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कबीर :- एक आध्यात्मिक विश्लेषण |
संत कबीर के आविभाव के साथ ही संतकाल का सुत्रपात हो गया था। कबीर दास के शिष्य चरण दास, गरीब दास, मलूक दास आदि कवियों ने अध्यात्म की धारा बहाकर हिंदू- मस्लिम संबंधी विविध प्रसंग लेकर संपूर्ण देश में अराजकता के युग के स्वर्ण युग की संज्ञा दिलाई। इन सभी संतों के काव्य का मूल स्वर अध्यात्म है। सभी संतों ने एक स्वर में घोषणा की कि देश में व्याप्त संकट अराजकता और अन्याय से मुक्ति दिलाने में अध्यात्म ही मदद कर सकता है। इसी के बल पर चलकर देश की प्रगति में सहायक बना जा सकता है।
कबीर के अनुसार सत्य विचार ही मूल चीज है , जिसने इस तत्व को स्वीकार किया और उस पर अमल किया, निश्चय ही वह परिवार सहित कल्याण का भागी होगा।
झूठ बनाने और अनर्थ गर्व करने से कुछ नहीं होने वाला है। इससे सिर्फ भ्रम पैदा होता है। संध्या तपंन से भी कोई लाभ नहीं होता, अगर मन में सत्य विचार नहीं । संत मलूक दास ने भी इसी आशय के भाव व्यक्त किये :-
शुद्ध भावना रखकर भगवान की भक्ति करना, उन पर अटल विश्वास रखना और उनकी शरण में अपने को समर्पित कर देना ही, मानव का सच्चा धर्म है। इसी से सत्य की अर्थात परमात्मा की प्राप्ति संभव है।
अर्थात "" मन चंचल है। उसे शांत रखने के लिए साधुओं की संगति अनिवार्य है। अशुद्ध जल भी गंगा में मिलकर, पवित्र बन जाता है। इसी तरह सत्संग के प्रभाव से बुद्धि का परिष्कार होता है तथा दुष्ट प्रकृति का मनुष्य भी गुणवान बन जाता है।
अर्थात् ""बुद्धि चंचल है, इसलिए भक्ति करने में कठिनाई होती है। अतः आवश्यकता है, इस चंचल मति को शांत करने की, ताकि ध्यान में मन लग सके। इसी घट अर्थात् सबके हृदय के भीतर निरंतर राम का निवास है, लेकिन उन्हें देखने की कला में हम अनभिज्ञ है। अतः ध्यान द्वारा इसे देखने का प्रयास करना चाहिए। सांसारिक संकटों से छूटकारा पाने का यह एक अमोघ अपाय है।
सत्य शब्द को संतोषपूर्वक ग्रहण करके प्रेमपूर्वक मंगलकारी भजन करना चाहिए। इसके लिए सतगुरु की शरण में जाना आवश्यक है।
ज्ञान की प्राप्ति हेतु मार्गदर्शक अर्थात गुरु का होना अत्यावश्यक है। सत्य नाम ही मुख्य चीज है, इसी का चिंतन बराबर होना चाहिए।
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Content Prepared by Mehmood Ul Rehman
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