वाराणसी वैभव या काशी वैभव

दूसरी वाराणसी


दिवोदास द्वारा दूसरी वाराणसी की स्थापना और उसके बैरांट में होने की संभावना पर "वाराणसी वैभव' में पं. कुबेरनाथ सुकुल लिखते हैं, बैराट खंडहर बाण गंगा के दक्षिण किनारे पर है बाएं पर नहीं। इस प्रकार गोमती और बैरांट के बीच स्वयं गंगा की धारा बाधक हो जाती है। पुन: गंगा के रास्ते बदलने, बाण गंगा में गंगा के बहने और गंगा-गोमती संगम सैदपुर के पास होने की बात पर टिप्प्णी करते हुए सुकुलजी कहते हैं, ""महाभारत के अनुसार गंगा-गोमती संगम पर मार्कण्डेय तीर्थ था, जो अभी-भी कैथी के समीप है।'' अत: यदि गंगा-गोमती संगम सैदपुर के पास था तो यह महाभारत से पहले रहा हो सकता है, इसवीं सन् तीसरी के बाद नहीं।

 

"मार्कण्डेयस्य राजेन्द्रतीर्थमासाद्य दुलभम्।
गोमतीगङ्गयोश्चैव सङ्गमें लोकविश्रुते।।'

(महाभारतस कृ.क.त.पृ. २४१)
(वाराणसी वैभव पृ. २६८)

 

वाराणसी वैभव


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