ग्वालियर के मृणशिल्प

प्रमुख कृतिया:

- मुश्ताक खान


ग्वालियर मे कुम्हारों द्वारा प्रमुख रुप से बनाई जाने वाली आकृतियां हैं गणगौर, तथा महालक्षमी का हाथी ऐरावत।

ऐरावत हाथी के सभी अंग पहले चाक पर बना लिये जाते है। पहले इसका गोदां पटक कर हाथी का पेट बनाते हैं फिर चार पैर बनाये जाते है और फिर सिर तथा आभूषण बना लिये जाते हैं। जब यह सूख जाएं तब इन आंगो को आपस में जोड़ लिया जाता है। यह क्वांर माह में बनाए जाते हैं, लगभग सभी जातियों मे यह बनवाया जाता है इसकी मजदूरी में एक रुपया और इसकी पूजा में चढ़ाई जाने वाली सामग्री कुम्हारन को मिलती है, जैसे पूरी गिटकौरी, गिटकौरे, लडडू आदि। 

हाथी की सजावट के लिये लगाई जाने वाली घंटियां भी चाक पर ही गढ़ ली जाती है। जब यह सारे अंग थोड़े कड़े पड़े जाये तब इनकी जुड़ाई होती है। जुड़ाई का काम अधिकतर स्रियां ही करती हैं।

यह क्वांर माह में बनाया जाता है और लगभग सभी जातियां इसे पूजती है।

यदि, यह हाथी कुम्हार जहां उनकी किसानी बंधी है, उन परिवारों को दःैंगे तो वे बदले में कुछ पैसे अनाज देते है और पूजा होने के बाद पूजा में चढ़ाई गई सामग्री भी कुम्हार को देते है।

क्वांर में महालक्षमी के व्रत का बहुत महत्व माना गया है। क्वांर ग्यारस के दिन यह व्रत माना जाता है। इस हाथी को पकाया नहीं जाता केवल कच्ची मिट्टी का ही बनाया जाता है इसी प्रकार देवताऔं की मूर्तियां जैसे भादों भादों माह मे पूजने वाले गणेंश भी कच्ची मिटटी के ही बनते है क्येंकि पूजा के बाद इन्हें ठण्डा किया जाता है, तब कच्ची मिट्टी का होने का कारण ये शीघ्र नष्ट हो जाते है। हाथी को पुजा के बाद अधिकांशतः छत पर या खुले स्थान पर रख दिया जाता है जहां यह मौसम के प्रभाव से नष्ट हो जाता है।

कहते है कि पांडू राजा की पत्नी कुन्ती थी और अन्ध (धृतराष्ट्र) की पत्नी गांघारी थी । गांधारी के दुर्योंधन आदि एक सौ पुत्र थे जबकि पांडू राजा के पांच पुत्र थे। ये हस्तिनापुर की बात है। एक बार दोनों स्रियों ने महालक्षमी का उपवास रखा। तब गांधारी बोली कि आज पूजा के लिये मिटटी का हाथी चाहिये, उसने सोचा कि मेरे तो बहुत सारे बच्चे हैं ये तुरन्त हाथी बना देंगे, तब सारे बच्चे बोले आप चिन्ता न करो हम सब मिलकर जल्द ही बना देंगे, तब सारे बच्चों ने मिलकर मिटटी का हाथी बना लिया। यह देखकर इन्द्र बहुत गुस्सा हो गया क्योंकि उससे पहले इन्द्र की ही पूजा होती थी महालक्षमी के एरावत की कोई पूजा नहीं करता था। इन्द्र ने क्रोधित होकर जोर का पानी बरसा दिया जिससे गांधारी के पुत्रों द्वारा बनाया मिटटी का हाथी खण्डित हो गया। इस प्रकार जितनी भी बार वे लोग हाथी बनाते उतनी ही बार इन्द्र पानी बरसाकर उसे बेकार कर देता था। इस तरह होते होते उपवास खोलने का समय आ गया, कुन्ती और गांधारी दोनें ही परेशान होने लगी कि क्या होगा पूजा के लिये हाथी चाहिये और वो अभी तक बन नहीं पाया। इधर कुन्ती हाथी के लिये परेशान थी तो उधर गांधारी के सौ पुत्र फिर मिटटी का हाथी बनाने में जुट गये गांधारी ने सोचा समय कम है कुन्ती के तो पांच ही पुत्र है वे इतनी जल्दी हाथी नहीं बना पायेगे परन्तु मेरे सौ पुत्र तुरन्त ही हाथी बना लेंगे, इसलिये उसने कुन्ती को कहला भेजा कि यदि वह चाहे तो गांधारी के यहां आकर हाथी पूजा कर सकती है। इस बात से कुन्ती बहुत दुखी हो गई और उसने अपने पुत्र पाण्डवों से कहा कि आज मेरी जग मे हंसी हो रही है, गांधारी के तो सौ पुत्र है वे तो अभी हाथी बना लेंगे पर में पूजा कैसे कर पाउंगी। इस पर अर्जुन ने कहा माता तुम दुखी मत हो, गांधारी तो मिटटी का ही हाथी पूजेगी पर में तुम्हें स्वंय इन्द्र का हाथी, एरावत पूजा के लिये मंगा दूंगा। तब अर्जुन ने एक पाती लिखकर धनुष पर बाण चढ़ाकर इन्द्र लोक भेजी। इन्द्र ने जब वह पत्र पढ़ा तो वह घबरा गये क्योंकि अर्जुन ने लिखा था कि यदि इन्द्र ने अपना हाथी न भेजा तो मैं अपने बाणों से सारी इन्द्रपुरी खोद डालूंगा। इस पर डर कर इन्द्र ने कहा कि ठीक है मैं अपना हाथी तो तुम्हें देता हूं पर इसे मैं हस्तिनापुर कैसे भेजूं, यह मेरा हाथी एरावत तैयार खड़ा है यदि तुम इन्द्रपुरी से अपने यहां तक का रास्ता बना सको तो इसे ले जाओ। तब श्रीकृष्ण के आशीर्बाद से अर्जुन ने स्वर्ग से पृध्वी तक अपने बाणों के द्वारा एक सीढ़ी तैयार कर दी जिस पर चलकर एरावत आया और हाथी पूजा कर कुन्ती ने महालक्षमी का उपवास पूरा किया। परन्तु कुन्ती ने हाथी पूजने से पहले अपने पुत्र की भुजा को पूजा था। इसीलिये आज भी माताएं इस दिन अपने पुत्रों की बांह पर अनन्त का डोरा बांधती हैं। 

गणगौर सावन भादों माह में बनाई जाती हैं। इन्हें बनिया लोग अधिक मानते है। ये कच्ची मिट्टी से बनते हैं। इनका मूल्य अठन्नी या एक रुपया मिल जाता है। टेसू क्वांर माह में बनता है, झांझी भी कच्ची मिटटी की बनती है। झांझी के साथ एक झिलमिली या चौमुख दिया भी कच्ची मिट्टी का बनता है। लड़की के विवाह के बाद उसकी विदा के समय एक मटकी में कुछ मिठाई और चावल लड़की के साथ दिये जाते हैं, वह मटकी भी कच्ची मिटटी की बनती है। 

इसी प्रकार जब दूल्हा बारात लेकर अपने घर से निकलता है तब कुम्हार चार फूल सरैया लेकर आता है, इनके ऊपर पैर रखकर ही दूल्हा घर से निकलता हैं, यह भी कच्ची मिटटी की बनाई जाती हैं। यह प्रथा कुम्हारों, कोरी, काछियों में है। 

 

  

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Content prepared by Mushtak Khan

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