केशवदास
केशव का निधन
केशव के निधन के काल और स्थान पर विद्वानों में मतभेद पाये जाते हैं। मिश्रबन्धु, गणेशप्रसाद, रामनरेश त्रिपाठी एवं रामचन्द्र शुक्ल इत्यादि विद्वान केशवदास का निधन काल १६७४ में हुआ मानते हैं। स्व० चन्द्रबली पाण्डेय ने निधन काल सं० १६७० माना है। लाला भगवानदीन और गोरीशंकर द्विवेदी के अनुसार केशव का निधन १६८० में हुआ था। केशव के प्रेत योनि में पड़ने और तुलसी द्वारा उनके उद्धार की किंवदन्ती से भी स० १६८० वाले मत की पुष्टि होती है क्योंकि तुलसी का भी देहान्त इसी वर्ष हुआ था।
केशवदास का व्यक्तित्व विश्लेषण
केशवदास के व्यक्तित्व में काफी निखार हो चुका था क्योंकि हर कवि या साहित्यकार के
व्यक्तित्व के निर्माण में युग का सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है। केशव युग की सबसे प्रमुख विशेषता आचारमूलक धर्म और जनवादी दर्शन की भावात्मक संस्कारिता मानी जा सकती है। इसी प्रक्रिया में भावात्मक धर्म और साहित्य का गठबन्धन हुआ।
केशव के व्यक्तित्व में आत्माभिमान पाया जाता है। केशव का व्यक्तित्व पौराणिक और शास्रीय ज्ञान से मंडित होकर भाषा की ओर झुक गया था। ओरछा के राजवंश से तो केशव का वंश संबाद था ही इसके अलावा ब्रज के वैष्णव संप्रदायों से भी उनका सम्बन्ध होने का प्रमाण मिलता है। यह कहा जा सकता है कि केशव बल्लभ सम्प्रदाय में दीक्षित थे। विट्ठलनाथ जी उनके मंत्र गुरु थे उनकी प्रशस्ति में केशव ने लिखा है -
हरि दृढ़ बाल गोबिन्द विभु पायक सीतानाथ।
लोकप बिट्ठल शंखधर गरुड़ध्वज रघुनाथ।।
केशवदास के अग्रज
केशव को वंश परंपरा से बहुलता के संस्कार मिले थे। इनके एक पूर्वज भाऊ-राम ने भाव-प्रकाश की रचना की थी। केशव के पिता काशीराम ज्योतिष के विद्वान थे। इनके पिता ने शीघ्रबोध नामक एक ज्योतिष ग्रंथ की रचना की थी। इनके अग्रज बालभद्र मिश्र हिन्दी के एक अच्छे विद्वान माने जाते हैं। उन्होंने नखशिख भागवत भाष्य हनुमान्नाटक टीका का प्रणयन किया था। इन बहुमुखी पांडित्य और ज्ञान दरबारों से केशव के व्यक्तित्व पर काफी असर डाले।
केशव बहुमुखी प्रतिभा के मालिक
केशव धर्म, ज्योतिष, संगीत, भुगोल, वैद्यक, वनस्पति, पुराण, राजनीति, अश्व-परीक्षा, कामशास्र आदि शास्रों के सामान्य ज्ञाता थे। इस बहुलता ने केशव के काव्य प्रस्तुतिकरण को मजीद समृद्ध किया। काव्यशास्र, नीतिशास्र और कामशास्र के वह विशेषज्ञ प्रतीत होते हैं। एक तरफ बहुज्ञाता ने केशव की काव्य साधना को प्रभावित किया वहीं दूसरी तरफ उनको राजसम्मान भी प्राप्त कराने का काम किया। केशव की कृतियों में अनेकों स्थानों पर उनकी बहुज्ञता को दर्शाया गया है। केशव को अपने पांडित्य पर गर्व था। जानत सकल जहान, कवि सिमोर, हस तरह की उक्तियाँ अपने लिए उन्होंने लिखी है।
यह कहा जा सकता है कि केशव के व्यक्तित्व का निर्माण वंश परम्परा, युग-रुचि एवं तत्कालीन परिस्थितियों के साये में हुआ। एक ओर रसिकता और भावुकता के तत्व उनके व्यक्तित्व में पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं वहीं दूसरी ओर उनकी बौद्धिक उपलब्धियाँ भी अनेक दिखाई देती हैं। इन दोनों के बीच कभी-कभी एक संघर्ष भी उनके व्यक्तित्व में पाया जाता है। इन सब में व्यावहारिकता उनका प्रधान गुण है।
|