हजारीप्रसाद द्विवेदी के पत्र

प्रथम खंड

संख्या - 84


IV/ A-2087

  दिनांक : 8.11.49

पूज्य पंडित जी,

              सादर प्रणाम!

       लगभग डेढ़ महीने से शय्याशायी हूँ। रिउमेटिक फिवर का आक्रमण था। अब अच्छा हो रहा हूँ। आज से तो डाक्टर ने अन्न खाने की अनुमति दे दी है। आशा है, आपके आशीर्वाद से, दो ढाई सप्ताह में उठने बैठने लगूँगा। और थोड़ा थोड़ा चलने फिरने भी लगूँगा।

       निमंत्रित नहीं हों तो शान्ति सम्मेलन में न आवें। उन लोगों की प्राइवेट मीटिंगे होंगी। पब्लिक कुछ भी नहीं। हाँ, किसी खास व्यक्ति से मिलने की इच्छा हो तो उपयुक्त अवसर है।

       एण्ड्रूज़ साहब की जीवनी खूब पढ़ी जा रही है। मेरी प्रति तो डेढ़ महीने से घूम रही है। पुस्तक बहुत अच्छी लिखी गई है। मलिक जी कह रहे थे कि कुछ महत्वपूर्ण बातें छूट गई हैं। और संग्रह करके अगले संस्करण में जोड़ा जा सकता है। पुस्तक की वे खूब तारीफ़ कर रहे थे।

       स्व. शील जी वाला संस्मरण पढ़ा है। क्या कहूँ। लिखने को बहुत मन में आता है पर अभी दुर्बलता की अवस्था में अधिक नहीं लिखूँगा। आज छुट्टी लेता हूँ।

       प्रणाम।

हजारी प्रसाद

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© इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र १९९३, पहला संस्करण: १९९४

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प्रकाशक : इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, नई दिल्ली एव राजकमल प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली