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अस्ति प्रशस्तविभवोज्जयिनीति नाम्या
विख्यातमालवगणस्य च राजधानी।
सिप्रातरंगजलधावितपादपद्मा
सद्मान्धकासुररिपोनेगरी पृथिव्याम्।।
ईशोत्तमांगविधुचन्द्रिकया स्फुरन्ती।
भूत्यांचितोदकभरा यदुपान्तसिप्रा।
श्री विक्रमप्रथितकीर्तिविजृम्भमाणा
गंगाम्यसूयनपरेव विभाति नित्यम्।।
उदितदिनकराभः कीर्तिरश्मीन् वितन्वन्
शशधरसितभालस्याशिषा वर्धमानः।
दिशि दिशि शुचिशास्रज्ञानराशिप्रकाशम्
वितरति नवजातो विश्वविद्यालयोडस्याम्।।
यत्र श्रीभगवान् कृष्णो विद्याप्राप्त्र्थमागतः।
मुनिवर्यो भर्तृहरिस्तपस्तप्त्वा दिनं गतः।।
अवन्तिदेशरन्नस्योज्जग्निन्या: कीर्तिवैभवम्।
कालिदासादिभिर्गीतं पनर्वक्तुं समुत्सहे।।
कासाराज्जलमादायांचलिनाध्र्यार्थमादरात्
विद्वभ्दिर्मन्त्रपूत्रं तत् पुनस्तस्मै समप्र्यते।।
उज्जयिनी इंदौर से उत्तर की ओर चम्बल की सहायक नदी क्षिप्रा के पूर्वी तट पर समुद्र तल से १६९८ फुट की ऊँचाई पर बसा है। प्राचीन नगरी वर्तमान शहर से दो मील उत्तर की ओर कोसों में फैली थी। संभवतः भूकंप अथवा शिप्रा की असाधारण बाढ़ से यह नष्ट हो गया तथा शिप्रा की असाधारण बाढ़ से यह नष्ट हो गया तथा लोग दक्षिण की ओर विस्थापित हो गये। पुरानी बस्ती नदी के दाहिने किनारे पर गढ़ के नाम से प्रसिद्ध है। इस स्थल की खुदाई से यहाँ की प्राचीन सभ्यता- संस्कृति का प्रमाण मिलता है।
उज्जैन शुरु से ही राजनीतिक धार्मिक व आध्यात्मिक गतिविधियों का केंद्र रहा है। इस नगर की ऐतिहासिक महत्ता ६ठी शताब्दी से आरंभ होती है। उस समय संपूर्ण भारत १६ जनपदों में बँटा था। इनमें से एक जनपद का नाम अवंति था। डा. भण्डारकर के अनुसार यह जनपद दो भागों में विभक्त था। उत्तरी तथा दक्षिणी जनपद की राजधानी क्रमशः उज्जैन तथा अहिष्मती था।
नामकरण :-
उज्जयिनी का शाब्दिक अर्थ है विजेता या जयनगरी। कहा जाता है कि प्राचीनकाल में त्रिपुर नामक दानव ने ब्रह्मा से वरदान प्राप्त कर देवताओं को परेशान करने लगा। देवताओं ने शिव के कथनानुसार रक्तदन्तिका चण्डिका देवी की अराधना कर उन्हें प्रसन्न किया। देवी ने प्रसन्न होकर शंकर को महापाशुपत अस्र दिया, जिसके द्वारा उन्होंने उस मायावी त्रिपुर को तीन खण्डों में काट दिया, इस प्रकार त्रिपुर को उज्जिन ( बुरी तरह से पराजित ) किया गया। इस प्रकार इस स्थान का नाम उज्जयिनी पड़ा।
अवंति का नामाकरण के बारे में सनत कुमार ने उल्लेख किया है कि प्राचीन ईशान कल्प में जब दानवों ने देवगणों को पराजित कर दिया, तब वे सुमेरु शिखर पर एकत्रित हो गये। वहीं उन्हे आकाशवाणी सुनाई पड़ी कि वे सभी कुशीस्थल जाएँ, वहीं उनके समस्या का समाधान होगा। जब वे कुशीस्थल गये, तो पाया कि वहाँ सभी लोग सदाचारी है, ॠषि गंधर्व तपस्यारत रहते हैं। सभी जगह सुख- शान्ति है। वहाँ के अनेक तीर्थों मे स्नानादि कर वे विगत कल्मष हुए तथा पुनः स्वर्ग को प्राप्त कर सके। चूँकि प्रत्येक कल्पों में यह स्थान देवता, तीर्थ, औधषि तथा प्राणियों का रक्षण ( अपन ) करती आयी है। अतः इसे अवंति के नाम से जाना गया।
अन्य नाम :-
वर्तमान नाम उज्जैन उज्जयिनी का ही अपभ्रंश है। पालिग्रंथों में इसका नाम उज्जैनी है, वहीं प्राकृत ग्रंथ इसे उजेनी लिखते हैं। रोमन इतिहासकार टॉलेमी इस स्थान का उल्लेख "ओजन' नाम से करता है। इसके अतिरिक्त इस नगर के कई अन्य नाम भी हैं -- सुवर्णश्रृंगार, कुशस्थली, अवन्तिका, अमरावत, चूड़ामणि, पद्मावती, शिवपुरी, कुमुद्वती आदि। बोधम्यन धर्मसुत्र में इसका अवन्ति नाम आया है, वहीं स्कंदपुराण का एक भाग अवन्ति- खण्ड के नाम से प्रसिद्ध है। वाल्मीकि ने अपनी रामायण में अवन्ति- राष्ट्र की चर्चा की है।
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