शिप्रा (क्षिप्रा)
प्राचीन भारत की प्रसिद्ध पौराणिक नदियों में इसका प्रमुख स्थान है। एक अनुश्रुति के अनुसार यह नदी विष्णु के रक्त से उद्भूत हुई है। शिप्रा नदी इंदौर के दक्षिण - पूर्ण १२ मील की दूरी पर स्थित उजैनी ग्राम के समीप स्थित ककरी बर्ड़ी पहाड़ी से निकलकर, मालवा में प्रवाहित होती हुई कालू खेड़ी गाँव के समीप चंबल नदी में मिल जाती है।
ब्रह्म पुराण में इसका नाम "क्षिप्रा' प्रयुक्त हुआ है। कालिदास ने इसका उल्लेख "मेघदूत' में किया है, जिसमें इसे अवन्ति राज्य की प्रधान नदी कहा गया है। प्राचीन समृद्धिशाली विशाला "उज्जयिनी' नगरी इसी के दाहिने तट पर बसी हुई थी। वराहमिहिर ने भी इस नदी का उल्लेख किया है।
सिंधु
मालवा में प्रवाहित होने वाली सिंधु एक छोटी नदी है, जो नरवर के समीप विस्तृत भू- भाग में प्रवाहित होकर, एक महान नदी का रुप ले लेती है। इसे ही चंबल की सहायक नदी, काली सिंधु माना जाता है। मेघदूत में इसका उल्लेख "संधु' के रुप में किया है। विष्णु पुराण में इसका उल्लेख दशार्णा नदी के साथ किया गया है। सरकार ने विश्ववर्मन के गंगधार अभिलेख में, उल्लिखित गग्र्गरा नदी को आधुनिक काली सिंधु का प्राचीन नाम कहा है। पी. के भट्टाचार्या का मानना है कि काली सिंधु के अतिरिक्त मालवा में एक दूसरी सिंधु नहीं है, जो विदिशा जिले के सिंरोज तहसील के नैनवास नामक ग्राम के समीप समुद्र तल से १७८० फुट की ऊँचाई पर स्थित एक कुण्ट से निकलकर उत्तर- पूर्व दिशा में प्रवाहित होती हुई, यमुना नदी में मिल जाती है।
चर्मण्वती ( चंबल )
इस नदी की पहचान यमुना की सहायक, आधुनिक चंबल नदी से की जाती है, जो इंदौर के पश्चिमोत्तर में अरावली पर्वतमाला से निकलकर, पूर्वोत्तर की ओर पूर्वी राजस्थान में प्रवाहित होती हुई यमुना में मिल जाती है।
एक प्राचीन जनश्रुमि के अनुसार, इस नदी का अस्तित्व राजा रन्तिदेव के यज्ञ में गवालम्भन या बलिदान से उनके धर्म से टपके रक्त से हुआ है। इससे राजा रंतिदेव की बहुत कीर्ति फैली थी। कालीदास ने इसका संकेत अपने "मेघदूत' काव्य में दिया है। उन्होंने इस नदी के लिए सुरभि तनया शब्द का प्रयोग किया है।
वेत्रवती
इस नदी की पहचान, आधुनिक बेतवा नदी से की जाती है, जो भोपाल के कुमारी ग्रास के पास से निकलकर, उत्तर- पूर्व दिशा की ओर प्राचीन विदिशा नगर से प्रवाहित होती हुई, हमीरपुर ( उत्तर प्रदेश ) में यमुना में मिल जाती है। दशार्ण क्षेत्र में बहने वाली इस नदी का उल्लेख मत्स्य तथा वामण पुराण मे "वेणुमती'के रुप में किया गया है। कालिदास के मेघदूत, बराहमिहिर की वृहत्संहिता तथा वाणभ की कादंबरी में भी इसकी चर्चा मिलती है।
दशार्णा
दशार्णा की पहचान आधुनिक "धसन' नामक नदी से की जाती है, जो भोपाल से प्रवाहित होती हुई बेतरा ( वेत्रवती ) नदी में गिरती है। मार्कण्डेय पुराण में, दशार्ण देश के नाम की उत्पत्ति का कारण, दशार्णा नदी को ही बतलाया गया है, जो इस क्षेत्र से होकर प्रवाहित होती है। वायु पुराण में इस नदी के बारे में कहा गया है कि इसका उद्गम स्थल पर्वत है।
पारा
चंबल की सहायक नदी, पारा की पहचान आधुनिक पार्वती नदी से की जाती है, जो भोपाल से निकलकर, चंबल नदी में मिल जाती है। इसका उल्लेख मारकण्डे पुराण, वायुपुराण तथा वृहत्संहिता में मिलता है।
विदिशा
विल्सन ने विदिशा की पहचान आधुनिक बेस या बेसली नदी से की है। संभव है कि इस नदी के नाम की व्युत्पत्ति का संबंध बेसनगर ( विदिशा नगर ) से हो।
पारिपात्र पर्वत से निकलने वाली इस नदी का उल्लेख वायु पुराण तथा ब्रह्माण्ड पुराण में किया गया है।
निर्विन्ध्या
यह नदी विदिशा एवं उज्जयिनी नामक नगरों तथा दशार्ण ( धसन ) एवं शिप्रा नदी के मध्य स्थित थी। कमलाकांत शुक्ल के अनुसार, चंबल की सहायक नदी नेवज ही संभवतः प्राचीन निर्विध्या नदी थी, जो बेतवा व काली सिंधु के मध्य में मालवा पठार में प्रवाहित होती है। कुछ विद्वान इसका समीकरण चंबल की ही एक अन्य सहायक नदी काली सिंधु से जोड़ने की कोशिश करते हैं। हेमचंद्र राय चौधरी का मानना है कि इस नदी का उद्भव विंध्य पर्वत श्रेणियों से ही हुआ है, अतः इसे कथित नाम से अभिहित किया गया है।
इस नदी का उल्लेख वायुपुराण, कालिदास कृत मेघदूत तथा वृहत्संहिता में किया गया है।
गंधवती
धार्मिक दृष्टि के महत्वपूर्ण यह छोटी- सी नदी उज्जैन के समीप शिप्रा नदी की ही एक शाखा है। कालिदास ने "मेघदूत' में इस नदी का उल्लेख करते हुए कहा है कि उज्जयिनी में महाकालेश्वर का मंदिर व उद्यान इसी नदी के तट पर स्थित है।
गम्भीरा
यह नदी शिप्रा की एक सहायक शाखा है, जो उज्जैन के समीप प्रवाहित होने वाली छोटी- छोटी नदियों में एक है। कालिदास ने इसका उल्लेख पूर्व मेघ में किया है।