पंचाल जनपद को प्राचीन काल
में संभवतः क्रिवि जनपद के नाम से जाना जाता था। इसका उल्लेख
शतपथ ब्राह्मण ( १३/५/४/७ ) में भी आया है ( कृवयइति पुरो पंचालानाचक्षते )। तत्पश्चात "पंचाल' नामकरण, किन परिस्थितियों
में, किस व्यक्ति विशेष ने किया, इसका स्पष्ट तथ्यात्मक प्रमाण नहीं
मिलता। पाणिनी की अष्टाध्यायी ( ४/९/९६३ )
में पंचाल के स्थान पर "प्रत्यग्रंथ' का उल्लेख है। गंगा एवं
रामगंगा के बीच प्रत्यग्रंथ जनपद स्थित था, जिसे पंचाल
भी कहा जाता है। पतंजलि ने अपने महाकाव्य
में एक जनपद के रुप में पंचाल का उल्लेख किया है।
मध्यकालीन कोशों के अनुसार पंचाल का ही दूसरा
मान ""प्रत्यग्रंथ'' था, जिसकी राजधानी अहिच्छत्र थी।
कुछ विद्वानों, जैसे मैक्डानल व कीथ का
मत है कि ॠग्वेद में उल्लेखित पचजना:, पंचक्षियतः और पंचकृष्टयः आदि शब्दों
में पाँच जन समुदायों ( यदु, तुर्वशु,
अनु, द्रुह्य और पुरु ) का बोध होता है, जिन्होंने
मिलकर एक राज्य की स्थापना की, जिसे पंचाल के नाम
से जाना जाता है। आर. सी. मजूमदार व राय चौधरी जैसे कुछ विद्वानों का
मत है कि यह राज्य क्रिवि, तुर्वशु, केशिन,
सृंजय व सोमक, इन पाँच जन- समुदायों को
मिलने से बना था। निरुक्तकार आचार्य औपमन्यव ने पंचजना का
अर्थ ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र व निषाद
से किया है, वही निरुक्तकार आचार्य
यास्कमुनि गंधर्व, पितर, देवता, असुर और
राक्षस, इन पाँच प्रकार के मानव शरीरधारी प्राणियों को "पंचजना' के
रुप में जानते हैं। ऐतरेय ब्राह्मण में यह देवता, मनुष्य, गंधर्व,
सपं और पितृगण को माना गया है। कुछ विद्वान पाँच प्रकार के गुण- कर्म-
स्वभाव वाले मनुष्यों को ही "पंचजना:' के
रुप में देखते हैं।
पुराणों में भी यह राज्य का उल्लेख कई
बार, कई रुपों में आया है। इनके अनुसार
राजा भृम्यश्व के पाँच पुत्रों ने जिस प्रदेश की
रक्षा की, वह प्रदेश पंचाल कहलाया। विभिन्न पुराणों
में इन पुत्रों के नाम से कुछ भिन्नता है, जिसका उल्लेख इस प्रकार है :-
वायुपुराण मुद्गल,
संजय, बृहदिषु, यवीनर, कपिल
मत्स्यपुराण मुद्गल, संजय, बृहदिषु,
यवीनर, कपिल
ब्रह्मपुराण मुद्गल, सृंजय, बृहदिषु,
यवीनर, क्रिमिल
हरिवंशपुराण मुद्गल, सृंजय, बृहदिषु,
यवीनर, कृमिलाश्व
भागवतपुराण मुद्गल, यवीनर, बृहदिषु, कांपिल्य,
संजय
विष्णुपुराण मुद्गल, संजय, बृहदिषु,
यवीनर, कांपिल्य
अग्निपुराण मुकुल, सृंजय, बृहदिषु,
यवीनर, क्रिमिल
पिता के पुरे राज्य का संरक्षण उपरोक्त पाँच पुत्रों के
अधीन हो गया था, जो संयुक्त रुप से पंचाल के नाम
से जाना जाता था।
पुराणों से मिलती- जुलती, बाद बौद्ध ग्रंथ चेतिय जातक
में लिखा है। इसके अनुसार चेदिराज के पाँच पुत्र थे।
सभी पुत्रों ने राज्यमंत्री कपिल के परामर्श से पृथक्- पृथक् दिशाओं
में जाकर एक- एक राज्य की स्थापना की। उत्तर दिशा
में बसाया गया राज्य उत्तर पंचाल के नाम
से प्रसिद्ध हुआ।
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