महाकवि विद्यापति ठाकुर |
विद्यापति पदावली पूनम मिश्र |
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संरक्षण के अभाव में महाकवि के स्वहस्तलोख की बात कौन कहे, कोई ऐसा प्राचीन संकलन भी नहीं मिलता, जिसमें उनके सभी गीतों को एक साथ देखा जा सके। जो परवर्ती संकलन नेपाल, रामभद्रपुर, तरौनी आदि में मिले हैं, वे अपूर्ण है अर्थात् कुछ ही गीतों के संकलन हैं। लिखित संकलन के अभाव में विद्यापति कवि के गीत अपने माधुर्य के कारण लोक कण्ड में जीवित रहे और बहुत बाद में इन्हें समग्र रुप में संकलित करने का प्रयास किया गया। वैसे अनेक संग्रह ग्रन्थों में विद्यापति के कुछ गीतों को संकलित करने का प्रयास कुछ लोगों ने किया था, जैसे लोचन ने रागतरंगीणी में, किन्तु गीतों के संकलन के लिए मुख्य आधआर कण्ठस्थ गीत ही रहै। इस संदर्भ में डॉ. महेन्द्रनाथ दूबे लिखते है: "अत: संकलन कर्ताओं ने अपने-अपने अंचलों में विद्यापति के गाये पदों के प्रचलित स्वरुप को ही संकलित किया है। लोककण्ठ में स्थान, काल और पात्र के अनुकूल गाये पदों में यत्र-तत्र परिवर्तन-परिवर्तन हो जाना स्वाभाविक ही है।" मौखिक रुप से लोककण्ठ में प्रचलित इन गीतों में अनेक प्रशिप्त पद मिल गये हैं। जिन कवियों ने भणिता (कवि का नाम-छाप) के प्रयोग अपनी रचनाओं में किये हैं, उनके अनुकरण पर रचे गये गीतों में मूल कवि की भणिता जोड़कर प्रशिप्त पदों को प्रामाणिक बनाने की प्रवृत्ति-सी रही है। संकलनकर्त्ताओं ने भी भणिता देख उन्हें प्रामाणिक पद जानकर ऐसे कई पदों को अपने-अपने संकलना में जोड़ लिया है। इस सम्बन्ध में डॉ. महेन्द्रनाथ दूबे लिखते हैं: "विद्यापति के पदों की अत्यधिक ख्याति का एक परिणाम यह भी हुआ कि अन्य अधकचरे कवियों ने भी अपने पदों में भणिता जोड़कर उन्हें विद्यापति के नाम पर चला दिया। इस प्रकार अनेक गुणहीन पद भी विद्यापति के पदों में आ मिले।" आधुनिक काल में भी महाकवि विद्यापति ठाकुर के सभी पदों के संकलन एवं प्रकाशन के प्रयास सर्वप्रथम बँगला के विद्वानों द्वारा ही हुआ। बाद में मैथिली एवं हिन्दी साहित्य के विद्वानों का ध्यान इस ओर गया। मित्र एवं मजुमदार महोदय अपनी पुस्तक विद्यापति के पृष्ठ संख्या ५० में लिखते हैं: "...आश्चर्य की बात है कि बीसवीं शताब्दी के पहले किसी एक ग्रन्थ में उनके समस्त पद एकत्र संगृहीत नहीं हुए थे।" विद्यापति पदावली के जो संग्रह अभी तक प्रकाशित किये गये हैं, उनके मुख्य तीन आधार रहे हैं। ये आधार निम्नलिखित हैं: (क) १. नेपाल-राजदरबार पुस्तकालय की पाण्डुलिपि;
(ख) बँगला भाषा के भजन संग्रह; (ग) मिथिला के लोककण्ठ में जीवित गीत।
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