कूर्माचल में घर ज्यादातर पत्थर के बने होते हैं। छत में भी पत्थर या पटाल लगे होते हैं, ताकि पानी बह जाये। पानी ज्यादा होने से यहाँ घास के घर नहीं रह सकते। छप्पर पर्वतों में पहुत कम हैं। तराई भावर में ज्यादा हैं। अब पहाड़ में पत्थरों के बदले छत में टीन लगाने लगे हैं। पर्वतीय गाँव दूर से देखने में बहुत सुन्दर दिखाई देते
हैं।
गाँववाले घर को कुड़ कहते हैं। नीचे के खंड को गोठ और उसके बरांडे को 'गोठमाल' कहते हैं। गोठ में अक्सर गायें रहती हैं। किसी-किसी के गौशाले अलग होते हैं। ऊपर का हिस्सा 'मझेला' कहलाता है। उसका बरांडा यदि खुला हो, तो उसे 'छाजा' यदि बंद हो, तो 'चाख' कहते हैं। सदर दरवाजा खोली के नाम से पुकारा जाता है। कमरे को खंड। आँगन को 'पटाँगन' भी कहते हैं, क्योंकि वह पत्थरों से पटाया जाता है। घर के पिछले भाग को 'कराड़ी' कहते हैं। रास्ते को 'गौन, ग्वेट या बाटो' कहते हैं। बहुत से मकान जो साथ-साथ होते हैं, उन्हें 'बाखली' कहते हैं। छत के ऊपर घास के 'लूटे' या कद्द रखे रहते हैं।
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