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यह स्थान सिरोज से कुछ मील की दूरी पर विदिशा की एक तहसील का मुख्यालय है। एक समय यह स्थान घनघोर जंगलों के महावन से घिरा हुआ था। यहाँ प्राचीन नंद काल के समय के नंदवंशी अहीर ठाकुर बसे हुए हैं।
यहाँ से ५ मील की दूरी पर जगदग्नि ॠषि का आश्रम है, जो अब एक टूटे हुए प्राचीन मंदिर के रुप में विद्यमान है। वे एक मृगुवंशीय ब्राह्मण थे। अभी भी इस पूरे क्षेत्र में पचासो मीलों तक भार्गव ब्राह्मण बहुतायत में बसे हैं।
यह स्थान चूँकि प्राकृतिक वन- संपदाओं व झुरमुटों के मध्य स्थित है, अतः देखने में तपोभूमि जैसा लगता है। यहाँ पहाड़ी निर्झर से एक कुण्ड बना है, जिसके दो भाग हैं -- एक भाग में सफेद दूध- सा पानी भरा है, जिसे दूधिया कुण्ड कहते हैं तथा दूसरे में साधारण पानी दूधिया कुण्ड का पानी साबुन के घोल जैसा सफेद दिखता है। इस स्थान को मंदागन कहा जाता है। माना जाता है कि यह सिद्धों का स्थान है। यहाँ मकर"- संक्रांति को प्रतिवर्ष मेला लगाता है। लोग कुण्ड में स्नान करते हैं।
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