महाकवि विद्यापति ठाकुर |
काव्य और साहित्य के क्षेत्र में महाकवि का योगदान पूनम मिश्र |
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काव्य और साहित्य के क्षेत्र में महाकवि ने निम्नलिखित ग्रन्थों की रचना की (क)
पुरुषपरीक्षा इन ग्रन्थों के सम्बन्ध में संक्षिप्त विवरण नीचे दिया जा रहा है: (क) पुरुषपरीक्षा महाकवि विद्यापति ठाकुर ने पुरुष परीक्षा की रचना महाराजा शिवसिंह के निर्देशन पर किया था। यह ग्रन्थ पश्चिम के समाजशास्रियों के इस भ्रान्त कि "भारत में concept of man in Indian Tradition नामक विषय पर पटना विश्वविद्यालय के महान समाजशास्री प्रो. हेतुकर झा ने एक उत्तम कोटि की ग्रन्थ की रचना की है। यह ग्रन्थ समाजशास्रियों, इतिहासकारों, मानव वैज्ञानिको, राजनीतिशास्रियों के साथ-साथ दर्शन एवं साहित्य के लोगों के लिए भी एक अपूर्व कृति है। पुरुषपरीक्षा की कथा दी गयी है। वीरकथा, सुबुद्धिकथा, सुविद्यकथा और पुरुषार्थकथा- इन चार वर्गों पञ्चतन्त्र की परम्परा में शिक्षाप्रद कथाएँ प्रस्तुत की गयी हैं। (ख) भूपरिक्रमा भूपरिक्रमा नामक एक अत्यन्त प्रभावकारी ग्रन्थ की रचना महाकवि विद्यापति ठाकुर ने महाराज देवसिंह की आज्ञा से की थी। इस ग्रन्थ में बलदेवजी द्वारा की गयी भूपरिक्रमा का वर्णन है और नैमिषारण्य से मिथिला तक के सभी तीर्थ स्थलों का वर्णन है। भूपरिक्रमा को महाकवि का प्रथम ग्रन्थ माना जाता है। कारण, औइनवारवंशीय जिन राजा या रानियों के आदेश से कविश्रेष्ठ विद्यापति ठाकुर ने ग्रन्थ रचना की, उनमें सबसे वयोवृद्ध देवसिंह ही थे। भाषा और शैली की दृष्टि से भी मालूम होता है कि यह कवि की प्रथम रचना है। (ग) कीर्तिलता परवर्ती अपभ्रंश को ही संभवत: महाकवि ने अवहट्ठ नाम दिया है। ज्ञातव्य है कि महाकवि के पूर्व अद्दहयाण (अब्दुल रहमान) ने भी 'सन्देशरासक' की भाषा को अबहट्ठ ही कहा था। कीर्तिलता की रचना महाकवि विद्यापति ठाकुर ने अवहट्ठ में की है और इसमें महाराजा कीर्तिसिंह का कीर्तिकीर्तन किया है। ग्रन्थ के आरम्भ में ही महाकवि लिखते है: ...
श्रोतुर्ज्ञातुर्वदान्यस्य कीर्तिसिंह
महीपते:। अर्थात् महाराज कीर्तिसिंह काव्य सुननेवाले, दान देनेवाले, उदार तथा कविता करनेवाले हैं। इनके लिए सुन्दर, मनोहर काव्य की रचना कवि विद्यापति करते हैं। यह ग्रन्थ प्राचीन काव्यरुढियों के अनुरुप शुक-शुकी-संवाद के रुप में लिखा गया है। कीर्तिसिंह के पिता राम गणेश्वर की हत्या असलान नामक पवन सरदार ने छल से करके मिथिला पर अधिकार कर लिया था। पिता की हत्या का बदला लेने तथा राज्य की पुनर्प्राप्ति के लिए कीर्तिसिंह अपने भाई वीरसिंह के साथा जौनापुर (जौनपुर) गये और वहाँ के सुलतान की सहायता से असलान को युद्ध में परास्त कर मिथिला पर पुन: अधिकार किया। जौनपुर की यात्रा, वहाँ के हाट-बाजार का वर्णन तथा महाराज कीर्तिसिंह की वीरता का उल्लेख कीर्तिलता में है। इसके वर्णनों में यर्थाध के साथ शास्राय पद्धति का प्रभाव भी है। वर्णन के ब्यौरे पर ज्योतिरीश्वर के वर्णरत्नाकर की स्पष्ट धाप है। तत्कालीन राजनैतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक स्थिति के अध्ययन के लिए कीर्तिलता से बहुत सहायता ली जा सकती है। इस ग्रन्थ की रचना तक महाकवि विद्यापति ठाकुर का काव्यकला प्रौढ़ हो चुकी थी। इसी कारण इन्होंने आत्मगौरवपरक पंक्तियाँ लिखी: बालचन्द
विज्जावड़ भासा, दुहु नहिं लग्गइ
दुज्जन हासा। चतुर्थ पल्लव के अन्त में महाकवि लिखते हैं: "...माधुर्य
प्रसवस्थली गुरुयशोविस्तार
शिक्षासखी। म.म. हरप्रसाद शास्री ने भ्रमवश 'खेलतु कवे:' के स्थान पर 'खेलनकवे:' पढ़ लिया और तब से डॉ. बाबूराम सक्सेना, विमानविहारी मजुमदार, डॉ. जयकान्त मिश्र, डॉ. शिवप्रसाद सिंह प्रभृति विद्धानों ने विद्यापति का उपनाम 'खेलन कवि' मान लिया। यह अनवमान कर लिया गया कि चूँकि कवि अपने को 'खेलन कवि' कहता है, अर्थात् उसके खेलने की ही उम्र है, इसलिए कीर्तिलता महाकवि विद्यापति ठाकुर की प्रथम रचना है। अब इस भ्रम की कोई गुंजाइश नहीं है और कीर्तिलता में कवि की विकसित काव्य-प्रतिमा के दर्शन होते हैं। (घ) कीर्तिपताका महाकवि विद्यापति ठाकुर ने बड़े ही चतुरता से महाराजा शिवसिंह का यशोवर्णन किया है। इस ग्रन्थ की रचना दोहा और छन्द में की गयी है। कहीं-कहीं पर संस्कृत के श्लोकों का भी प्रयोग किया गया है। कीर्तिपताका ग्रन्थ की खण्डित प्रति ही उपलब्ध है, जिसके बीच में ९ से २९ तक के २१ पृष्ठ अप्राप्त हैं। ग्रन्थ के प्रारंभ में अर्द्धनारीश्वर, चन्द्रचूड़ शिव और गणेश की वन्दना है। कीर्तिपताका ग्रन्थ के ३० वें पृष्ठ से अन्त तक शिवसिंह के युद्ध पराक्रम का वर्णन है। इसलिए डॉ. वीरेन्द्र श्रीवास्तव अपना वक्तव्य कुछ इस तरह लिखते हैं कि "अत: निर्विवाद रुप से पिछले अंश को विद्यापति-विरचित कीर्तिपताका कहा जा सकता है, जो वीरगाथा के अनुरुप वीररस की औजस्विता से पूर्ण है" (विद्यापति-अनुशीलन एवं मूल्यांकन खण्ड-१, पृ.३०)। (च) गोरक्षविजय गोरक्षविजय के रुप में विद्यापति ने एक नूतन प्रयोग किया है। यह एक एकांकी नाटक है। इसके कथनोपकथन में संस्कृत और प्राकृत भाषा का प्रयोग है। गीत कवि की मातृभाषा मैथिली में है। गोरक्षनाथ और मत्स्येन्द्रनाथ की प्रसिद्ध कथा पर यह नाटक आधारित है। कहते हैं कि महाकवि ने इस नाटक की रचना महाराजा शिवसिंह की आज्ञा से किया था। (छ) मणिमंजरा नाटिका यह एक लघु नाटिका है। इस नाटिका में राजा चन्द्रसेन और मणिमंजरी के प्रेम का वर्णन है।
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