शाहबाद :-
यह स्थान अहिच्छत्रा से ३५ कि.मी. उत्तर- पश्चिम की ओर अवस्थित है। इसके
समीप स्थित खंडहर से ताम्रयुग के
शस्रास्र मिले हैं। यहाँ से प्राप्त मानवाकृति
वाला विशेष अस्र राष्ट्रीय संग्रहालय दिल्ली
में सुरक्षित है।
आशानगरी ( आसई )
:-
यह स्थान इटावा जिले एक दिल से ६ कि.मी. दक्षिण की ओर
यमुना के उत्तर तट की ओर अवस्थित है। यह नगरी दक्षिण पंचाल की
शासन स्थली रह चुकी है। अरब इतिहासकार अलबरुनी ने
भी "आसी' के नाम से इसकी चर्चा की है। यहाँ
से अनेक प्राचीन सिक्के व प्रस्तर मूर्तियाँ
मिली हैं।
पूर्व मध्यकाल के मिले एक अभिलेख में
राजा जयचंद्र के सेनापति वीरसेन के पुत्र की विजय का उल्लेख है। इसी दौरान गहड़वालों के
राजनैतिक उत्कर्ष के साथ इस नगरी का
भी आर्थिक तथा सांस्कृतिक विकास हुआ।
बिसौली :-
शाहबाद के निकट स्थित इस स्थान से
भी ताम्रयुगीन शस्रास्र प्राप्त हुए हैं।
मदारपुर :-
मुरादाबाद जिले के अंतर्गत इस स्थान
से कई ताम्रकालीन लघु मानवाकृतियाँ प्राप्त हुई हैं।
माकन्दी :-
मकरन्दनगर के नाम से भी जाने जाने
वाला यह स्थान कन्नौज के समीप स्थित है। यहाँ
से कई पुरातन अवशेष प्राप्त हुए हैं।
मूँज :-
यह स्थान इटावा तहसील में इटावा से २४
मील उत्तर- पूर्व की ओर स्थित एक गाँव है। कहा जाता है कि महाभारत काल
में यहाँ के राजा मूर्तध्वज ने अपने दो पुत्रों के
साथ मिलकर युधिष्ठिर से युद्ध किया था।
मूर्तध्वज के दुर्ग का भग्नावशेष अब
भी यहाँ बताया जाता है।
बिसौली :-
यह स्थान बदायूँ से २४ मील की दूरी पर
उत्तर- पश्चिम की ओर स्थित है। लोगों का
मानना है कि इस स्थान का पुराना नाम बिहसन था। यहाँ एक प्राचीन खेड़ा है।
इटावा :-
कहा जाता है कि इसका प्राचीन नाम इष्टिकापुरी था। इसका उल्लेख भविष्यपुराण
में मिलता है।
आलवी :-
कनिंघम ने इस स्थान की पहचान नेवल
से की है। यहाँ से कई महत्वपूर्ण प्राचीन सिक्के,
मूर्तियाँ एवं पुरावशेष मिले हैं। कहा जाता है कि यह स्थान
उन २० ऐतिहासिक स्थलों में से एक है, जहाँ- जहाँ
बुद्ध ने अपना वर्षाकाल बिताया था।
फाह्यान ने इसका उल्लेख "अलो' नाम से किया है। उसने इसे कन्नौज
से दक्षिण- पूर्व की ओर बतलाया। ह्मवेनसांग ने इसे नव- देव- कुल कहा है।
मूसानगर :-
यह स्थान यमुना नदी के किनारे पूर्व की तर #ु स्थित है। यहाँ
से कई प्राचीन अवशेष प्राप्त हुए हैं। उनमें ईसा पूर्व प्रथम
सदी की एक अभिलिखित ईंट तथा शिव- पार्वती की
रेलिंग पर उत्कीर्ण मूर्ति महत्वपूर्ण हैं। यहाँ
से प्राप्त इस ईंट को देवमित्र नामक
राजा के अश्वमेघ यज्ञ से जोड़ा गया है।
भरेह :-
यह स्थान चर्मण्वती- यमुना के संगम स्थान पर
बसा है। यहाँ एक दुर्ग होने का प्रमाण
मिलता है। भारशिवों के काल का भारेश्वर महादेव का
मंदिर भी यही है।
काशीपुर :-
यह स्थान मुरादाबाद और ठाकुरद्वारे के
बीच स्थित है। यहाँ द्रोणाचार्य के नाम
से एक द्रोणसागर बना है। इसके अलावा यहाँ स्थित प्राचीन खण्डहर अति
विशाल है। खण्डहरों से प्राप्त ईंटे तत्कालीन ईंटों की अपेक्षा
बड़ी थी। यहाँ से पंचाल मुद्राएँ भी
मिली है।
इसके अलावा भी पंचाल क्षेत्र में कई
अन्य स्थान है, जो ऐतिहासिक तथा पुरातात्विक दृष्टि
से बहुत महत्वपूर्ण है। कई स्थानों पर
उत्खनन की आवश्यकता है।
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