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कबीर के शिष्य |
धर्मदास और गोपाल
ये दोनों कबीर के शिष्य,जो धर्मदास जाति के
बनियाँ थे। यह काशी में कबीर से
मिलने से पहले कट्टर मूर्तिपूजक थे। जब यह कबीर के पास आ गए, तो कबीर ने इनको
मूर्तिपूजन से मना कर दिया, फिर कुछ
समय पश्चात दोनों की भेंट वृंदावन
में हुई। धर्मदास यहाँ कबीर को न पहचान
सके, वह बोले तुम ठीक काशी में
मिलने वाले साधु की तरह हो। यहाँ
भी कबीर साहब चौकन्ने थे। इन्होंने धर्मदास के हाथ
में पड़ी मूर्ति को लेकर जमुना में डाल दिया। धर्मदास अपने
साथ सदा एक पत्थर की मूर्ति रखते थे। कुछ दिनों के पश्चात् कबीर साहब स्वयं धर्मदास के घर
बांदोगढ़ गए, वहाँ उन्होंने उनसे कहा कि तुम उसी पत्थर को पूजते हो, जिसके तुम्हारे तौलने के
बाट हैं। उनके दिल में कबीर साहब की यह
बात ऐसी बैठी कि वह उनके शिष्य हो गए। कबीर की
मृत्यु के पश्चात धर्मदास ने छत्तीसगढ़
में कबीर पंथ की एक अलग शाखा चलाई और
सूरत गोपाल काशी वाली शाखा के उत्तराधिकारी
बनाए गए। कबीर पंथ मूलगादी शाखा
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Content Prepared by Mehmood Ul Rehman
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