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देवनारायण फड़ परम्परा Devnarayan Phad Tradition रानी जयमती का अवतार और विवाह रानी जयमती के विवाह एक
बार जब राजकुमारी जयमती और
हीरा दासी फुंदी (कीकली) खा रही
होती है उनके पावों की धम-धम से
सारा महल हिलने लग जाता है (क्योंकि
वो दोनों तो दैवीय शक्तियां होती
है) यह देख राजा पूछते है कि यह
क्या हो रहा है? तो पता चलता है
कि बाईसा फुंदी खा (खेल) रही हैं।
राजा देखते है की बाईसा अब बड़ी
हो गयी है, इनकी शादी के लिये कोई
सुयोग्य वर देखना होगा, और ब्राह्मणों
को बुलवाते हैं। राजा
ब्राह्मणों को टीका (रुपया व नारीयल)
शगुन देकर कहते है कि राजकुमारी
के लायक कोई सुयोग्य, प्रतापी, सुन्दर
राजकुमार को ही ये शगुन जाकर देना
और राजकुमारी का सम्बंध तय करके
आना। यह
बात राजकुमारी जयमती को पता चलती
है कि पिताजी ब्राह्मणों के हाथ मेरी
शादी का शगुन भेज रहे हैं तो
वह चुपके से ब्राह्मणों को अपने पास
बुलाती है, और उनकी खूब आवभगत
करती है। और कहती है, हे ब्राह्मण देवता
आप मेरी शादी का शगुन ऐसे घर में
जाकर देना जहां एक बाप के २४
बेटे हो और दूसरे नम्बर के बेटे
का नाम सवाई भोज हो उसी के
यहां जाकर मेरा लगन तय करना। और
साथ में कपड़े पर सवाई भोज का चित्र
बनाकर देती है और कहती है कि अगर
कहीं और जाकर आपने मेरा सम्बंध
तय किया तो मैं आप को जिन्दा नहीं छोडूंगीं,
मरवा दूंगी। ब्राह्मणों को जाते समय
जयमती काफी रुपया-पैसा देकर भेजती
है। ब्राह्मण खुशी-खुशी रवाना हो जाते
हैं। ब्राह्मण
सारी दुनियां में घूम फिर कर थक
जाते हैं लेकिन उन्हें जयमती द्वारा बताया
हुआ वर नही मिलता है। यहाँ तक
कि उनकी हालत इतनी दयनीय हो जाती
है कि उनके कपड़े फट जाते है, दाढ़ी
बढ़ जाती है। भिखारियों से भी बदतर
हालत हो जाती है। घूमते-घूमते आखिरकार
ब्राह्मण गोठांंं पहुंचते हैं। वहां
उन्हें पनिहारियां मिलती हैं और उनकी
हालत पर हंसती हैं क्योकि उनके कपड़े
फटे हुए और वह भूखे प्यासे होते
हैं। पनिहारियां उनसे पूछती हैं कि
क्या दुख है जो इतने परेशान हो,
तो ब्राह्मण कहते हैं कि ऐसे कुल की तलाश
है जहां एक बाप के २४
बेटे हो और सवाई भोज का चित्र
दिखाते हैं। वे कहती हैं कि यह तो
हमारे ही गांव के हैं। और ब्राह्मणों
को बगड़ावतों के घर छोड़ देती हैं।
बगड़ावत उनकी आव भगत करते हैं। नए
कपड़े, खाना-पीना देते हैं। ब्राह्मण सवाई
भोज को राजा बुआल द्वारा दिया
हुआ शगुन का टीका और नारीयल देते
हैं। सवाई भोज कहते हैं कि
हमारे सभी भाईयों के एक-एक दो-दो
रानियां है। इसे लेकर हम क्या करेगें।
और फिर हम तो ग्वाल हैं। एक राजा
के यहाँ तो राजा ही सम्बन्ध करता
है। ऐसा करो की यह शगुन तुम राण
के राजा के यहां ले जाओ। यह बात
सुन ब्राह्मण राजकुमारी जयमती द्वारा
कही सारी बात बताते हैं और कहते
हैं यह तो आप के लिये ही है और
यह आपको ही लेना होगा। सवाई
भोज सभी भाईयों की सहमती से
शगुन ग्रहण कर लेते हैं और ब्राह्मणों
को राजी खुशी वहां से दक्षिणा देकर
विदा करते हैं। ब्राह्मण उन्हें राजा बुआल
का सारा पता ठिकाना देकर कहते
हैं कि फलां दिन के सावे हैं और ४
दिन पहले बारात लेकर बड़े ठाट-बाट
से शादी करने के लिये पधारें। ब्राह्मणों
के जाने के बाद सवाई भोज अपने सभी
भाईयों के साथ मिलकर यह फैसला
करते हैं कि यह लगन का टीका हम
स्वयं रावजी के यहां भिजवा देते
हैं। रावजी की कोई सन्तान नहीं है,
शायद इस रिश्ते से उन्हें कोई सन्तान
प्राप्त हो जाए। जब रावजी को शगुन का
टीका नारीयल मिलता हैं तब रावजी
कहते हैं कि मैं तो अब बूढा हो गया
हूं और टीका लेने से आनाकानी करते
हैं। बगड़ावत जिद करते हैं और कहते
हैं कि आप चिंता मत करिये, शादी में
सारा धन हम खर्च करेंगे। रावजी कंजूस
प्रवृति के होते हैं, खर्चे की बात सुनकर
तैयार हो जाते हैं। बगड़ावत रावजी से कहते हैं हम बारात में इधर से ही पहुंच जायेगें। आप उधर से सीधे पहुंच जाना, हम सब बुवांल में ही मिलेंगे।
शादी
के लिए निमंत्रण भेजे जाते हैं। पहला
निमन्त्रण गणेशजी को और सभी देवी
देवताओं को, फिर अजमेर, सावर, पीलोदा,
सरवाड़, भीलमाल और मालवा सभी
जगह निमंत्रण भेजे जाते हैं। रावजी के ब्याह की खुशी में गीत गाए जाते हैं उन्हें उबटन लगाया जाता है, नहला धुला कर उनका श्रृंगार किया जाता है।
इधर
२४ बगड़ावत भाई
सजधज कर अपने घोड़ों पर सवार
हो बुआल के राजा के यहां पहुंच
जाते हैं। उन्हें बाग में ठहराया जाता
है। बारात
मे आए हुए बगड़वतों को देखकर नीमदेवजी
कहते है कि बगड़ावत तो ऐसे सज कर
आए हैं जैसे कि शादी इन्हीं की हो
रही हो। सब के सिर पे मोहर बधा
होता है। हीरा
सभी बगड़ावतों का स्वागत करती
है। जब जयमती को पता चलता है कि बगड़ावत आ गये हैं, वह हीरा से पूछती है कि सवाई भोज दिखने में कैसे हैं, और वह सवाई भोज के बारे में ही पूछती रहती है। हीरा जयमती के मन की बात जानती है इसलिए सवाई भोज को कलश बन्धाती है। सवाई भोज हीरा के कलश को मोहरों से भर देते हैं। हीरा रानी को जाकर बताती है कि बगड़ावत तो बड़े दातार हैं।
सवाई भोज को तोरण मारते देख रावजी के भाई नीमदेवजी और बगड़ावत आमने-सामने हो जाते है। जैसे-तैसे आपस में समझोता हो जाता है।
और जब हीरा खाण्डा ले आती है तब उस पर मोड़ बांधती है। जयमती खाण्डे के साथ फेरे ले लेती है और खाण्डा वापस भिजवा देती है। जब सवाई भोज खाण्डे पर मोड़ और मेंहदी लगी हुई देखते है तो नियाजी से कहते है कि भाई नीया टीका नारीयल अपने पास आया, तोरण हमने मारा फेरे अपने खाण्डे के साथ हुए तो यह लुगाई अपनी हुई कि रावजी की। नियाजी कहते हैं कि दादा भाई लुगाई तो अपनी ही हुई लेकिन अब क्या करना चाहिए। सवाई भोज नियाजी को समझाते हैं कि अभी तो जयमती को रावजी के साथ जाने दो, बाद में निपट लेंगे। फेरों के समय रानी जयमती रावजी के साथ अपना रुप बना कर बैठ जाती है और उस रुप के साथ रावजी का ब्याह हो जाता है। रावजी
अपनी रानी जयमती को लेकर रवाना
होते हैं। जिस रथ में रानी जयमती
हीरा के साथ होती है उस रथ में गाड़ीवान
रथ को दौड़ाता हुआ आगे ले जाता
है। बगड़ावत भी पीछे-पीछे आ रहे
होते हैं। जयमती हीरा से कहती कि
में रावजी के साथ नहीं जाना चाहती
और गोठां का रास्ता आने से पहले
कोई युक्ति लगाते हैं कि सवाई भोज
से एक बार मुलाकात हो जाए।
जिस जगह पर दो रास्ते फटते है एक राण की ओर, दूसरा गोठांंं की ओर जाता है, वहां हीरा अपने चमत्कार से शेर बनकर उस गाड़ीवान को डरा देती है और वो बैल के पैरों में गिर जाता है और चिल्लाता है, "नाहर-नाहर'। यह शोर सुनकर पीछे आ रहे बगड़ावत अपने घोड़े को दौड़ा कर आगे पहुंचते हैं। नियाजी पूछते है भाभीजी कहां है नाहर? नियाजी जयमती को पहली बार भाभी कहकर पुकारते है। रानी जयमती कहती है की नाहर-वाहर कुछ भी नहीं है। मुझे आप से बात करनी थी। मैंने सवाई भोज को अपना पति माना है। उनकी तलवार के साथ फैरे लिये हैं। मैं रावजी के यहां एक पल भी नहीं रह सकती। आप मुझे अपने साथ ले चलिये और जयमती सवाई भोज और नियाजी के सामने रोने लगती है और कहती है कि मैंने तो लगन (टीका) भी आपके यहां भेजा था। इस बूढे रावजी के साथ मैं नहीं रहूंगी। आप मुझे अपने साथ ले चलिये। नियाजी कहते हैं कि हमें थोड़ा समय दीजिये। फिर सवाई भोज जयमती को वचन देते हैं और कहते हैं कि अभी तो तुम रावजी के महलों में जाओ और हम सब तैयारी कर तुम्हें ६ महीने बाद वहां से ले आयेगें।
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