतोष दिल में धारो।
देवेगा सोई पावे, और कुछ न काम आवे।
एक धर्म साथ जावे, यह बात मत बिसारो।
कहत कबीर ज्ञानी, संसार है ये फानी।
तज अपनी सब नादानी, ममता औ मद को मारो।....

 

टिप्पणी -

इस प्रपंचात्मक संसार में तुमने जीवन व्यर्थ कर डाला। अब समय नहीं है। अंत आ पहुंचा है। प्रभु चरणों में अपने को दे दो। और अपने जीवन का अर्थ पा लो।

Top

८.

चादर झीनी हो झीनी
ये ते सदा राम रंग भीनी चदरिया
अष्ट कमल दल चरखा चाले,
पांच तत्व गुण तीनों।
कर्म की पूनी कातन बैठी,
कुकुरी सुरति महीनी।
श्वास के तार सम्भाले के कातो
नौ मन प्रकृति प्रबीनी।
सोले सूत जुगति से जग की,
रचना रची नवीनी।
इंगला पिंगला ताना कीनो
सुषमन भरनी दीनी।
नव दश मास बुनन को लागे,
ठोंक-ठोंक की बीनीष।
लै चादर सुर नर मुनि ओढ़ी
ओढि के मैली कोनी।
साहेब कबीर जुगति से ओढ़ी,
ज्यों कि त्यों धर दीनी।...

 

टिप्पणी -

ये जीवन रुपी चदरिया मैली हो चुकी है। केवल कबीर ने ही जैसी चादरिया ली थी वैसी जतन से ओढ़कर वापस कर दी है। कबीर आने वाली पीढ़ी से कह रहे है, सीख दे रहे हैं कि इस चदरिया को मलिन न होने दे।

Top

९.

मोको कहाँ ढूंढ़ं बन्दे मैं तो तेरे पास में।
ना तीरथ में ना मूरत में, ना एकान्त निवास में।
ना मंदिर में ना मस्जिद में, ना काशी कैलाश में।
ना मैं जप मे ना मैं तप में, ना मैं व्रत उपवास में।
ना मैं क्रियाकर्म में रहता, ना ही योग सन्यास में।
नहिं प्राण में नहिं पिण्ड में, ना ब्रह्मांड आकाश में।
ना मैं भृकुटी भंवर गुफा में, सब श्वासन की श्वास में।ं,
खीजी होय तुरत मिल जा इस पल की तलाश में।
कहैं कबीर सुनो भाई साधो, मैं तो हूं विश्वास में।...

 

टिप्पणी -

इसमें कबीर कह रहे हैं कि राम तुम्हारे भीतर है। तुम उन्हें बाहरी दुनियां में कहां ढूंढ़ रहे हो। तुम्हारा जीवन-बोध और तुम्हारा आत्मबोध ही राम है-

मृगा की नाभि कस्तूरी,
मृग ढूंढ़े बन माहि।
तैसे घट-घट राम हैं,
दुनिया जाने नाहिं।
दिल में खोजि, दिलहि मां खोजो।
इहै करीमा रामा।

- कबीर

 

Top

१०.

मन फूला फूला फिरे जगत् में, कैसा नाता रे।
माता कहै यह पुत्र हमारा, बहन कहे बीर मेरा।
भाई कहै यह भुजा हमारी, नारि कहे नर मेरा।
पैर पकरि के माता रोवे, बांह पकरि के भाई।
लपटि झपटि के तिरिया रोवे, हंस अकेला जाई।
चार कोने आग लगाया, फूंक दियो जस होरी।
हाड़ जरे जस लाकड़ी, केस जरे जस घासा।
सोना ऐसी काया जरि गई, कोइ न आयो पासा।
कहे कबीर सुनो भई साधु, एक नाम की आसा।... १०

 

टिप्पणी -

संसार में सारे नाते-रिश्ते झूठे हैं, मायावी हैं। भोग वासना में लिप्त रहकर तू फूला नहीं समाता है। सारा जीवन अकारथ करने के बाद अंत समय पछताता है। देर न कर, प्रभु की शरण में जा।

जैसी प्रीत कुटुम्ब सो,
तैसी हरि सों होय।
दास कबीरा यूँ कहे,
काज न बिगरे कोय।

- कबीर

 

Top

११.

मोरी चुनरी में परि गयो दाग पिया।
पंच त्तव की बनी चुनरिया, सोरह सो बंद लागे जिया।
यह चुनरी मोरे मेके ते आई, ससुरे में मनवा खोय दिया।
मलि मलि दाग न छूटे, ज्ञान के साबुन लाय पिया।
कहत कबीरा दाग तब छुटि है, जब साहब अपनाय लिया।... ११

 

टिप्पणी -

सतगुरु की कृपा के बिना जीवन की चदरिया पर कर्म संस्कारों का जो दाग लगा है वह छूट नहीं सकता। केवल सतगुरु की कृपा के जल से धुल सकता है, निर्मल हो सकता है। केवल उसी की शरण में जाओ -

मन ऐसा निर्मल भया, जैसे गंगा नीर।
पीछे पीछे हरि फिरे, कहत कबीर-कबीर।

- कबीर

 

Top

१२.

जो खुदाय मसजीद वसतु है और मुलुक केहि केरा।
तीरथ-मूरत राम निवासी बाहर करे को हेरा।
पूरब दिशा हरी को बासा, पच्छिम अलह मुकामा।
दिल में खोज दिलहि में खोजो, इहै करीमा - रामा।
जेते और मरद उपानी सो सब रुप तुम्हारा।
कबीर पोंगरा अलह राम का सो गुरु पीर हमारा।... १२

 

टिप्पणी -

मोको कहाँ ढूँढ़े बन्दे मैं तो तेरे पास में।
ना मैं देवल में, ना मैं मस्जिद में, न काबे-कैलाश में।
खोजि होय तो तुरंत मिलिहौं, पल भर के तलाश में।
कहैं कबीर सुनो भाई साधो, सब साँसन की सांस में।

- कबीर

 

Top

१३.

उमरिया धोखे में खोये दियो रे।
धोखे में खोये दियो रे।
पांच बरस का भोला-भाला
बीस में जवान भयो।
तीस बरस में माया के कारण,
देश विदेश गयो। उमर सब ....
चालिस बरस अन्त अब लागे, बाढ़ै मोह गयो।
धन धाम पुत्र के कारण, निस दिन सोच भयो।।
बरस पचास कमर भई टेढ़ी, सोचत खाट परयो।
लड़का बहुरी बोलन लागे, बूढ़ा मर न गयो।।
बरस साठ-सत्तर के भीतर, केश सफेद भयो।
वात पित कफ घेर लियो है, नैनन निर बहो।
न हरि भक्ति न साधो की संगत,
न शुभ कर्म कियो।
कहै कबीर सुनो भाई साधो,
चोला छुट गयो।।... १३

 

टिप्पणी -

सारी उमरिया संसारिक प्रपंच में बीत गयो।
हरि से हेत नहीं किया, अब चला चली की बेला है।
सब छुटो जात है। हे दया निधान इधर कृपा दृष्टि फेरिये- भेला डूबो चाहत है।

Top

१४.

कुछ लेना न देना मगन रहना।
पांच तत्व का बना है पिंजरा।
इनमें बोले दिन रात मैना।
गहरी नदिया नाव पुरानी,
खेवटिया से मिले न रहना।।
तेरा साहिब है तेरे में,
अखियां खोल देखो नयना।
कहत कबीर सुनो भाई साधू
गुरु चरणों में लिपटे रहना।।... १४

 

टिप्पणी -

गुरु की महिमा का वर्णन है। दुनिया के माया-जाल से दूर प्रभु अराधना में लीन रहकर ही इस शरीर के बंधन से मुक्ति मिल सकती है।

Top

१५.

कबीर की साखियां... १५

 

१.

राम-रहीमा एक है, नाम धराया दोय।
कहै कबीरा दो नाम सुनि, भरम परौ मति कोय।।

२.

काशी-काबा एक है, एकै राम रहीम।
मैदा इक पकवान बहु, बैठि कबीरा जीभ।।

३.

एक वस्तु के नाम बहु, लीजै वस्तु पहिचान।
नाम पक्ष नहिं कीजिए, सार तत्व ले जान।।

४.

राम कबीरा एक है, दूजा कबहु न होय।
अंतर टाटी कपट की, ताते दीखे दोय।।

५.

जाति न पूछौ साधु की, जो पूछौ तो ज्ञान।
मोल करो तलवार का, परा रहन दो म्यान।।

६.

कबिरा तेई पीर है, जो जानै पर पीर।
जो पर पीर न जानि है, सो काफिर बेपीर।

७.

पोथी पढि-पढि जग मुवा, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पण्डित होय।

८.

निन्दक नियरे राखिये, आँगन कुटी छबाय।
बिन पानी साबुन बिना, निरमल करै सुभाय।।

९.

माटी कहैं कुम्हार सौं, तू क्या र्रूंदे मोय।
एक दिन ऐसा होएगा, मैं र्रूंधूँगी तोय।।

१०.

जहां दया तहँ धर्म है, जहां लोभ तहँ पाप।
जहां क्रोध तहँ काल है, जहाँ जहाँ क्षमा तहँ आप।।

११.

पाहन पूजे हरि मिलै, तौ मैं पूंजूँ पहार।
ताते यह चाकी भली, पीसी खाय संसार।।

१२.

कबीर माला काठ की, कहि समझावे तोहि।
मन ना फिरावै आपनों, कहा फिरावै मोहि।।

१४.

मूरख को समुझावते, ज्ञान गाँठ का जाई।
कोयला होई न ऊजरो, नव मन साबुन लाई।।

१५.

माला तौ कर में फिरै, जीभ फिरै मुख माहिं।
मनुवा तौ चहुँदिसि फिरै, यह ते सुमिरन नाहिं।

Top

१.

संकलन : दास मनोहर : भजन मुक्तावली :पृष्ठ : ७९

२.

संकलन : दास मनोहर : भजन मुक्तावली :पृष्ठ : ४५

३.

संकलन : दास मनोहर : भजन मुक्तावली :पृष्ठ : ४८

४.

संकलन : दास मनोहर : भजन मुक्तावली :पृष्ठ : ४८

५.

संकलन : दास मनोहर : भजन मुक्तावली :पृष्ठ : ५०

६.

संकलन : दास मनोहर : भजन मुक्तावली :पृष्ठ : ७०

७.

संकलन : दास मनोहर : भजन मुक्तावली :पृष्ठ : ७८

८.

संकलन : दास मनोहर : भजन मुक्तावली :पृष्ठ : ८१

९.

संकलन : दास मनोहर : भजन मुक्तावली :पृष्ठ : ८५

१०.

साहेब, गृन्धमुनि नाम : अनुराग सागर पर मेरा अनुराग : प्रकाश कुंज : कटोरा तालाब : रायपुर : पृष्ठ ४३

११.

साहेब, गृन्धमुनि नाम : सदगुरु कबीर ज्ञान पयोनिधि : वही : पृष्ठ ९८

१२.

संकलन : जनसम्पर्क विभाग : मध्यप्रदेश सरकार : संत कबीर और उनकी वाणी : पृष्ठ ३६

१३.

संकलन : दास मनोहर : भजन मुक्तावली :पृष्ठ : १०७

१४.

संकलन : दास मनोहर : भजन मुक्तावली :पृष्ठ : ४२

१५.

संकलन, जनसम्पर्क विभाग : मध्यप्रदेश सरकार : संत कबीर और उनकी वाणी : पृ.: १५, १९, २१, २३, २९, ३० एवं ३१

पिछला पृष्ठ | विषय सूची | अगला पृष्ठ


Top

Copyright IGNCA© 2003