रुहेलखण्ड

Rohilkhand


रुहेलखण्ड क्षेत्र के जिलों की प्रसिद्धियाँ

रुहेलखण्ड क्षेत्र के सभी जनपद अपनी कुछ- न- कुछ विशिष्टताओं के कारण दूर- दूर तक प्रसिद्ध हैं। रुहेलखण्ड के जिलों की प्रसिद्धियों का क्रमवार विवरण निम्नलिखित है :-

1. बरेली की प्रसिद्धियाँ :-

यह नगर पतंग- मांझा, लकड़ी, बेंत फर्नीचर, पटा, जरी- कारचोबी एवं कालीन- दरी निर्माण के लिए प्रसिद्ध हैं, किंतु सुर्मे और झुमके के नाम से तो गीतों में भी प्रसिद्ध हो गया है।

उत्पादों की प्रसिद्धि के अतिरिक्त बरेली के इज्जतनगर में स्थित आई. वी. आर. आइ. पशु अनुसंधान केंद्र एशिया का विश्वविद्यालय स्तर का संस्थान है। महात्मा ज्योतिबा फुले रुहेलखण्ड विश्वविद्यालय, इलैक्ट्रानिक टेलीफोन एक्सचेंज, सर्किट हाउस, त्रिशूल हवाई अड्डा, सेंट्रल एवं जिला जेल, संजय कम्यूनिटी हाल, काष्ठ कला केंद्र, क्रीड़ा स्टेडियम, पराग सहकारी दुग्ध डेरी, पूर्वी कमान सेंटर, जाट रेजीमेंट सेंटर, माउंटेन डिवीजन, आला हजरत स्थल, खानकाहे नियाजिया, श्मशान भूमि, काँच का मंदिर, एन. ई. रेलवे का अंचल मुख्यालय इज्जतनगर, बैप्टिस्ट चर्च कैंट, मयूर वन चेतना केंद्र, अप्पू घर, फन सिटी, चुन्ना मियां द्वारा निर्मित लक्ष्मी नारायण मंदिर प्रसिद्ध हैं।

बरेली नगर चिकित्सा क्षेत्र में भी प्रसिद्ध है। यहाँ का मिशन अस्पताल पूरे मण्डल में विख्यात था। इस अस्पताल के डॉ. पैरल बहुत प्रसिद्ध चिकित्सक थे। वर्तमान में यहाँ का मानसिक अस्पताल उत्तर प्रदेश में दूसरा अस्पताल है। आयुर्वेदिक शिक्षा के अध्यापन के लिए यहाँ आयुर्वेदिक कालिज है। यहाँ के वैद्य कन्हैया लाल ने नाड़ी ज्ञान एवं चिकित्सा में बहुत ख्याति पाई।

बरेली उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ तथा देश की राजधानी दिल्ली के बीचों- बीच में अवस्थित है। साथ ही इन राजधानियों के कार्य- कलापों का केंद्र भी रहा है। एक कवि ने लिखा है--

लखनउ शर्क गर्ब देहली है।
और दोनों का दिल बरेली है।।

2. शाहजहाँपुर की प्रसिद्धियाँ :-

सन्
1813 ई. में शाहजहाँपुर जिला बना। 1856 ई. में यहाँ जजी स्थापित हुई। सन् 1914 ई. में आर्डिनेंस क्लोदिंग फैक्ट्री की स्थापना हुई। ईदगाह का सर्वप्रथम निर्माण 1100 हिजरी सन् 1688- 89 ई. में हुआ था। शाहजहाँपुर मे कई मस्जिदें पुरानी बनी हैं, लेकिन सबसे पुरानी कांट की मस्जिद है, जिसका निर्माण सन् 1609 ई. में हुआ। यहाँ के इमामबाड़े में आसिफुद्दौला का इमामबाड़ा व कुफ्र का इमामबाड़ा उल्लेखनीय है।

चौकसी तथा फूलमती के मंदिर
19 वीं शताब्दी के प्रारम्भ के निर्मित हैं। छोटा चौक में मुख्य सड़क पर स्थित राधाकृष्ण तथा महादेव नाम से प्रसिद्ध मंदिर नगर का सबसे ऊँचा मंदिर है। शाहजहाँपुर में अनेक मंदिर हैं, जिनमें बाबा विश्वनाथ मंदिर उल्लेखनीय है। यहाँ की प्रसिद्धियों में मुमुक्ष आश्रम विशेष महत्व रखता है, जो कि धार्मिक कार्य एवं शिक्षा का प्रमुख केंद्र है। पी.जी कॉलेज, देवी संपद संस्कृत ब्रह्मचर्य महाविद्यालय, देवी संपद इण्टर कॉलेज व श्री शंकर मुमुक्ष विद्यापीठ यहाँ के प्रमुख शिक्षण संस्थान हैं। इनके अतिरिक्त श्री रामचंद्र मिशन उदासी महाराज की संगतें, परमहंस आश्रम, विनोबा सेवा आश्रम, ॠषि आश्रम, कृपाल आश्रम तथा मनोकरण आश्रम यहाँ की विशेष प्रसिद्धियाँ हैं। गुरुद्वारों में यहाँ के गुरुद्वारा गुरुसिंह सभा ( कचहरी रोड ) गुरुद्वारा राम नगर कॉलोनी, गुरुद्वारा घूरन तलैया तथा गुरुद्वारा कुटिया, गुरु नानक आश्रम उल्लेखनीय है।

समस्त शाहजहाँपुर जिले में लगभग प्रत्येक स्थान, मोहल्ला, मस्जिद, नगर, संस्थान, मकबरे आदि सभी अपने में किसी- न- किसी यादगार को संजोए हुए हैं। अधिकतर मोहल्ले अफगानिस्तान से आने वाले लोगों के कबीलों के नाम पर हैं। उदाहरणार्थ हुंडालखेल, मदारखेल, ताजूखेल, मोहम्मदजई, मानूजई आदि लगभग
30 मोहल्ले ऐसे हैं, जिनमें वहाँ के कबीलों की यादगार छिपी है। मोहल्लों के नामों में तो विभिन्न नवाबों, फौल के अफसरों, पेशे विशेष, व्यक्ति एवं जाति विशेष के नाम भी जुड़े हुए हैं। जैसे बहादुरगंज, बहादुरपुर, अजीजगंज तहव्वरगंज, धूरन तलैया, कालीटोला, बक्सरिया आदि। शाहजहाँपुर में विभिन्न टोले, सराय एवं चौपाल व गंज भी हैं, जिनके साथ किसी घटना अथवा कारण विशेष का बोध होता था।

चिनौर ( चितौर ) में शाहजहाँपुर की स्थापना से पूर्व राजपूतों की गढ़ी थी। हामिद हसन खाँ तथा अहमद हसन खाँ की कोठी को
1857 ई. के स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारियों ने जला दिया था, इस कारण यह क्षेत्र ही जली कोठी के नाम से प्रसिद्ध हो गया। जहाँ अब जी.एफ.पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज है। यह क्षेत्र रुहेला सरदार दूंदे खाँ के नाम पर बाग दूंदे खाँ कहलाता था। सैण्ड मेरी चर्च की स्थापना 1837 ई. हुई थी। केरु एण्ड कं. की स्थापना के कारण यह क्षेत्र ही केरुगंज नाम से प्रसिद्ध हो गया। खन्नौत नदी के पुल का निर्माण सर्वप्रथम 1825- 26 ई. में हुआ था। उसके बाद वह कई बार बना।

3. मुरादाबाद की प्रसिद्धियाँ :-

मुरादाबाद पीतल के बर्तनों एवं उन पर नक्काशी के लिए प्रसिद्ध हैं। यहाँ का पीतल व्यवसाय कई शताब्दी पुराना है। इसके साथ ही यह नगर अन्य कलात्मक उद्योगों जैसे, स्वर्णकारी, छपाई व रंगाई के लिए भी प्रसिद्ध हैं। यहाँ के हस्त शिल्पियों द्वारा निर्मित आधुनिक आकर्षक कलात्मक वस्तुएँ, पीतल के बर्तन, आभूषण, पीतल के बर्तनों पर अलंकृत नक्काशी तथा ट्रॉफियाँ दूर- दूर तक प्रसिद्ध हैं। आभूषणों में पीतल,तांबा तथा जर्मन सिल्वर पॉलिश की चूड़ियाँ, बूँदें व कड़े यूरोप के कई देशों में निर्यात किये जाते हैं। भोजपुरी, पीतल साना हुक्के के सुंदर पाइप को बनाने की कला के कारण यह नगर काफी प्रसिद्ध हैं।

इसके अतिरिक्त मुरादाबाद जनपद में स्थित संभल तथा चंदौसी नगर भी अपने हस्तशिल्प तथा अन्य कलाओं के कारण दूर- दूर तक प्रसिद्ध हैं, जिनका क्रमबद्ध विवरण निम्नलिखित है :-

क. सम्भल :-

सम्भल की सर्वाधिक प्रसिद्धि धार्मिक महत्व के कारण है। पौराणिक कथाओं में संभल में
68 तीर्थ स्थलों का उल्लेख मिलता है तथा "स्कंध पुराण' में वर्णित है कि भगवान श्री विष्णु "कल्कि अवतार' कलियुग के अंतिम चरण में सम्भल में होगा। इस प्रकार अपने धार्मिक महत्व के कारण संभल बहुत प्रसिद्ध नगर है। इसके अतिरिक्त यह नगर सींग की हस्तनिर्मित कलात्मक वस्तुओं के निर्माण के कारण भी प्रख्यात है।

ख. चंदौसी :-

चंदौसी सर्वाधिक अपने व्यवसाय के कारण प्रसिद्ध रहा है, लेकिन कुछ अन्य प्रसिद्धियाँ भी चंदौसी की रही हैं। लगभग दो सौ वर्ष यहाँ के लाला राधा- कृष्ण अग्रवाल के कागज के कारखाने का बहुत नाम था, जिसके आधार पर जहाँ वह कागज का कारखाना था, वह मोहल्ला कागजी मोहल्ला कहलाया।

यहाँ का हाइड्रोइलेक्ट्रिक स्टीम स्टेशन अपना अलग महत्व रखता था, जिसकी चिमनी की ऊँचाई बहुत ज्यादा थी, जो मीलों दूर से दिखाई देती थी। लगभग
1936- 37 में इसकी स्थापना हुई थी, जिसके द्वारा बिजली की आपूर्ति में सहयोग होता था।

रुहेलखण्ड में सर्व प्रथम चैम्बर आॅफ कॉमर्स की स्थापना चंदौसी में हुई थी। यहाँ का नार्दर्न जोनल ट्रेनिंग स्कूल भी रेलवे कर्मचारियों का प्रमुख प्रशिक्षण केंद्र रहा है। सन्
1950 तक भारतीय रेलों का सबसे पुराना इंजन फेयरी क्वीन इसी केंद्र में रहा और फिर रेलवे की शताब्दी प्रदर्शनी के लिए दिल्ली ले जाया गया। वर्तमान में यह केंद्र अपनी प्रगति पर है।

चंदौसी का एस.एम. कॉलिज रुहेलखण्ड का प्रमुख शिक्षा केंद्र है। यहाँ से उच्चकोटि के विद्वानों एवं अधिकारियों ने शिक्षा ग्रहण ही। ब्रिटिश शासन में रानी रामकली को "रानी' एवं जागेंद्र नाथ मुकर्जी को राय साहब का खिताब इसी महाविद्यालय के कारण प्राप्त हुआ।

रोटरी सुंदर लाल नेत्र चिकित्सालय- वर्तमान में आँखों की सेवा को समर्पित विशिष्ट सामाजिक प्रतिष्ठान है।

धार्मिक क्षेत्र में चंदौसी नगर में अनेक मंदिर हैं, जहाँ विशेष पवाç एवं त्योहारों पर उत्सव आयोजित किए जाते हैं। गजानन महाराज गणेश जी के मंदिर पर भाद्र मास में गणेश जी के जन्मोत्सव पर्व के रुप में प्रसिद्ध गणेश चौथ मेले का आयोजन होता है, जिसमें भव्य शोभा यात्रा निकाली जाती है तथा
15- 16 दिन तक विभिन्न कार्यक्रम होते हैं।

यहाँ व्यवसायिक उन्नति होने के परिणाम स्वरुप धन- सम्पदा की सदैव प्रचुरता रही। उससे सम्बंधित विभिन्न विशेषताएँ भी चंदौसी की प्रख्यात रही है, जिसमें चंदौसी की बारात प्रसिद्ध है। राजा लालता प्रसाद पीलीभीत वालों के यहाँ से लगभग
80- 90 वर्ष पूर्व लाला बट्टूलाल की बेटी की बारात आई थी, जिसमें 2200 बाराती आए थे। बारात की खातिरदारी शाही तरीके से की गई थी, इसके प्रबंध में महाराजा ग्वालियर तथा नवाब रामपुर के यहाँ से तंबू आदि मंगाए गए थे। उस समय में इस बारात की चारों तरफ बहुत बड़ी चर्चा हुई थी।

यहाँ की बारात के साथ- साथ चंदौसी के साहू राम नरायन का दसवां प्रसिद्ध हैं। मृत्यू दान ( दसवें का सामान ) में उस समय की मुद्रा के हिसाब में डेढ़ लाख का सामान एवं हाथी कट्टया ( महा ब्राह्मण ) को दिया गया था, कट्टया इतने बड़े दान का बोझ सहन नहीं कर सका तथा जाते समय हाथी पर ही मर गया।

यहाँ की तेली द्वारा बनवाई तेली की सड़क तथा बंजारों के बनवाए कुएँ भी विख्यात हैं।

यहाँ के लाला आनंदी लाल की बखेर भी प्रसिद्ध रही है। उनके बेटे की बारात जब चढ़ी तब चढ़त बारात के साथ सात हाथियों पर रुपया लाद दिया गया। गोलघर से बखेर शुरु कर दी गई। एक हाथी का रुपया बखेरे जाने के बाद दूसरे का बखेरा गया। इस प्रकार सातों हाथियों पर लदे रुपये की बखेर उस बारात में की गई।

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Content Prepared by Dr. Rajeev Pandey

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