रुहेलखण्ड के गाँवों में होली के
उपरान्त लोग होली मिलन हतु सामूहिक स्थल पर एकत्रित होते हैं। इस अवसर पर लोग गोलाकार श्रृँखला बनाकर नृत्य करते हैं और विभिन्न प्रकार की चौपाइयाँ गाते हैं। यह चौपाई परम्परागत है । ढोल की संगत पर गाई जाने वाली इन चौपाइयों में गाँव के समस्त लोग हिस्सा लेते हैं।
इन चौपाइयों में से कुछ इस प्रकार हैं --
चौपाई
सं० - (i )
चौपाई का विषय -- रामचन्द्र जी की वन यात्रा
वन को चले दो भाई री माई इन्हें समझावो न कोई,
आगे -आगे राम चलत हैं,पीछे से लक्ष्मण भाई री माई,
इन्हें समझावो न कोई ।
ताके पीछे चलैं जानकी शोभा बखानी न जाए री माई
इन्हें समझावो न कोई ।
राम बिना मेरी सूनी आयोध्या, लक्ष्मण बिना ठकुराई,
सीता बिना मेरी सूनी रसुइया ,जे दुख सहे न जाये री,
इन्हें समझावो न कोई ।
अरे भादों की रैन अन्धेरी पवन चलैं पुरवाई,
इन्हें समझावो न कोई ।
वन को चले दो भाई री माई इन्हें समझावो न कोई,
आगे -आगे राम चलत हैं,पीछे से लक्ष्मण भाई री माई,
इन्हें समझावो न कोई ।
चौपाई
सं० - (ii )
चौपाई का विषय -- मन्दोदरी द्वारा रावण को यह समझाना कि वह सीता राम को लौटा दें।
उठ देखो समुद्र जी के तीर रे बलम
जनक सिया जी के पति आए
पड़े -पड़े दिन बहुतक हुए गए
समुद्र बधतु है नाए रे बालम
जनक सिया जी के पति आए
सिला काट हनुमत लै आए
उसई से सेतु बधो रे बालम
जनक सिया जी के पति आए रे
चन्दन कटवावो रथ बनवावो
सिये लैओ बैठाए रे बालम
जनक सिया जी के पति आए
क्यों मन डरपे चतुर कामिनी
क्यों मन शंका खाए रे बालम
जनक सिया जी के पति आए
महादेव शिव शंकर वश में
काल बँधो पाटी से हमारे
जनक सिया जी के पति आए
उठ देखो समुद्र जी के तीर रे बलम
जनक सिया जी के पति आए।
चौपाई
सं० - (iii )
चौपाई का विषय -- राम के बनवास
के दौरान की घटनाओं का संक्षिप्त विवरण
राम लखन सिया कैसे रे कहाओ हनुमत वीर
पहले राम तपे वन में तपसी दोनों वीर
पंचवेदिका तापे रे सरजू के तीर
राम लखन सिया कैसे रे कहाओ हनुमत
वीर
दूजे मया मृग मारन को निकले दोनों वीर
बिना मारे मृग को रे अचबए को नीर
राम लखन सिया कैसे रे कहाओ हनुमत
वीर
तीजै रौजा छल कीनो सीता जी के साथ
सिया हरी बन में से रे माता भिक्षा डार
राम लखन सिया कैसे रे कहाओ हनुमत
वीर
चौथो सोंच जटायु को दशरथ जी को सोंच
सिया हरि बन में से तिनहु को सोंच
राम लखन सिया कैसे रे कहाओ हनुमत
वीर
पंचाए तस्सुरा मारन को खरदूषण मार
नार ताडुका मारी से नक लीनी काट
राम लखन सिया कैसे रे कहाओ हनुमत
वीर
छठे वाण छल से मारो प्रभु एकहे वाण
राज दियो सुग्रीवो रे अंगद जुवराज
राम लखन सिया कैसे रे कहाओ हनुमत
वीर
सातवें सायथ शादी रे अंजन के लाल
जाए समुद्र में छाए रे दल उल्ले पार
राम लखन सिया कैसे रे कहाओ हनुमत
वीर
आठमे पद में आठासी से लौके भगवान
सेतु बाँध दल उतरे रे दल पल्ले पार
राम लखन सिया कैसे रे कहाओ हनुमत
वीर
नवें वाण झर लागो रे धरती धर्म द्वार
हर की शरणा लागी रे उभरें रे प्राण
राम लखन सिया कैसे रे कहाओ हनुमत
वीर
दसए रावण हाँसो रे जुद खेलो अथाय
सीधो चलो बैकुंठो रे रघुवर के हाथ
राम लखन सिया कैसे रे कहाओ हनुमत
वीर
एकादशी गड़ तोरो रे सिया लाए लिवाए
जाए अवधपुर छाए रे घर मंगल चार
राम लखन सिया कैसे रे कहाओ हनुमत
वीर
चौपाई
सं० - (iv )
नीम पेठ आ गईं नींव निवौरी
आम पे आ गए अम्बा
होली पे आ गए पान फूल
पनिहारी पे जोवन धल्ला
तेरी कौन जात परिहार ठाड़ी होई जा री।
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