रुहेलखण्ड

Rohilkhand


संस्कारों का मानव जीवन से सम्बन्ध

संस्कारों के अध्ययन से पता चलता है कि उनका सम्बन्ध संपूर्ण मानव जीवन से रहा है। मानव जीवन एक महान रहस्य है। संस्कार इसके उद्भव, विकास और ह्रास होने की समस्याओं का समाधान करते थे। जीवन भी संसार की अन्य कलाओं के समान कला माना जाता है। उस कला की जानकारी तथा परिष्करण संस्कारों द्वारा होता था। संस्कार पशुता को भी मनुष्यता में परिणत कर देते थे।

जीवन एक चक्र माना गया है। यह वहीं आरम्भ होता है, जहाँ उसका अंत होता है। जन्म से मृत्यु पर्यंत जीवित रहने, विषय भोग तथा सुख प्राप्त करने, चिंतन करने तथा अंत में इस संसार से प्रस्थान करने की अनेक घटनाओं की श्रृंखला ही जीवन है। संस्कारों का सम्बन्ध जीवन की इन सभी घटनाओं से था।

हिंदू धर्म में संस्कारों का स्थान

संस्कारों का हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण स्थान था। प्राचीन समय में जीवन विभिन्न खंडों में विभाजन नहीं, बल्कि सादा था। सामाजिक विश्वास कला और विज्ञान एक- दूसरे से सम्बंधित थे। संस्कारों का महत्व हिंदू धर्म में इस कारण था कि उनके द्वारा ऐसा वातावरण पैदा किया जाता था, जिससे व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास हो सके।

हिंदुओं ने जीवन के तीन निश्चित मार्गों को मान्यता प्रदान की -
1. कर्म- मार्ग, 2. उपासना- मार्ग तथा 3. ज्ञान- मार्ग। यद्यपि मूलतः संस्कार अपने क्षेत्र की दृष्टि से अत्यंत व्यापक थे, किंतु आगे चलकर उनका समावेश कर्म- मार्ग में किया जाने लगा। वे एक प्रकार से उपासना- मार्ग तथा ज्ञान- मार्ग के लिए भी तैयारी के साधन थे।

कुछ मनीषियों ने संस्कारों का उपहास किया है, क्योंकि उनका सम्बन्ध सांसारिक कार्यों से था। उनके अनुसार संस्कारों द्वारा इस संसार सागर को पार नहीं किया जा सकता। साथ में हिंदू विचारकों ने यह भी अनुभव किया कि बिना संस्कारों के लोग नहीं रह सकते। आधार- शिला के रुप में स्वतंत्र विधि- विधान एवं परम्परा के न होने से चार्वाक् मत का अंत हो गया। यही कारण था, जिससे जैनों और बौद्धों को भी अपने स्वतंत्र कर्मकाण्ड विकसित करने पड़े।

पौराणिक हिंदू धर्म के साथ वैदिक धर्म का ह्रास हुआ। इसके परिणाम- स्वरुप, जो संस्कार घर पर होते थे, वे अब मंदिरों और तीर्थस्थानों पर किये जाने लगे। यद्यपि दीर्घ तथा विस्तृत यज्ञ प्रचलित नहीं रहे, किंतु संस्कार जैसे यज्ञोपवीत तथा चूड़ाकरण, कुछ परिवर्तण के साथ वर्तमान समय में भी जारी हैं।

संस्कारों की उपयोगिता

प्राचीन समय में संस्कार बड़े उपयोगी सिद्ध हुए। उनसे व्यक्तित्व के विकास में बड़ी सहायता मिली। मानव जीवन को संस्कारों ने परिष्कृत और शुद्ध किया तथा उसकी भौतिक तथा आध्यात्मिक आकांक्षाओं को पूर्ण किया। अनेक सामाजिक समस्याओं का समाधान भी इन संस्कारों द्वारा हुआ। गर्भाधान तथा अन्य प्राक्- जन्म संस्कार, यौनविज्ञान और प्रजनन- शास्र का कार्य करते थे। इसी प्रकार विद्यारम्भ तथा उपनयन से समावर्तन पर्यंत सभी संस्कार शिक्षा की दृष्टि से अत्यंत महत्व के थे। विवाह संस्कार अनेक यौन तथा सामाजिक समस्याओं का ठीक हल थे। अंतिम संस्कार, अंत्येष्टि, मृतक तथा जीवित के प्रति गृहस्थ के कर्तव्यों में सामंजस्य स्थापित करता था। वह तथा पारिवारिक और सामाजिक स्वास्थ्य विज्ञान का एक विस्मयजनक समन्वय था तथा जीवित सम्बन्धियों को सांत्वना प्रदान करता था।

संस्कारों का ह्रास

आंतरिक दुर्बलताओं तथा बाह्य विषय परिस्थितियों के कारण कालक्रम से संस्कारों का भी ह्रास हुआ। उनसे लचीलापन तथा परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तन की क्षमता नहीं रही, इनमें स्थायित्व आ गया। नवीन सामाजिक व धार्मिक शक्तियाँ समाज में क्रियाशील थी। बौद्ध धर्म, जैन धर्म तथा भक्ति मार्ग ने जनसाधारण का ध्यान कर्मकाण्ड से हटा कर भक्ति की ओर आकर्षित किया। भाषागत कठिनता भी संस्कारों के ह्रास के लिए उत्तरदायी थी। समाज का आदिम स्थिति से विकास और मानवीय क्रियाओं की विविध शाखाओं का विशेषीकरण भी संस्कारों के ह्रास का कारण सिद्ध हुआ। इस्लाम के उदय के पश्चात् संस्कारों की विभिन्न क्रियाओं को स्वतंत्रता पूर्वक करना सम्भव नहीं था। पाश्चात्य शिक्षा- पद्धति और भौतिक विचारधारा से भी इनको बड़ा धक्का लगा। (शर्मा, डी० डी० हिन्दू संस्कारों का - ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक समीक्षण)

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Content Prepared by Dr. Rajeev Pandey

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