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तत्कालीन सामाजिक परिस्थिति |
कबीर मध्यकाल के क्रांतिपुरुष थे, जिन्होंने तत्कालीन समाज में हलचल पैदा करती थी। जर्जर हो चले समाज में कबीर का कार्य एक ऐसे चतुर एवं कुशल सर्जन का काम था, जिसके सामने समाज के हृदय के आपरेशन का प्रश्न था। उस आपरेशन के लिए कबीर साहब ने पूरी तैयार की थी।
जैसे चक्की के भीतर चना टूट जाता है, उसी तरह सांसारिक चक्र में घिसते- टूटते जनता के दुख- दर्द को देख कर कबीर को काफी दुख होता था। एक पद :-
तत्कालीन समाज में व्याप्त जाति का स्पष्टीकरण उपरोक्त पद से अच्छी तरह हो जाता है। एक स्थान पर उन्होंने इस पर भीषण प्रहार किया है।
उनके कथानुरुप वैश्य जाति होने का तात्पर्य यह नहीं है कि इसका स्थान समाज में बहुत ऊँचा है। असल चरित्र ज्ञान है, विवेक है, जिससे मनुष्य की पहचान बनती है। आडंबरपूर्ण व्यवहार से छपा तिलक लगाकर लोगों को ठगने से मूर्ख बनाने से अपना अहित होता है।
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Content Prepared by Mehmood Ul Rehman
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