देवनारायण फड़ परम्परा Devnarayan Phad Tradition देवनारायण का जन्म एवं मालवा की यात्रा देवनारायण जन्म इधर
सभी बगड़ावतों का नाश हो जाने पर
साडू माता हीरा दासी सहित मालासेरी
की डूंगरी पर रह रही होती है।
एक दिन अचानक वहाँ पर नापा ग्वाल आता
है और सा माता को ७ बीसी राजकुमारों
के भी मारे जाने का समाचार देता
है और कहता है कि सा माता
यहां से मालवा अपने पीहर वापस
चलो। कहीं राजा रावजी यहां पर चढ़ाई
ना कर दे। लेकिन सा माता जाने से
मना कर देती है। जब
एक दिन सा माता की काली घोड़ी के
बछेरा पैदा होता हैं, तब सा माता
को भगवान की कही बात याद आती
है कि काली घोड़ी के एक बछेरा होगा
वो नीलागर घोड़ा होगा उसके बाद
मैं आ
वहां से सा माता हीरा दासी और नापा ग्वाल गोठांंं आते हैं। गांव में आते ही घर-घर में घी के दिये जल जाते हैं और सुबह जब गांव भर में बालक के जन्म लेने की खबर होती है, नाई आता हैं घर-घर में बन्धनवाल बांधी जाती हैं। भगवान के जन्म लेने से घर-घर में खुशी ही खुशी हो जाती हैं। साडू माता ब्राह्मण को बुलवाती है बच्चे का नामकरण संस्कार होता है। भगवान ने कमल के फूल में अवतार लिया है, इसलिए ब्राह्मण उनका नाम देवनारायण रखते हैं। सा माता ब्राह्मण को सोने की मोहरे, कपड़े देती है, भोजन कराती है, मंगल गीत गाये जाते हैं। सूर्य पूजन का काम होने के बाद गांव की सभी महिलाएं सा माता को बधाई देने आती हैं। गांव भर में लोगों का मुंह मीठा कराया जाता है कि साडू माता की झोली में नारायण ने अवतार लिया है।
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