इस क्षेत्र की वेशभूषा नगरीय क्षेत्र में पृथक् तथा ग्रामीण क्षेत्र
में पृथक् पारम्परिक ढंग की है, जिसका वर्णन अधोलिखित है --
नगरीय वेशभूषा :-
हिन्दू व मुस्लिम
महिला वेशभूषा |
पंजाबी महिला
वेशभूषा |
रुहेलखण्ड क्षेत्र के नगरीय भागों में सामान्यतः उत्तर भारत के अन्य भू-भागों की भाँति ही वस्र धारण किये जाते हैं, जिनमें पुरुष पैंट, शर्ट, कुर्ता- पैजामा, कोट, स्वेटर, टोपी आदि धारण करते हैं। स्रियों के प्रमुख वस्रों में विवाहित स्रियाँ मुख्य रुप से साड़ी, ब्लाउज, शाल आदि धारण करती है, जबकि लड़कियों व अविवाहित स्रियाँ सलवार- सूट, जींस, टॉप व शर्ट धारण करती है, जबकि छोटी बच्चियाँ फ्रॉक आदि धारण करती है। पंजाबी स्रियाँ सलवार- सूट, दुपट्टा धारण करती हैं, जबकि पंजाबी पुरुष पैंट, शर्ट या कुर्ता- पैजामे के साथ सिर पर पगड़ी भी पहनते हैं। |
ग्रामीण वेशभूषा :-
ग्रामीण महिला
वेशभूषा |
ग्रामीण पुरुष वेशभूषा |
ग्रामीण कन्याओं
वेशभूषा |
ग्रामीण क्षेत्र की वेशभूषा भी यद्यपि अब शहरों की
भाँति होने लगी है, किंतु अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में पुरुष लोग मुख्य रुप से धोती- कुर्ता, पैजामा, सिर पर टोपी अथवा साफा ( पगड़ी ) धारण करते हैं, जबकि स्रियाँ धोती- ब्लाउज, घाघरा- चोली आदि पहनती है। छोटी बच्चियाँ भी घाघरा- चोली एवं सलवार सूट धारण करती हैं, जो रंग - बिरंगे होते हैं। स्रियों द्वारा मुँह ढकने के लिए साड़ी का सिरोभाग अथवा दुपट्टा प्रयोग किया जाता है। पुरुष लोग सिर ढ़कने की पगड़ी एवं बूढ़े व्यक्ति टोपी धारण करते हैं। सिख धर्मानुयायी कुर्ता- पैजामें के साथ सिर पर पगड़ी भी आवश्यक रुप से धारण करते हैं।
परंतु वर्तमान समय में ग्रामीण क्षेत्रों में भी नगरों की भाँति आधुनिक वस्राभूषण धारण किये जाने लगे हैं तथा नगरीय व ग्रामीण संस्कृति / वेशभूषा में भेद निरंतर घटता जा रहा है।
धार्मिक उत्सवों, मेंलों, पवाç व त्योहारों में सुहागिन स्रियाँ एवं बच्चे रंग- बिरंगे, पारंपरिक वस्राभूषण विशेष रुप से धारण करती हैं , इनमें बसंत- पंचमी, दशहरा, होली, दीवाली, रक्षाबंधन,
हरियाली तीज आदि के उत्सवों में स्रियाँ खूब श्रृंगार कर सुंदर वस्र ( घाघरा- चोली, साड़ी- ब्लाउज ) धारण करती है। |
विधवा स्रियों की वेशभूषा / वस्र
:-
इस क्षेत्र में भी भारत के अन्य भागों की
भाँति विधवा स्रियाँ श्वेत- वस्र (
साड़ी- ब्लाउज ) धारण करती हैं, जो
पूर्णतः अनलंकृत होते हैं। मुख्य
रुप से ये वस्र एकदम साधारण तथा
सूती वस्र होते हैं। भारतीय समाज
में विधवा स्रियों के तिरस्कृत रुप को
सभी क्षेत्रों में समान रुप से एक ही जैसा देखा जाता है, जैसे कि
रंग- बिरंगे, अलंकृत वस्र- आभूषण
उनके लिए निषेध होते हैं। अतः विधवा स्रियों की
मुख्य वेशभूषा में श्वेत, सादे, सूती
वस्र होते हैं। |
विधवा स्री की वेशभूषा |
पुजारी / साधु की वेशभूषा (वस्र) :-
साधु की वेशभूषा |
साधु की वेशभूषा |
क्षेत्र में अनेक पुजारी, साधु- संत नगरों एवं ग्रामीण क्षेत्र
में मंदिरों, मठों में निवास करते हैं, जिनकी
वेशभूषा में प्रमुख रुप से पीले, गेरुये
रंग के वस्र ( कुर्ता- धोती, लुंगी ) होते हैं,
साथ ही सिर पर उसी पीत तथा गैरिक
रंग की साधारण पगड़ी / साफा धारण करते हैं। कुछ
बिना दाढ़ी- मूँछ वाले श्वेताम्बर
पुजारी एकदम श्वेत वस्र ( कुर्ता-
धोती, लूँगी ) धारण करते हैं, जिनके सिर
पर भी सफेद साफा या पगड़ी होती है। इस
प्रकार पुजारियों, साधु- संतों के
वस्र पीले अथवा गेरुये तथा श्वेत
रंग के होते हैं। |
आधुनिक परिप्रेक्ष्य में वेशभूषा में
परिवर्तन :-
वर्तमान समय में पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव जिस तेजी से भारत में फैला है, उससे सभी क्षेत्र प्रभावित हुये हैं तथा इस पाश्चात्य संस्कृति का सबसे अधिक प्रभाव पारम्परिक वेशभूषा पर पड़ा है। आज नगरों व ग्रामीण क्षेत्रों में वेशभूषा का ढ़ंग, तौर- तरीके लगातार बदलते जा रहे हैं तथा लड़के, लड़कियाँ अपनी पुरानी पारम्परिक
वेशभूषा त्यागकर जींस, शर्ट, टॉप आदि धारण करने लगे हैं। इसी प्रकार पुरुषों के भी वस्रों धोती- कुर्ता, पैजामा, टोपी, पगड़ी का स्थान पैंट, शर्ट, कोट, टाई आदि ने ले लिया है। इस प्रकार पारम्परिक वेशभूषा- वस्राभूषणों में निरंतर नये परिवर्तन व बदलाव आते जा रहे हैं। जिससे यहाँ के सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य का ह्रास दृष्टिगोचर होता हे।
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