रुहेलखण्ड |
Rohilkhand |
|
संक्षिप्त इतिहास |
रुहेलखण्ड का संक्षिप्त इतिहास प्राचीन काल में कुमायूँ के मैदानी क्षेत्र से लेकर चम्बल नदी तथा गोमती नदी तक विस्तृत यह क्षेत्र प्राचीन काल से छठी शताब्दी ई० पू० तक पंचाल राज्य के अन्तर्गत रहा। इसके पंचाल नामकरण के बारे में अनेक मान्यतायें हैं जैसे भरतवंशी राजा भ्रम्यश्व के पाँच पुत्रों में बंटने के कारण अथवा कृवि , तुर्वश , केशिन , सृंजय एवं सोमक पाँच वंशों द्वारा यहाँ राज्य करने के कारण प्राचीन काल में इसका नाम पंचाल पड़ा इत्यादि। प्राचीन काल में जब आर्य शक्ति का केन्द्र ब्रह्मावर्त था तब पंचाल एक समुन्नत राज्य था। राजा भरत के नाम पर हमारे देश का नाम भारत पड़ा , इन्ही सम्राट भरत का राज्य सरस्वती नदी से लेकर अयोध्या तक फैला हुआ था तब गंगा - यमुना के दोआब में स्थित पंचाल उनके राज्य का सम्पन्न भाग था। सम्राट भरत के ही काल में राजा हस्ति हुए जिन्होंने अपनी राजधानी हस्तिनापुर बनाई । राजा हस्ति के पुत्र अजमीढ़ को पंचाल का राजा कहा गया है। राजा अजमीढ़ के वंशज राजा संवरण जब हस्तिनापुर के राजा था तो पंचाल में उनके समकालीन राजा सुदास का शासन था। राजा सुदास का संवरण से युद्ध हुआ जिसे कुछ विद्वान ॠग्वेद में वर्णित ' दाशराज्ञ युद्ध ' से समीकृत करते हैं। राजा सुदास के समय पंचाल राज्य का बहुत विस्तार हुआ । राजा सुदास के पश्चात संवरण के पुत्र कुरु ने अपनी शक्ति बढ़ाकर पंचाल राज्य को अपने अधीन कर लिया तभी यह
राज्य संयुक्त रुप से 'कुरु - पंचाल ' कहलाया। परन्तु कुछ समय बाद ही पंचाल पुन: स्वतन्त्र हो
गया।
जैन ग्रंथ ' विविध तीर्थकल्प ' में पंचाल के राजा ' हरिषेण ' का उल्लेख मिलता है जिसे यहाँ का
10 वाँ
चक्रवर्ती राजा कहा गया है। जातक ग्रंथों द्वारा बौद्ध युग के जो वर्णन प्राप्त हुए हैं उनके अनुसार तत्कालीन युग में पंचाल का व्यापारिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण स्थान था । बौद्धकाल में पंचाल एक सम्पन्न राज्य था जहाँ
हिन्दू, बौद्ध , जैन धर्म फलता - फूलता रहा। गुप्तकाल -- गुप्तकाल में समुद्रगुप्त द्वारा अधिकार किये जाने के बाद लगभग दो सौ वर्षों तक पंचाल गुप्त राजाओं के अधीन रहा तथा गुप्त युग के अधीन रहा तथा गुप्तयुग के स्वर्ण युग का भागीदार रहा । इस काल में पंचाल व अहिच्छत्रा का सांस्कृतिक विकास प्रचुरता से हुआ अहिच्छत्रा के पुरातात्विक उत्खनन में गुप्तकालीन पुरावशेष बड़ी संख्या में प्राप्त हुए हैं जिनमें जैन , बौद्ध, हिन्दू मूर्तियों, स्थापत्य निर्माण (मन्दिर व अन्य) आदि प्रमुख उल्लेखनीय है। यहाँ से प्राप्त गुप्त नामधारी जयगुप्त, रुद्रगुप्त, दामगुप्त के सिक्के भी यहाँ गुप्तों के अधिपत्य को दर्शाते हैं। इसके अतिरिक्त
क्षेत्र के शाहजहाँपुर जिले में पुरातात्विक
सर्वेक्षण में शोधकर्ता डॉ० राजीव पाण्डेय को
अनेक पुरास्थलों से गुप्तकालीन स्थापत्य - निर्माण के अवशेष के
रुप में ईटे, प्रस्तर मूर्तियां , मृण्मूर्तियां एवं
मृण्पात्रों की प्राप्ति से भी इस क्षेत्र में गुप्तकालीन
सांस्कृतिक गतिविधियों के प्रमाण
मिलते हैं। प्राचीन उत्तरी पंचाल क्षेत्र (
वर्तमान रुहेलखण्ड ) से महत्वपूर्ण गुप्तकालीन कृति के
रुप में शाहजहाँपुर से प्राप्त नारी की
स्वर्ण मूर्ति प्रमुख उल्लेखनीय है जिसे चौथी - पाँचवीं श० की गुप्तकालीन कृति
माना जाता है ,जो वर्तमान समय में
लखनऊ के राज्य संग्रहालय में है। मौखरी काल से ही अहिच्छत्रा के वैभव का स्थान कन्नौज ने ले लिया । मौखरियों के पश्चात 7 वीं श० ई० में हर्ष के काल में अहिच्छत्रा का कन्नौज के अन्तर्गत काफी विकास हुआ। हर्ष के समय 7 वीं श० ई० में भारत आए चीनी यात्री ह्मवेनसांग ने अहिच्छत्रा नगर (वर्तमान बरेली जनपद में ) का विवरण अपनी पुस्तक में लिखा है। ह्मवेनसांग के अनुसार --' अहिच्छत्रा हर्ष के काल में एक वैभवशाली नगर था, यहाँ बौद्ध एवं ब्राहम्ण दोनों ही धर्मों का प्रभाव था। यहाँ 12 बौद्ध मठ थे जिनमें 1000 भिक्षु रहा करते थे साथ ही यहाँ 9 विशाल हिन्दू मन्दिर भी थे। पूरा नगर 17-18 ली अर्थात तीन मील क्षेत्रफल में था। ' इसके अतिरिक्त अहिच्छत्रा से लगभग 120 कि० मी० दूर शाहजहाँपुर जनपद के बाँसखेड़ा नामक ग्राम से 1894 ई० में प्राप्त " हर्ष के बाँसखेड़ा ताम्र अभिलेख "की प्राप्ति से भी हर्ष के काल में वर्तमान रुहेलखण्ड क्षेत्र में हर्षकालीन सांस्कृतिक गतिविधियों के पुरातात्विक प्रमाण भी प्राप्त होते हैं । हर्ष के पश्चात भी यह क्षेत्र पाल - राष्ट्रकूट - प्रतिहारों के शासन काल में कन्नौज के अन्तर्गत पूर्णतय: आबाद रहा ।
पुरातात्विक साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि
प्राचीन उत्तरी पंचाल की राजधानी अहिच्छत्रा (
वर्तमान रुहेलखण्ड के बरेली जिले
में स्थित ) का विध्वंस लगभग 11 वीं श० ई०
में हुआ। सम्भवत: इस विध्वंस के कारण महमूद
गजनबी के
लगातार आक्रमण थे। इस विध्वंस के पश्चात अहिच्छत्रा का प्राचीन
वैभव समाप्त हो गया तथा इस सम्पूर्ण क्षेत्र पर
मुस्लिम शक्तियां अपना आधिपत्य स्थापित करने
में लग गई। 1200 ई० तक इस क्षेत्र में मुस्लिम शक्तियां सक्रिय हो चुकी थी। 1196 ई० में महमूद गौरी की प्रेरणा से कुतुबद्दीन ऐवक ने वर्तमान मुरादाबाद जिले के सम्भल तथा बदायूँ जिले के बदायूँ नगर पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया था।
इस प्रकार मुस्लिम
शक्तियों ने 13
बीं श० ई० तक इस पूरे रुहेलखण्ड क्षेत्र
से कठेहरों को पराजित करके अपना प्रभुत्व स्थापित कर
लिया तथा अंग्रेजों के भारत में शासन
से पूर्व तक यह क्षेत्र मुसलमानों के
अधीन रहा। इस प्रकार दाऊद खाँ के इस कठेर क्षेत्र पर आधिपत्य स्थापित करने के बाद उनके अन्य उत्तराधिकारियों ने यहाँ शासन किया तथा रुहेलों द्वारा इस क्षेत्र पर शासन करने के परिणामस्वरुप 1730 ई० से यह क्षेत्र (जो पूर्व में पंचाल व कठेर था) "रुहेलखण्ड" के नाम से जाना जाने लगा।
भारत में अंग्रेजों के आगमन के बाद 1763
से रुहेला सरदारों द्वारा अंग्रेजों के
विरुद्ध शुजाउद्दौला को सहायता देने के
साथ ही रुहेलों का अपकर्ष प्रारम्भ हो गया तथा
1774
से 1801 ई० तक यह रुहेलखण्ड क्षेत्र अवध के नवाब
शुजाउद्दौला के अधीन हो गया । 1857 की क्रान्ति अथवा प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम में बरेली के लोगों ने बढ़ - चढ़कर भाग लिया। दिल्ली के अन्तिम मुगल शासक बहादुरशाह जफर ने पूर्व रुहेला नवाब हाफिज रहमत खाँ के पोते नवाब खान बहादुर खान को रुहेलखण्ड का नवाब घोषित कर दिया। 1857 के विद्रोह में रुहेलखण्ड की जनता ने नवाब खान के नेतृत्व में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह व संघर्ष किया। यद्यपि 1857 की क्रान्ति असफल हो गयी परन्तु देश के स्वतन्त्र होने ( 1947 ई० ) तक यहाँ अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष तथा आन्दोलन चलते रहे। |
| विषय सूची | |
Content Prepared by Dr. Rajeev Pandey
Copyright IGNCA© 2004
सभी स्वत्व सुरक्षित । इस प्रकाशन का कोई भी अंश प्रकाशक की लिखित अनुमति के बिना पुनर्मुद्रित करना वर्जनीय है ।