विभिन्न ॠतुओं को आधार बनाकर गीत लिखने की परम्परा अति प्राचीन है। सावन ॠतु को आधार बनाकर असंख्य गीत लिखे गये हैं। रुहेलखण्ड क्षेत्र में भी ऐसे गीतों का दर्शन होते हैं। इसी प्रकार के गीत हैं--
गीत
सं०--(i )
ऊँची अटरिया झझन किवरिया,
कोरी आवे झरोकन व्यार जी।
विजनी डुलाउत सास नै देखो,
कोई सास को मुडवा पिराने जी।
लावौ ना अम्मा मेरी कसी खुरपिया,
कोई जंगल बूटी लै आवै जी।
कोई लावै ना रनिया करेजी जी।
लावै ना जम्मा मेरी पाँचौ से कपड़े,
कोई लावौ ना पाँचौ हतियार जी।
कोई रनिया करेजी लै आवे जी,
लेउ ना अम्मा मेरी रनिया करेजी कोई घिस-घिस मुडवा लगावौ
कोह कौ -- बेटा मेरे छलवल करत हौ,
कोई लाए न हिरन करेजी जी।
तुमरे पीहर में रनिया ब्याह उठो है,
कोई तुम्हे पीहर पहुचावें जी।
न मेरे भैया न भतीजो,
कोई कि घर उठो है ब्याहो जी।
तुमरे पिछले रनिया भैया जो जनमें,
कोई उन्हीं को उठो है ब्याहो जी।
आपको तो राजा ने घुडेला सजाये,
कोई रनिया को डुलिया सजायी जी।
एक वन नागो दूजो वन नागो,
कोई तिजवन पहुँचे वन जाये जी।
न हिया चिरही न दिया चिरमगली,
कोई वन में काहे ले आए जी।
पहली कटारी जब मारी है राजा नै,
कोई लै लई वैयान बीच जी।
दूसरी कटारी जब मारी राजा नै,
कोई लै लई जंघन बीच जी।
बिना खता के राजा काहे कौ मारौ,
कोई बाई कोख नन्द लाल जी।
तीसरी कटारी जब मारी है राजा नै,
तीसरी में तजे है प्राण जी।
बाई हाथ राजा लई है करेजी,
कोई दाहिने लहै है नन्द लाल जी।
मलिन -मलिन में बेचत फीरत है,
कोई लाल नै लैलो मौल जी।
कई रुपैया जाको मोल बुलत है,
कोई कइयो रुपैया दै दो जी।
लाख रुपैया जाको मोल बुलत है,
कोई पाँच रुपैया दे दो जी।
लेयो न अम्मा मेरी रनिया करेजी,
कोई घिस- घिस मुडवा लगावोजी।
लावो न अम्मा मेरी पाँचों से कपड़े
होई हम जोगी हो जावेगें।
चन्दा सा मेरी बहू गई है सूरत सी ससुराल जी
काहो को बेटा मेरे सोच करत हो दो--दो व्याहंगी
करा एक गोरी एक साँवली जी।
गीत
सं०--(ii )
नन्हीं - नन्हीं बुदियाँ सावन का मेरा बरसना जी।
पहला झूला -झूला मैनें बावुल जी के राज्य में,
सारी -सारी रतियां बागों का मेरा झूलना जी।
पहला झूला -झूला मैनें भैया जी के राज्य में,
सारी -सारी रतियां सखियों संग मेरा झूलना जी।
एक झूला- झूला मैंने ससुरा जी के राज्य में,
सारी -सारी रतियां महलों में मेरा झूलना जी।
एक झूला- झूला मैंने ससिया जी के राज्य में,
सारी -सारी रतियां सेजों पर मेरा झूलना जी।
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