देवनारायण फड़ परम्परा  Devnarayan Phad Tradition

खैड़ा चौसला में भूणाजी की वापसी

भूणाजी पुष्कर में


पातु कलाली के यहां से भूणाजी भाट को लेकर सीधे पुष्कर मेले में चले जाते हैं। रावजी भूणाजी के साथ दियाजी, टोड़ा का सोलंकी, बन्ना चारण और बहुत सी सेना को भी पुष्कर मेले में भेजते हैं। भूणाजी पुष्कर में आकर गऊ घाट पर ठहरते हैं। वहां वो तराजू में अपने वजन के बराबर सोने की मोहरे तोलकर ब्राह्मणों को दान करते हैं और ब्राह्मणों को भोजन भी करवाते हैं।

गऊ घाट पर छोछू भाट भूणाजी से मेला देखने की इजाजत लेकर मेला देखने निकल जाते हैं। वहां उन्हें ब्रह्माजी के मन्दिर में जाते समय पीलोदा का चारण (भाट) मिल जाता है। उसके साथ पीलोदा के कुम्हार भी होते हैं। यहां छोछू भाट पीलोदा के चारण को भला बुरा कहकर भड़काता है कि तुम्हारे मालिक पुष्कर मेले में इसलिये नहीं आये की वो भूणाजी से डर गये हैं। पीलोदा का चारण वहां से सीधा पीलोदा आता है और दरबार में आकर सारी बातें बताता है और चारण पीलोदा ठाकुर को युद्ध के लिये भड़काता है। पीलोदा ठाकुर कुमारो जोध सिंह और जग सिंह को भूणाजी से युद्ध करने के लिये पुष्कर भेज देते हैं। उनके साथ बगड़ावतों के जय मंगला हाथी, गज मंगला हाथी और कश्मीरी तम्बू और उनकी लूटी हुई चीजें भी होती है। पुष्कर में जोध सिंह और जग सिंह अपनी फौजों के साथ युद्ध के लिए डट जाते हैं।

उधर छोछू भाट गऊ घाट पर आकर भूणाजी को भड़काता है और कहता है महाराज पीलोदा के कुमार आपसे लड़ने के लिये आये हैं। आपके बाप-दादा के हाथी भी साथ लाये हैं। भूणाजी कहते हैं कि भाट जी पुष्कर तीर्थ है कोई लड़ाई का मैदान नहीं है। यहां बहुत से साधु संत महात्मा आये हुए हैं। यहां युद्ध नहीं कर सकते हैं। तो भाट कहता है कि भूणाजी अपने दोनों हाथियों को तो इन बैरियों से छुड़ा लेते हैं।

छोछू भाट कहता है कि भूणाजी दियाजी, मीरजी और टोड़ा का सोलंकी को भेजकर जग सिंह और जोध सिंह को समझाकर हमारे हाथी छुड़वा लीजिए। अगर वो मना करें तो युद्ध करना पड़ेगा। दियाजी, मीर और सोलंकी जग सिंह, जोध सिंह के पास जाकर समझाते हैं कि भूणाजी को दोनों हाथी और बगड़ावतों का जो भी सामान आप लूटकर ले गए थे वो सोंप दो नहीं तो जुल्म हो जायेगा। जोध सिंह जवाब देते हैं कि भूणाजी में दम हो तो हमसे युद्ध करके छुड़ा ले जाये। नहीं तो बहारावत की बोर घोड़ी भी हमारे को सोंप दे। ये बात सुन कर दियाजी वापस आकर भूणाजी को सारी बात बताते हैं।

यह सब सुनकर भूणाजी अपने घोड़े पर सवार होकर युद्ध का डंका बजाने का हुक्म देते हैं और जोध सिंह व जग सिहं पर चड़ाई कर देते हैं। घमासान युद्ध होता है। वहां पिलोदा के राजकुमार जोध सिंह और जग सिहं मारे जाते हैं। पीलोदा की बाकि बची सेना वहां से वापस पिलोदा भाग जाती है।

 

 
 

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