ग्वालियर के मृणशिल्प

विशेष प्रथा

- मुश्ताक खान


गधों का विवाह ग्वालियर के कुम्हार दशहरे के एक दिन पहले, देवी की नवमी को करते हैं। इस दिन शाम को सात आठ बजे के करीब गधे की पूजा की जाती है। उसे मोहर बांधते हैं। इसी दिन एक कच्ची मिटटी की मूर्ति भी बनाई जाती है जो देवी रुप गिरिजा (पार्वती) का प्रतीक होता है, उनके भी मोहर बांधते हैं। मान्यता है कि ये गधे भी, महादेव भोलेनाथ का ही रुप हैं। कहते हैं एक समय बहुत सारे लोग काँमर भर कर ला रहे थे। उन्हे तकलीफे सहकर भी काँमर भर कर लाते देख, एक दिन पार्वती, शंकर जी से बोली कि भोलेनाथ, ये बेचारे काँमर भरने वाले लोग इतना कष्ट सहकर तुम पर काँमर चढ़ाते हैं। तब क्या यह सारे लोग जो काँमर चढ़ाते है बैकुण्ड को जायेंगे या इन्हे, नर्क भी भोगना पड़ेगा। इस पर महादेव बोले कि पार्वती, इनमे से एकाध ही व्यक्ति स्वर्ग को जायेगा नहीं तो आधिकांश नर्क को ही जायेंगे। ये लोग काँमर भरने में तकलीफ तो बहुत उठाते है पर इनमे से भावना सब की ठीक नहीं रहती। तब पार्वती बोली ऐसा कैसे हो सकता में यह नहीं मान मकती। यदि भावनाएं खराब भी रहती हैं तो यह भेद आप मुझे बताओ। इस पर शंकरजी बोले यदि तुम नहीं मानती तो चलो स्वयं ही देख लो। तब दौनों कैलाश पर्वत से मृत्युलोक में आये और महादेव ने गधे का रुप धारण किया और पार्वत से कहा कि तुम एक अत्यन्त सुन्दर ऊपवान कुम्हारन का वेश धरो। महादेव गधा बन कर जमीन पर लेट गये और कुम्हारन बनी पार्वती से कहा कि जब काँमर वाले यहां से निकले तब तुम उनसे कहना कि ये मेरा गधा बहुत दिन से प्यासा है यदि इसे पानी न मिला तो यह मर जायेगा इसलिये कृपा कर इसे थोड़ा सा पानी पिला दो। जब काँवर वाले वहां से गुजरे तो पार्वती ने वैसा ही कहा। इस पर काँमर वाले बोले आरे यह तू क्या कहती है हम जल बहुत दूर से ला रहे, इसे गधे को कैसे दे दें और तू अच्छी भली सुन्दर स्री है, हमारे साथ चल इस गघे के साथ क्या लेगी, छोड़ इस गधे को हमारे साथ मजे से रहना। तब पार्वती बोली अच्छा तुम पानी नहीं देते न दो अब जाओ। इसी प्रकार अनेक काँमर वाले निकले और चले गये। तब महादेव ने कहा देखा पार्वती तुमने ये सब काँमर तो भर कर लाये पर जायेंगे ये सभी नर्क में क्योंकि ये धर्म को समझते ही नहीं। इसी समय एकनाथ नाम के भक्त काँमर लेकर निकले, पार्वती ने उनसे भी गधे को पानी पिलाने को कहा। एकनाथ सच्चे भक्त थे उन्होंने तुरन्त काँमर से पानी की शीशी निकाल कर कहा लो मातेश्वरी, जल इस गधे को पिलाकर इसकी प्राण रक्षा करो। हम यह जल भगवान पर चढ़ाने को लाये थे सो भगवान के नाम पर ही तुम्हे देते है। जैसे ही उन्होंने गधे के मुंह मे जल डाला वैसे ही महादेव अपने असली रुप में प्रकट हो गये और बोले देखा पार्वती यह हैं सच्चे भक्त जो स्वर्ग मे जायेगे। 

इस प्रकार महादेव ने गधे का रुप धारण किया। ऐसा विश्वास है कि जब गधा मरता है तो दो तीन दिन बाद उसकी सारी हडिडयां तो मिल जाती है पर उसका शीर्ष गायब हो जाता है।

कुम्हार गघे को देवता का रुप मानते हैं क्योंकि यह कमाकर उनके बच्चों का पेट पालता है।

जिस दिन गधे का विवाह होता है उस दिन घर में पकवान बनाये जाते हैं पुआ, कचौड़ी, पूड़ी आदि गधे को खिलाये जाते हैं उसे चावल और गेंहू भी खाने में परोसते हैं। दीपक जलाकर उनकी उनकी आरती और होम करते है। मिट्टी की बनी गिरिजा रखते है उन्हें भी मोहर बांधते है और उन्हें बंजारी मैया कहते है। इनके भुंह में एक रुपये का सिक्का रखते है। जूजा के बाद कुम्हार अपने बच्चे को गधे पर बैठता है और गधे के कान मे कहता है कि भाई हम तुझे पूजेंगे तू हमें दाल-रोटी देना। इस दिन गधे को नहलाते है उस पर मेंहदी लगाते है गले मे घुघंरु पहनाते है रंगों से चित्रकारी करते हैं जिस प्रकार दूल्हे को सजाते है वसे ही होता है यह प्रथा यहां के सभी कुम्हारों मे है। 

 

  

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