मालवा - दशार्ण क्षेत्र के दर्शनीय स्थल --

विदिशा

महल घाट

अमितेश कुमार


यह स्थान किले के समीप ही वेत्रवती नदी के किनारे फैला हुआ है। यहाँ उपलब्ध मिले भवनों के अवशेष इसकी प्राचीनता बताते है। इस स्थान पर इस प्रकार का निर्माण कार्य संभवतः दूसरी शताब्दी ई. पू. से शुरु हो चुकी थी। नदी व उसके आस- पास से प्राचीन मूर्तियों के कई अवशेष मिले हैं। कहा जाता है कि बादशाह जहाँगीर ने बैरम खाँ के पुत्र अब्दुल रहीम खानखाना को बिदिशा की इकता (जागीर) दी थी। कुछ काल तक खानखाना ने यही निवास किया था। उत्कृष्ट मुगल- शैली में बना उनका कक्ष हौज व गुसलखाना इस बात का प्रमाण है। इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि बाणव ने कादंबरी की रचना यहीं की थी।

यहाँ के प्राचीन मंदिर को जीर्णोद्धार कर शिव मंदिर बना दिया गया है। नदी के तट पर उदयगिरि की पर्वत- श्रेणियों के विपरीत पार्श्व में कई घाट बने हुए हैं। एक घाट बैरा बाबा घाट है, जहाँ हनुमान जी का मंदिर है। इससे नीचे नदी तल पर जाने के लिए सीढियाँ बनी है। इस घाट के आगे रामघाट है। यहाँ बिखरी कई टूटी- फूटी मूर्तियाँ यहाँ की प्राचीन मंदिरों के होने का साक्ष्य है। इसके आगे १० फीट की गहराई में एक नया घाट मिला है, जहाँ एक शिवलिंग भी बना है। यह संभवतः सबसे प्राचीन घाट है। उदयगिरि की तरफ जाने के लिए नदी पार करते समय पुतरी घाट मिलता है। वहाँ मिली टूटी- फूटी मूर्तियों के कारण ही इसका नाम पुतरी (पुतलियाँ) पड़ गया। यहाँ भी कभी मंदिर रहा होगा।

विदिशा से बेसनगर जाने के मार्ग में पक्के मुरम के टीले, जहाँ दो पहियों वाले मार्ग का स्पष्ट चिंह देखा गया है। उस समय एक सुगम मार्ग के रुप में प्रयोग किया जाता रहा होगा। दो पहियों के चिंह संभवतः रथों के पहियों व गाड़ी की लौहपट वाले पहियों की रगड़ से मुरम टीले के कट- कट जाने के कारण हुआ होगा।

इस प्राचीनतम मार्ग से नदी पार करने के पश्चात दाहिनी तरफ प्रसिद्ध त्रिवेणी मंदिर का घाट मिलता है। यह स्थान अत्यंत ही रमणीक व दर्शनीय है। मंदिर, नदी तल से ऊँचाई पर बना है, जहाँ पक्की सीढियाँ बनी है। इस मंदिर के अलावा भी कई छोटे- छोटे मंदिर बने हैं। यहाँ मिले मंदिरों के अवशेष, रजत मुद्राएँ तथा यूनानी सम्राटों की आकृतियों वाली छिद्रयुक्त स्वर्ण मुद्राएँ, जो संभवतः हेलियोडोरस के माध्यम से यूनान से विदिशा लाई गई होंगी। यह प्रमाणित करते हैं कि यही स्थान वेदिस नगर का प्राचीन स्थल है, जिसका नाम कई परिवर्त्तनों के बाद वैसनगर हो गया।

 

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