देवनारायण फड़ परम्परा Devnarayan Phad Tradition देवनारायण के कारनामें देवनारायण का दीयाजी के मुँह के दांत तोड़ना देवनारायण दियाजी के सामने आकर अपने भाले से दियाजी के मुंह पर प्रहार करते है जिससे दियाजी के दांत टूट जाते हैं और घोड़ी से गिर पड़ते हैं। वहां देवनारायण दियाजी से बुंली घोड़ी ले लेते हैं और दियाजी से कहते हैं कि मैं तुझे अभी नहीं मार्रूंगा, तुझे तो मैं राताकोट की लड़ाई में मार्रूंगा। जा अभी तुझे छोड़ता हूं। देवनारायण और छोछू भाट बुंली घोड़ी को लेकर अपने गांव की ओर प्रस्थान करते हैं।
देवनारायण एवं उत्तम कंवर का युद्ध | Download and View Animation दियाजी का बेटा उत्तम कंवर शिकार खेलने गया होता है। जब शिकार खेलकर वापस लौटता है तो महलों में आकर उसे पता चलता है कि पिताजी बुंली घोड़ी को लेकर भाट के साथ टिमक्या तालाब की ओर गये हैं। कहीं
दियाजी के साथ धोखा न हो जायें
इसलिए उत्तम कंवर अपने घोड़े पर सवार
होकर तालाब की ओर आते हैं। उसे अपने पिताजी मिलते हैं और सारी बात बताते हैं उत्तम कंवर देवनारायण का पीछा करता है। उत्तम कंवर सांखली घाटी पर आकर देवनारायण का रास्ता रोक लेता है और दोनों में युद्ध होता है और इस युद्ध में उत्तम कंवर मारा जाता है।
बुंली घोड़ी वापस खैड़ा चौसला में देवनारायण और भाट जी बुंली घोड़ी को लेकर खेड़ा चौसला में आते हैं। साडू माता को खबर होती है, सा माता बुंली घोड़ी की आरती करती है और पीपलदे देवनारायण की आरती करती है। जब देवनारायण बुंली घोड़ी को कैद से छुड़ा लाते हैं तब साडू माता उन्हें राज का मालिक बना देती है लेकिन न्याय करने का अधिकार मेहन्दूजी को ही देती है।
देव नारायण और रायमल पटेल एक बार खेड़ा चौसला में चारे की कमी हो जाती गई। देवनारायण का नीलागर घोड़ा चांपानेरी के पटेल रायमल के खेतों में घुस कर घास खा गया। पटेल ने वहीं नीलागर घोड़े को कैद कर बांध लिया। जब देवनारायण को इस बारे में पता चला तो उन्होंने पटेल के यहां जाकर अपने घोड़े को छुड़ाया और फिर रायमल पटेल को कैद कर अपने दरबार में बुलवाया। रायमल की गलती की सजा भांगी जी ने सुनाई कि पटेल को नीलागर घोड़े के पैरों में गुड़बेल के साथ बांध दो फिर जैसे घोड़े को ठोकर लगेगी पटेल भी साथ-साथ इधर से उधर गिरता फिरेगा।
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