शिल्पियों एवं व्यापारियों का संगठन अमितेश कुमार |
प्राचीन काल में व्यावसायियों एवं शिल्पकारों ने अपनी सुरक्षा तथा व्यापारिक उन्नति के लिए अपने- अपने संगठन बनाये। ऐसे संघटित व्यापारिक समूह को श्रेणि, पूग, निगम के नाम से जाने जाते थे। भिन्न- भिन्न श्रेणियाँ विभिन्न व्यापारिक संगठनों का प्रतिनिधित्व करती थीं। इन संगठनों ने स्वतंत्र एवं क्रियाशील संस्था के रुप में इसने यहाँ के आर्थिक जीवन को ही नहीं राजनीतिक स्थिति भी प्रभावित किया। इन संगठनों को राज्य की तरफ से भी सहायता मिलती थी। याज्ञवल्क्य के अनुसार विभिन्न वृत्तियाँ बनाकर एक ही नगर अथवा ग्राम में निवास करने वाले विभिन्न जाति के लोगों का वर्ग ''पूग'' था। इस प्रकार ""श्रेणि'' अथवा ""पूग'' संस्थायें जाति- पाति और ऊँच- नीच के बंधन से मुक्त होकर एक ही ग्राम अथवा नगर में निवास करती थी तथा अपने हितों की सुरक्षा स्वयं करती थी। रमेशचंद्र मजूमदार के अनुसार श्रेणि समाज के भिन्न जाति के परंतु समान व्यापार और उद्योग अपनाने वाले लोगों का संगठन है। उद्योग और वाणिज्य से संबंधित लोगों का एक अन्य संगठन निगम था। श्रेणि और निगम में क्या अंतर था, इसका कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं प्राप्त होता। परमेश्वरी लाल गुप्त का अनुमान है कि, ""निगम किसी एक व्यवसाय के लोगों का संघटन न होकर अनेक व्यवसायों के समूह का संघटन था।'' इसमें मुख्य रुप से तीन वर्गों के लोग सम्मिलित थे। उद्योग का काम करने वालों का पहला वर्ग निगम था, जो ""कुलिक'' कहे जाते थे। दूसरा निगम देश- विदेश से माल लाने वाले ""सार्थवाह'' लोगों का था और तीसरा निगम ""श्रेष्ठि'' लोगों का था, जो संभवतः एक स्थान पर अपनी दुकान खोलकर स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति करते थे। श्रेष्ठि, सार्थवाह और कुलिक तीनों ने सम्मिलित रुप से ""श्रेष्ठि- साथवाह- कुलिक निगम'' की स्थापना की थी। जिस प्रकार शिल्पी श्रेणी में संगठित होकर अपने संबंधित विषयों पर कानून बनाते थे और शिल्प को नियंत्रित करते थे, उसी प्रकार निगम में संगठित व्यापारी अपने व्यापार के संबंध में व्यवस्था करते थे। ये संगठन क्रय- विक्रय, माल में मिलावट तथा नाप- तौल में अव्यवस्था पर नियंत्रण रखते थे तथा आवश्यता पड़ने पर दंड व्यवस्था का भी प्रावधान था। जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति में इस काल की १८ श्रेणियों का उल्लेख मिलता है --
श्रेणियों का संवैधानिक रुप
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