Panchtantra


पंचतंत्र

संस्कृत नीतिकथाओं में पंचतंत्र का पहला स्थान माना जाता है। यद्यपि यह पुस्तक अपने मूल रुप में नहीं रह गया है, फिर भी उपलब्ध अनुवादों के आधार पर इसकी रचना तीसरी शताब्दी के आस- पास निर्धारित की गई है। इस ग्रंथ के रचयिता पं. विष्णु शर्मा है। उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर कहा जा सकता है कि जब इस ग्रंथ की रचना पूरी हुई, तब उनकी उम्र ८० वर्ष के करीब थी।  पंचतंत्र को पाँच तंत्रों (भागों) में बाँटा गया है :-

१.मित्रभेद
२.मित्रलाभ
३.संधि- विग्रह
४.लब्ध प्रणाश
५.अपरीक्षित कारक

मनोविज्ञान, व्यवहारिकता तथा राजकाज के सिद्धांतों से परिचित कराती ये कहानियाँ सभी विषयों को बड़े ही रोचक तरीके से सामने रखती है तथा साथ ही साथ एक सीख देने की कोशिश करती है।

पंचतंत्र की कई कहानियों में मनुष्यों - पात्रों के अलावा कई बार पशु- पक्षियों को भी कथा का पात्र बनाया गया है तथा उनसे कई शिक्षाप्रद बातें कहलवाने की कोशिश की गई है। कुछ प्रमुख कथाओं को संक्षेप में दिया जा रहा है।

 

संदर्भ सूची :-

-- काव्यतीर्थ नारायण राम आचार्य, १९९५०, पंचतंत्रम्, निर्णयसागर मुद्रणालय, मुंबई।

 


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