रुहेलखण्ड

Rohilkhand


गृहस्थाश्रम का महत्व

गृहस्थाश्रम के महत्व पर हमारे धर्मशास्रकारों ने अनेक रुपों में प्रकाश डाला है। गौतम (3.3 ) का कहना है कि संतति उत्पन करने के कारण गृहस्थ अन्य तीनों, ब्रह्मचर्य, वानप्रस्थ एवं सन्यास, आश्रमों की आधारशिला है। मनु ने इसी भाव को इससे भी सुंदर रुप से प्रस्तुत किया है। इतना ही नहीं आगे चलकर वे कहते हैं , जिस प्रकार छोटी- बड़ी नदियाँ अंत में समुद्र में मिल जाती है, उसी प्रकार सभी आश्रमों के लोग गृहस्थ से ही आश्रय पाते हैं। महा. शांति ( 270.6- 7 ) में कहा गया है "जिस प्रकार सभी प्राणी माता पर आश्रित होते हैं, उसी प्रकार सभी आश्रम गृहस्थों पर आश्रित होते हैं। इसी आधार पर तो कालिदास ने भी इसे "सर्वोपकारक्षम आश्रम' कहा है (रघु. 5.10 )। इसी संदर्भ में शांति पर्व में अन्यंत्र ( 12.12 ) में कहा गया है" "यदि तराजू पर तोला जाय तो एक पलड़े पर अकेला गृहस्थाश्रम रहेगा और दूसरे पर अन्य तीनों आश्रम एक साथ।' इसके विषय में लगभग यही भाव रामा.( अयोध्या. 106.12 ) में भी पाया जाता है। महा.( शांति. 270.11-12 ) कपिल ने उन लोगों की कठोर शब्दों में भत्र्सना की है, जो यह भ्रम फैलाते हैं कि गृहस्थ को मोक्ष संभव नहीं। इसकी श्रेष्ठता एवं उच्चता के महत्व की सभी शास्रकारों द्वारा मुक्तकंठ से प्रशंसा की गयी है।

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Content Prepared by Dr. Rajeev Pandey

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