समस्त पंचाल प्रदेश पर नदियों का व्यापक भौगोलिक, राजनीतिक तथा सामाजिक प्रभाव पड़ता है। एक तरफ गंगा उत्तर पंचाल तथा दक्षिण पंचाल का सीमा निर्धारित करती है। वही कुछ नदियाँ जनपद का बाहरी सीमा निर्धारित करती है, जो शत्रु आक्रमण से जनपद की रक्षा करती थी। इन नदियों द्वारा लाई गई मिट्टी के निरंतर जमाव से यह क्षेत्र एक उर्वरक मैदान बना रहा है। जलवायु सुखद रहा है। कृषि, पशुपालन तथा अन्य उद्योग धंधे पनपते रहे। अधिकांश आबादी इन्हीं नदियों के इर्द- गिर्द बसे हैं।
पंचाल जनपद में मुख्यतः गंगा- यमुना प्रवाह तंत्र की नदियाँ पायी जाती है, जिनका क्रमवार विवरण दिया जा रहा है --
१. गंगा
गंगा पांचाल जनपद से गुजरने वाली नदियों में सबसे प्रमुख नदी है। प्राचीन भूगोलवेत्ताओं के अनुसार यह हिमालय श्रेणियों से निकलकर थोड़ी दूर प्रवाहित होकर, वर्तमान हस्तिनापुर के समीप पूर्वी समुद्र ( आरावत ) में गिरती थी। महाभारत महाकाव्य के अनुसार, यह उत्तर पंचाल तथा दक्षिण पंचाल की सीमा को निर्धारित करती थी। ॠग्वैदिक काल में संभवतः इसे विशेश महत्व नहीं दिया गया, लेकिन रामायण, महाभारत तथा पौराणिक साहित्यों में इसकी कई बार उल्लेख मिलता है। लवणासुर को मारने के लिए शत्रुघ्न ने इसे बिठुर के पास पार किया था।
हरिद्वार से वेग पूर्व प्रवाह के साथ गंगा दक्षिण, फिर दक्षिण- पूर्व की ओर बहती हुई कन्नौज के निकट रामगंगा में मिल जाती है। फिर यह दक्षिण की तरफ बहती हुई यमुना में मिल जाती है।
२. यमुना
पंचाल जनपद में यमुना नदी दूसरी महत्वपूण्र नदी मानी जाती है। ॠग्वेद, अन्य वैदिक साहित्यों तथा पुराणों में इसका उल्लेख इसकी प्राचीनता को प्रमाणित करता है। भूगोलविदों का मानना है कि ॠग्वेद काल में इसका स्वरुप अलग था, यह आज की अपेक्षा अधिक पश्चिम की ओर बहती थी। पहले इसका बहाव गंगा के समानांतर नहीं होकर स्वच्छंद एवं प्रमुख नहीं जैसा था। कुछ विद्वान इसका प्राचीन नाम अंशुमती भी मानते हैं, पर कुछ विद्वान ऐसे भी हैं, जो अंशुमती को यमुना की सहायक नदी मानते हैं।
३. चर्मयवती ( चंबल )
यमुना की सहायक नदी के रुप में यह नदी भी इस जनपद की एक महत्वपूर्ण नदी है। यह नदी दक्षिणी पंचाल की दक्षिणी सीमा का निर्धारण करती है।
४. रामगंगा रथस्था
इस नदी का उल्लेख पाणिनि ने रथस्था के रुप में किया है। उपर के भाग में इसे अभी भी "रुहुत' के नाम से जाना जाता है।
यह नदी नैनीकाल के निकट हिमालय से निकलकर गंगा के बायें किनारे से कन्नौज के पास मिल जाती है। इसकी लंबाई लगभग ९६० किलोमीटर है। इसका प्रवाह दक्षिण तथा दक्षिण- पूर्व दिशा की तरफ है।
५. काली ( इक्षुमती )
रामायण में इसको इक्षमती नाम से उल्लेख किया गया है। वहीं महाभारत तथा पुराणों में इसे क्रमशः इक्षुला तथा इक्षुलोहित के नाम से जाना जाता है। कल्हन में राजतरंगिणी में इसे "कलिका' कहा है। यूनानी लेखकों ने इसे "केलीदना' तथा "फ्रॉक्सीमोग्सी' के नाम से इसका उल्लेख किया।
वर्तमान में यह नदील मुजफ्फरपुर जिले से निकलकर फर्रूखाबाद- मैनपुरी की सीमा पर पूर्व में बहती हुई, दक्षिण तथा दक्षिण- पूर्व में मुड़कर कन्नौल के निकट गंगा में मिल जाती है।
६. ईशन
यह नदी अलीगढ़ से दक्षिण- पूर्व दिशा से निकलती है तथा एटा मैनपूरी जिलोंसे बहता हुआ फर्रूखाबाद में प्रवेश करता है। फिर कानपुर देहात के बिल्हौर तहसील के अंतर्गत महगवां से दक्षिण- पूर्व दिशा में बहती हुई अंतः गंगा में मिल जाती है।
७. रिन्व ( अकिंरद )
यह ""अरिन्द'' नाम से भी जानी जाती है। इसका उद्गम भी अलीगढ़ ही है। इसका प्रवाह टेढ़ा- मेढ़ा है। यह इटावा तथा मैनपुरी का सीमा निर्धारित करती हुई फर्रूखाबाद जिले के सकखा नामक स्थान पर मिलती है। अंततः कानपुर जिले से होकर बहते हुए फतेहपुर जिले में जाकर यमुना में मिल जाती है।
इस नदी के किनारे कई धार्मिक महत्व के स्थान बसे हैं, जहाँ ५ वीं सदी से ११ वीं सदी तक के निर्मित मंदिर बने हैं। इससे पता चलता है कि यह नदी भी धार्मिक रुप से महत्वपूर्ण होगी।
८. पाण्डु
यह गंगा की सहायक नदी है, जो सेतिर्वा इटावा जिला के समीप फर्रूखाबाद में प्रवेश करती है और फिर बहकर कानपुर जिला होते हुए फतेहपुर जिले में आकर गंगा में मिल जाती है।
९. नोन
इस नाम से दो नदियाँ हैं, जो कानपुर जिले के निचले इलाके में बहती है। पहली नदी के किनारे बरहट, हिगुरपुर, पिंगुपुर आदि जैसे महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल है। बिठुर के समीप गंगा में मिल जाती है। इसी नाम की दूसरी नदी कानपुर जिले के दक्षिण के घाटमपुर तहसील में दक्षिण दिशा की ओर बहती है तथा फतेहपुर में जाकर यमुना में मिल जाती है। इसके किनारे बेंदा, छंवर
तथा कुरसेड़ा स्थित है।
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