जितनी लकड़ियाँ, घास व वनस्पतियाँ कूर्माचल के जंगलों में उत्पन्न होती हैं, उनको कौन गिना सकता है, ज्यादातर इन पेड़ों से काम पड़ता है, इनको प्राय: सब लोग जानते हैं -
अखरोट, अयाँर, अरंडी, अशोक, अर्जुन, आम इमली, उतीस, कचनार, कदम, कैल, कीकड़, खैर, सड़क, खरसू, गेठी, चंदन (तराई में कुछ पेड़ चंद-राजाओं ने लगाये थे), चीड़, च्यूरा, जामन, तुन, देवदारु, नीम, पदम पाँगर, फयाँट, पपड़ी, बबूल, बेल, बड़, बिचैण, बाँझ, बेंत, बुराँस, बाँस, मालझन (मालू), भौरु, भेकुल, भौजपत्र, किंरयाज, राई, रीठा, स्याँज, साल, शीशम, हल्दू आदि। इन पेड़ों की लकड़ी देशांतरों की जाती है।
पहाड़ से - चीड़ देवदारु, तुन।
तराई भावर से - साल, शीशम, हल्दू, खैर।
पहले 'सिद्ध बड़ु़वा' के पेड़ो से पहाड़ी कागज बनता था, जो मजबूत होता था। बाहर को भी यह कागज जाता था। अब कागज भावड़ घास तथा बाँसों से बनाया जाता है। अब पहाड़ा कागज बहुत कम बनता था।
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