ग्वालियर के मृणशिल्प

ग्वालियर के कुम्हार - जाति की उत्पत्ति सम्बन्धी किवदन्ति:

- मुश्ताक खान


छिछदी कुम्हार के अनुसार एक बार तैंतीस कोटि देवताओं ने जग्ग (यज्ञ) रची थी। भगवान विष्णु, ब्रहमा और महादेव भी उसमें आये थे। तब यह सवाल उठा कि जग्ग के लिये बर्तन कौन बनायेगा, उस समय हाथ से बर्तन बनाने वाले लोग थेे जो हथरेटीया कहलाते थे, तो उन्हीं को बर्तन बनाने के लिये कहा गया। जब हथरेटीया बर्तन बना रहा था तब एक बर्तन चटक गया, उस समय बर्तन जोड़ने के लिये उसके पास पानी न होने के कारण उसने थूक लगाकर बर्तन जोड़ दिया। जब यह बर्तन जग्ग में प्रयोग हुये तो जूठे बर्तन हो जाने के कारण वह जग्ग सफल नहीं हो पाया। इस पर सभी ने कहा ये हथरेटिया बदमाश है इसके बनाये बर्तन खराब थे तभी यह जग्ग सफल नहीं हो पाया। इस पर सभी सोचने लगे कि अब क्या हो तब भगवान ने अपनी शक्ति से एक कुम्हार बनाया और उससे कहा कि भई तुम बर्तन बना दो। इस पर कुम्हार बोला कि मैं बर्तन तो बना दूं परन्तु उसके लिये मुझे साधन तो दीजिये। इस पर भगवान विष्णु ने उसे अपना सुदर्शन चक्र दिया, शंकर भगवान ने अपनी पिण्डी दी। यह पिण्डी चाक की धुरी बनी और सुदर्शन चक्र बना चाक। यही कारण है कि जब भी कुम्हार चाक पर काम शुरु करते हैं तो सबसे पहले शंकर जी की पिण्डी ही बनती है। बर्तन काटने के लिये जो डोरा प्रयुक्त किया जाता है वह दिया ब्रहम्माजी ने अपने जनेऊ से, इस प्रकार ब्रहम्मा, विष्णु, और शंकर तीनों की शक्ति से मिलकर कुम्हार का कार्य चलता है। जब उस पर कुम्हार ने अपने चाक पर बर्तन बना कर दिये तब कहीं देवताओं की जग्ग सफल हुई। इस प्रकार कुम्हार जाति की उत्पत्ति हुई। यह कुम्हार प्रजापति कब से कहलाये इसके सम्बन्ध में किवदन्ति इस प्रकार है, कहते हैं एक बार शंकर महादेव ने एक जग्ग रचाई जिसमें सभी जाति के लोगों को बुलाया गया और सभी को पान बांटे गये। सभी ने अपने पान खा लिए। भगवान ने पूछा भई सब लोग दिख रहें है पर कुम्हार नहीं दिख रहा, इस पर नारद बोले हां भगवान कुम्हार अपने काम में लगा हुआ है इस कारण आ नहीं सका, तो बगवान बोले कि उसका पान उसे वहीं दे आओ जब नारद कुम्हार के लिये पान लेकर उसके पास पहुंचे तो वह भगवान के भजन करता हुआ बर्तन बनाने में मगन था। नारद ने कहा कि भगवान ने तुम्हें पान भेजा है तो कुम्हार ने कहा कि में तो भई काम कर रहा हुं भगवान का नाम ले रहा हूं तुम ऐसा करो इस पान को यहां चाक के पास रख दो। हुआ यह कि काम में व्यस्त होने के कारण कुम्हार पान के बारे में भूल गया और मिटटी तथा पानी गिरते रहने के कारण पान में से कौंपल फूट गई और वहां पान की बेल लग आई। उधर भगवान ने दो तीन दिन की भूल देकर फिर सभी लोगों को इकटठा किया और उनसे कहा कि भाई जो हमने आप लोगों को चीज दी थी वो हमारी वापस करों । इस पर सभी ने कहा कि भगवान आपने हमें पान दिया था सो हम तो उसे खा गये, अब वो हम कहां से लायें। तब भगवान ने कहा वो तो मुझे चाहिये देखो शायद किसी के पास मिल जाये। सभी लोग पान ढूंढते कुम्हार के पास पहुंचे उससे पान के बारे में पूछा तो कुम्हार बोला कि भाई में तो अपना काम ही करता रहा वह पान खाने का मुझे समय ही नहीं मिला, नारद उसे यहीं रख गये थे देखिये यहीं रखा होगा। जब चाक के पास देखा गया तो वहां तो पान की बेल लहलहा रही थी सभी लोग प्रसन्न हो गये तब कुम्हार बोला कि पहले भगवान से पूछ तो लो कि कितने पान चाहिये क्योंकि यहां तो बहुत सारे पान लगे हैं। सभी लाग अब भगवान के पास पहुंचे तब भगवान बोले भई अब मेरी प्रतिज्ञा पुरी हुई कुम्हार के पास पान मिल गया। इस पर सभी ने कहा आज कुम्हार ने हमारी पत यानी बात (मान-सम्मान) रख ली इस कारण आज से ये प्रजापत हुये और तभी से कुम्हार प्रजापत कहलाये। आज भी कुम्हार की दो मुख्य शाखाएं हथरेटिया या हथेरिया और चकरेटीया या चक्राधारी कुम्हार कहलाती है जिनका अपास में रोटी बेटी का सम्बन्ध नहीं होता।

ग्वालियर में वर्ष मे एक बार नौलक्खा परेड मैदान में कुम्हारों का सम्मेलन होता है जिसमें किसी प्रमुख नेता की बुलाकर उसके सामने समस्यायें रखी जाती है। ग्वालियर में सबसे प्रमुख समस्या मिटटी की है। यहां अब मटटी बहुत ही मुश्किल से मिलती है मकानों के अधिकता में बन जाने से खेत और बगीचे खत्म हो गये है और जो हैं वे बहुत ही दूर हैं इस कारण मिटटी लाना अब एक समस्या हो गई है।

 

  

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