देवनारायण फड़ परम्परा Devnarayan Phad Tradition देवनारायण का जन्म एवं मालवा की यात्रा देवनारायण का एवं नाग कन्या से विवाह गढ
गाजणा के बाहर देवनारायण राक्षसों
को मारना शुरु करते हैं। एक को मारे
दो हो जाऐं, दो मारे चार हो जाऐं।
राक्षसों के खून की बूंदें जमीन पर
गिरते ही नये राक्षस पैदा हो जाते।
ये देखकर देवनारायण अपने दायें पांव
से ६४ जोगणीयां और ५२ भैरुओं को
बाहर निकालकर उन्हें आदेश देते
हैं कि इन राक्षसों के खून की एक भी बूंद
जमीन पर नहीं गिरनी चाहिये और
अब भगवान राक्षसों का संहार करना
शुरु करते हैं। सभी जोगणियां और
भैरु जितना भी खून होता है सब चट
कर जाते हैं। इस तरह सारे राक्षस
मारे जाते हैं। अन्त में दो राक्षस बचते
हैं। गज दन्त और नीम दन्त जो साडू माता
की घोड़ी लेकर गढ़ गाजणा की खाई में
कूद जाते हैं और पाताल लोक में छुप
जाते हैं। भगवान देवनारायण भी राक्षसों के पीछे-पीछे पाताल लोक में कूदःते हैं। पाताल लोक में पृथ्वी को अपने शीश पर धारण करने वाले राजा शेष नाग आराम कर रहे हैं। भगवान के घोड़े के टापों की आवाज सुनकर शेष नाग उठते हैं। देवनारायण उनसे पूछते हैं कि दो राक्षस यहां आये हैं ?ंगा। शेष नाग कहते हैं, हां आये हैं। नारायण कहते हैं उन्हें मेरे हवाले कर दो। शेष नाग कहते हैं भगवान मेरे एक कुंवारी नाग कन्या है उसके साथ विवाह करों तो मैं राक्षसों का पता बता और फिर नारायण नाग कन्या के साथ विवाह कर लेते हैं। पहला फेरा करके चंवरी से उठ कर फटकार मारते हैं और सेली बनाकर जोगी भोपा को दे देते हैं। जिसे काली डोरी के रुप में देवनारायण के फड़ बाचने वाले भोपे अपने गले में धारण किये रहते हैं। नाग कन्या से विवाह हो जाने के बाद शेष नाग देवनारायण को गढ़ गाजणा का रास्ता बता देते हैं। गढ़ गाजणा पहुंचकर देवनारायण दैत्यराज पर हमला करते हैं। देवनारायण से डर कर दैत्यराज के खास राक्षस गज दन्त और नीम दन्त दोनों भगवान के पांव में पड़ जाते हैं और कहते हैं कि धार के किवाड़ हम वापस दे देगें और ये सा माता की काली घोड़ी भी आपको वापस दे देतें हैं। आप हमारे राजा की क्वारी कन्या चीमटीं बाई (दैत्य कन्या) से विवाह कर लो। भगवान दूसरा विवाह चिमटीं बाई से करते हैं और दूसरा फेरा कर चवंरी से उठ फटकार मारते हैं और लकड़ी बना कर जोगी भोपा को दे देते हैं जो देवनारायण की फड़ का परिचत देते वक्त भोपा दृष्य दिखाने के काम में लेता है।
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