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यह गाँव लेटीरी
से ६- ७ कोस दक्षिण की तरफ ऊँचाई पर
बसा है। यह एक पहाड़ी नदी सांपन के किनारे
बसा है। इस स्थान को मध्य भारत एवं गुजरात की
सीमा पर बसे गिरासियों ने बसाया था।
उनकी "गढ़ी' का प्रमाण अभी भी मिलता है।
शमशाबाद का पुराना नाम होहर ( पहाड़ी ) था, जिसपर
बड़गू ठाकुरों का कब्जा था१ शम्स खाँ ने पहले इनसे मित्रता की तथा
बाद में धोखे से मार डाला। इस प्रकार १७
वीं सदी में शम्स खाँ के नेतृत्व में मुसलमानों ने इसपर कब्जा कर
लिया। उसी के नाम पर इसका नाम शमशाबाद पड़ा। उसने एक छोटी
सी गढ़ी बनाई, जिसकी पूर्वी द्वार नदी की ओर थी तथा इसके
उत्तरी द्वार के तरफ कानूनगोओं की
हवेली थी। दोनों दरवाजे २० वीं सदी के तीसरे दशक
में गिर गये।
शम्स खाँ दो भाई था। वह स्वयं जहाँ निवास करता था, वहाँ
सन् १६४१ ई. में एक मस्जिद बनाई गई। इसका दूसरा
भाई, जो शम्स खाँ पठान के नाम से जाना जाता है, ने १८
वीं सदी में "शम्सगढ़' नामक एक किला बनाया, जो अभी टूटे-
फूटे अवस्था में है।
मंगलगढ़ की रानी के नौकर दोस्त, मोहम्मद ने
मड़गू ठाकुरों के वंशज बख्तावर सिंह की
मदद की। युद्ध में शम्स खाँ मारा गया तथा
बख्तावर सिंह को पुनः राज्य मिल गया।
शम्स खाँ की कब्र किले के अंदर ही बनी है।
साक्ष्यों से प्रमाणित होता है कि पहले यहाँ कई
मंदिर रहे होंगे। मराठों के समय के यहाँ दो
मंदिर हैं। एक बीच गाँव में देवला के नाम
से जाना जाता है, दूसरा गाँव के पश्चिम
में स्थित है। इसका निर्माण वहाँ के स्थानीय
लोगों ने श्रद्धाभाव से करवाया था। जैनियों की एक
बड़ी- सी हवेली भी है, जिसे "छुट्टा गुट्टा की
हवेली' के नाम से जाना जाता है। इसी
में एक जैन मंदिर भी बना है। सन् १८५७ के विद्रोह
में इस हवेली को लूटा गया था। मेवाती
बागियों ने भी कई बार इसे नुकसान पहुँचाया।
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