शिक्षा तथा साहित्य बौद्ध, जैन तथा अन्य लेखकों का साहित्य कालिदास अमितेश कुमार |
धार्मिक आस्था
कालिदास की रचनाओं से प्रतीत होता है कि शिव और शक्ति के उपासक थे। उन्होंने रघुवंश के आरंभ में पार्वती और परमेश्वर की वंदना करते हुए कहा है --
अपने उपास्य देव शिव के विषय में कवि का कहना है --
विक्रमोर्वशीय के आरंभ में उन्होंने शिव को सर्वेश्वर बताया है। इससे ऐसा न समझें कि वे कोई कट्टर शैव थे। वे विष्णु के उपासक भी थे। उनके लिए "रामाभिधानो हरि:' एक प्रत्यक्ष सत्य था और उसी राम की गौरवगाथा से रघुवंश गौरवान्वित है। वे विष्णु को जगतगुरु मानते हैं। वास्तव में कालिदास ब्रह्मा, विष्णु और शिव का अभेद मानते हैं। यथा --
फिर भी शिव के भक्त होने के नाते अपने उपर्युक्त वेदांत- दर्शन को पीछे रखकर वे ब्रह्मा के मुख से शिव के विषय में कहलाते हैं --
शैव संस्कृति के अनुरुप ही कालिदास को योग की क्षमता में अप्रतिम विश्वास था। अनेक राजाओं को योग द्वारा मुक्ति प्राप्त कराने की बात उन्होंने पुनः कही है। यथा --
कालिदास के काव्य में प्रसाद की अगाधता, माधुर्य का मधुर निवेश, पदो की कोमल कमनीयता, भावों का सौष्ठव, अलंकारों की रमणीयता आदि ने इनको विश्व सर्वश्रेष्ठ कवि बना दिया है। ""शैक्सपीयर की रुपमती प्रतिभा मिल्टन की प्रबंधमयी प्रतिभा और शैली की गीतिमयी प्रतिभा का एकत्र सम्मिलन कालिदास की कविता में दृष्टिगोचर होता है।
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