शिक्षा तथा साहित्य बौद्ध, जैन तथा अन्य लेखकों का साहित्य कालिदास अमितेश कुमार |
काल - निर्णय समकालीन या परवर्ती लेखकों ने भी कालिदास की तिथि- विषयक कोई निर्णायक उल्लेख नहीं दिया है। ऐसी परिस्थिति में एक, दो या तीन कालिदासों की प्रकल्पना या उनका पहली शती ई. पू. से लेकर छठी शती ई. तक के ७०० वर्षों के अंतराल में इतस्ततः प्रक्षेप इतिहासज्ञों के लिए स्वाभाविक ही है। सातवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में लिखे एहोड़े के रविकीर्ति- रचित शिलालेख में और बाणभ की कादम्बरी में कालिदास का सर्वप्रथम उल्लेख है। कालिदास के संबंध में कीथ का मत स्पष्ट है कि उनको गुप्तयुग के चरमोत्कर्ष के साथ रखा जाना चाहिए। कीथ के प्रमाण इस प्रकार हैं -- १. कालिदास ने ग्रीक शब्द जामित्र का प्रयोग किया है। २. कालिदास की प्राकृत अश्वघोष और भास के पश्चात की है। ३. कालिदास का ब्राह्मण- संस्कृति का सम्पोषण, काव्योचित वातावरण का ऐश्वर्य, अश्वमेध यज्ञ का वर्णन, रघु की विजय आदि गुप्त- युग में ही संसाध्य हैं। ४. कुमारसंभव से कुमार गुप्त की और विक्रमोर्वशीय से विक्रमादित्य की समकालीनता अभिव्यक्त होती है। ५. ४७३ ई. की वत्सभ की कुमारगुप्त संबंधी प्रशस्ति में कालिदास के ॠतुसंहार और मेघदूत के श्लोकों की स्पष्ट छाप है। कीथ उपर्युक्त प्रमाणों के बल पर कालिदास को चंद्रगुप्त द्वितीय के समकालीन ४०० ई. के लगभग रखते हैं। कालिदास को प्रथम शती ई. पू. में रखने वाले विद्वानों ने महाकवि को एक प्राचीनतर विक्रमादित्य से संबंद्ध किया है। इस विक्रमादित्य का उल्लेख प्रथम शती ई. में लिखी हुई गाथासप्तशती में इस प्रकार मिलता है --
परवर्ती जैन साहित्य के अनुसार प्रथम शती ई. के पूर्व ही विक्रमादित्य नामक राजा हुआ, जिसने शकों को उज्जयिनी से भगाया। यह घटना महावीर- निर्वाण के ४७० वर्ष पश्चात् अर्थात् ७५ ई. पू. की उल्लिखित है।
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