देवनारायण फड़ परम्परा Devnarayan Phad Tradition देवनारायण का जन्म एवं मालवा की यात्रा देवनारायण एवं सोखिया पीर {{ɱn जी को साथ लेकर देवनारायण धार नगरी से अपने डेरे हटाकर रवाना होते हैं। धार से चलने के बाद आगे आकर वे लोग सोनीयाना के बीहड़ (जंगल) में आकर विश्राम करते हैं। भगवान देवनारायण तो पांच पहर की नींद में सो जाते हैं। सोनियाना के जंगल में शिव-पार्वती बैठे होते हैं। पार्वती जी शिवजी से पूछती है भगवान ये कौन है। शिवजी बताते हैं ये विष्णु अवतार देवनारायण हैं, तो पार्वती कहती है कि अगर ये स्वयं भगवान के अवतार हैं तो मैं इनकी परीक्षा लेती हूं।
अब गायों को और काफिले के सारे इन्सानों को पानी की प्यास लगती है। सभी लोग पानी के लिये तड़पने लगते हैं। गायें बल्ड़ाने (चिल्लाने) लगती हैं तो नापा ग्वाल और अन्य ग्वालें आसपास पानी का पता करते हैं। उन्हें १२-१२ कोस दूर तक कहीं भी पानी नहीं मिलता हैं। परेशान होकर नापाजी भगवान देवनारायण को जाकर उठाते हैं। कहते हैं नींद से जागो भगवान, पानी के बिना गायें और सब इन्सान मरे जा रहे हैं। देवनारायण गायों के प्यासी मरने की बात सुन नींद से जागते हैं और भैरुजी को आदेश देते हैं कि भैरु आसपास के जंगल में कौनसा पेड़ सबसे हरा है। भैरुजी पता लगाकर बताते हैं। भगवान देवधा नाम की जगह में एक पेड़ है जिस पर बगुले बैठे हुए हैं और वो हराभरा हैं। देवनारायण उस पेड़ के नीचे आकर अपने भाले से पाताल में मारते हैं, देवनारायण का भाला वहां छुपे हुए सोखिया पीर को जाकर लगता है। पहले तो खून बाहर आता है, फिर पानी का फव्वारा फूट पड़ता हैं। नापा ग्वाल पहले गायों को पानी पिलाते हैं और बाद में काफिले के सभी लोग अपनी-अपनी प्यास बुझाते हैं।
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