१. कालसन का मेला - कालसन का मेला नैनीताल जनपद के टनकपुर के पास सूखीढ़ाँग व श्यामलाताल की पावन भूमि में प्रतिवर्ष आयोजित किया जाता है । यह स्थान टनकपुर से २६ कि.मी. की दूरी पर है । कालसन के बारे में स्थानीय लोगों में तरह-तरह की किवदन्तियाँ प्रचलित हैं । कहा जाता है कि कालसन का मंदिर कभी अन्नापूर्णा शिखर के पास शारदा नदी के किनारे बना हुआ था जिसे बाद में ग्रामवासियों ने सुरक्षा की दृष्टि से निगाली गाँव के पास स्थानान्तरित कर दिया । जहाँ पर ग्रामवासियों ने कालसन देवता को स्थानान्तरित किया था, ग्रामवासियों की श्रद्धा के वशीभूत होकर कालसन भी वहीं श्यामवर्णी लिंग रुप में प्रकट हो गये परन्तु अपनी प्राचीन जगह में उन्होंने लोगों द्वारा अर्पित फल-फूल और सामान को पत्थरों के ढ़ेर में बदल दिया । कहा जाता है कि कालसन देवता महाकाली के उपासक थे ।
वर्तमान में यहाँ देवता थान में धनुषवाण, त्रिशुल आदि का ढेर है । सम्भवत: यह ढेर यहाँ इन वस्तुओं को देवता को अपंण करने की परम्परा के कारण है । इन त्रिशुलों में लोग दीप जलाते हैं तथा काले रंग का वस्र भी बाँधते हैं । उत्तराखंड के अन्य मन्दिरों की तरह यहाँ भी घंटियाँ, ध्वजा आदि चढ़ाने की परम्परा है । भूत, प्रेत
आदि बाधाओं से पीड़ित व्यक्ति यहाँ ईलाज के लिए भी लाये जाते हैं ।
पूर्णिमा को यहाँ मेला लगता है । इस मेले में लोग कालसन देवता से मनौतियाँ मनाने, अपनी इच्छाओं की पूर्ति हेतु प्रार्थना करने आते हैं तथा देवता को नारियल इत्यादि अर्पित करते हैं । पहले यह मेला एक हफ्ते तक चलाता था ।
२. हरेला मेला - हरेला पर्व के अवसर पर भीमताल में लगने वाला हरेला मेला भी कभी इस क्षेत्र का प्रसिद्ध मेला था । कहा जाता है कि यह मेला इतिहास प्रसिद्ध मेला रहा है जिसमें कभी पचास हजार से अधिक लोग भाग लेते थे । पहले यह मेला हरियाली खेत में लगता था । तब इस मेले की अवधि सात दिन की होती थी । सन् १९७० के बाद यह मेला रामलीला मैदान में लगने लगा है । एक आध बार यह मेला भीमताल झील के किनारे भी आयोजित किया गया है । पूर्व में यह मेला सांस्कृतिक और व्यापारिक दोनों ही दृष्टियों से सम्पन्न था । तब इस मेले में कपड़ों की दूकानें, मिठाईयाँ, रोजमर्रा की आवश्यक वस्तुओं आदि की खरीद फरोख्त होती थी । भगनौल, झोड़े आदि गीतों की हुड़के की थाप पर स्वर लहरियाँ गूँजती थी । अब तो इस मेले की भी चमक फीकी पड़ती जा रही है ।
इन मेलों के अतिरिक्त भी कुमाऊँ अंचल में अनेक मेले लगते हैं । इनमें दारमा क्षेत्र में व्यासपट्टी के लोग प्रतिवर्ष भद्रपद की पूर्णिमा के अवसर पर महर्षि व्यास की अर्चना करते हैं । मनीला के मैदान में इस अवसर पर विशेष आयोजन किया जाता है । दरकोटा और जलथ देवी के मेले भी बहुत प्रसिद्ध हैं । गुम देश में चैतोगा नाम से विख्यात मेला लगता है ।
मानेश्वर का मेला धार्मिक मनौती मानने के लिए प्रसिद्ध है । यह स्थान चम्पावत के पास है । गढ़केदार में लगने वाले मेले में कार्तिक मास में नि:संतान महिलायें जागेश्वर की ही तरह रातभर जलता दीपक हाथ में लेकर शिव अर्चन करती हैं । धार्मिक विश्वास है कि रातभर हाथ में दीपक लेकर पूजन करने से शिव प्रसन्न होते हैं तथा सन्तान प्राप्त होती है । गिर के कौतिक नाम से प्रसिद्ध मेला तल्ला सल्ट क्षेत्र में लगता है । उत्तरायणी के दिन सम्पन्न होने वाले इस मेले में नजदीकी गाँव रोग खेल खेलते हैं ।
३. जिया रानी का मेला - रानी बाग - उत्तरायणी में ही प्रतिवर्ष रानीबाग में
इतिहास प्रसिद्ध बीरांगना जिया रानी के नाम पर जिया रानी का मेला लगता है । रानीबाग, काठगोदाम से पाँच कि.मी. दूर अल्मोड़ा मार्ग पर बसा है । रानीबाग में कव्यूरी राजा धामदेव और ब्रह्मदेव की माता जियारानी का बाग था । कहते हैं कि यहाँ जिया रानी ने एक गुफा में तपस्या की थी । रात्रि में जिया रानी का जागर लगता है । कव्यूरपट्टी के गाँव से वंशानुगत जगरियें औजी, बाजगी, अग्नि और ढोलदमुह के साथ कव्यूरी राजाओं की वंशावलि तथा रानीबाग के युद्ध में जिया रानी के अद्भूत शौर्य की गाथा गाते हैं । जागरों में वर्णन मिलता है कि कव्यूरी सम्राट प्रीतमदेव ने समरकंद के सम्राट तैमूरलंग की विश्वविजयी सेना को शिवालिक की पहाड़ी में सन् १३९८ में परास्त कर जो विजयोत्सव मनाया उसकी छाया तथा अनगूंज चित्रश्वर रानीबाग के इस मेले में मिलती है । जिया रानी इस वीर की पत्नी थीं ।
उत्तरायणी के अवसर पर यहाँ एक ओर स्नान चलता है तो दूसरी ओर जागर, बैर इत्यादि को सुनने वालों की भीड़ रहती है ।
अन्य ऐतिहासिक मेले एवं पर्व -
उपरोक्त अति प्रसिद्ध मेलों के अतिरिक्त भी कुमाऊँ में स्थान-स्थान पर मेलों एवं उत्सवों का आयोजन होता है । इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है -
१. शिवरात्रि शिवमंदिर
सोमेश्वर (अल्मोड़ा)
देवस्थल - अल्मोड़ा
पाताल देवी - अल्मोड़ा
जागनाथ - जागेश्वर - अल्मोड़ा
बागनाथ - बागेश्वर
२. मकर संक्रांति
कपिलेश्वर पट्टी बिसोद
पंचेश्वर पट्टी सौं - पिथौरागढ़
३. कार्तिक पूर्णिमा
पिनाकेश्वर पट्टी बीरारो
शिखर भनार - दानपुर
४. मेष संक्रांति
बेतालेश्वर - अल्मोड़ा
वृद्ध केदार - अल्मोड़ा
५. मिथुन चतुर्दशी
भीमेश्वर - भीमता (नैनीताल)
६. फागुन चतुर्दशी
पाताल भुवनेश्वर पट्टी बड़ाऊ (पिथौरागढ़:
पावनेश्वर - डीडीहाट (पिथौरागढ़)
बैजनाथ - जनपज अल्मोड़ा
गणनाथ - अल्मोड़ा
श्रावण चतुर्दशी - जागेश्वर - अल्मोड़ा
बागनाथ - बागेश्वर
७. भादों तृतीया
थल केदार (पिथौरागढ़)
८. भादों चतुर्दशी
भागलिंग (पिथौरागढ़)
९. कर्क संक्रांति
बालेश्वर मंदिर - चम्पावत
१०. आषाढ़ सप्तमी
घटकू (पिथौरागढ़)
११. नागपंचमी
उग्र रुद्र, नाकुरी (पिथौरागढ़)
१२. आषाढ़ तथा चैत्र अष्टमी
दूनागिरी
नैथाना देवी - जनपद अल्मोड़ा
१३. कृष्ण जन्माष्टमी - मिरतोला - अल्मोड़ा
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