देवनारायण फड़ परम्परा Devnarayan Phad Tradition खैड़ा चौसला में भूणाजी की वापसी भूणाजी और सातल-पातल के कटे हुए शीश महलों
से रानी सांखली भूणाजी को पत्र लिखकर
बुलवाती है। भूणाजी रानी जी के पास
जाते हैं और पूछते है माँजी कैसे
याद किया ?
माँजी कहती है कि दोनों बाप बेटों
में क्या लड़ाई हो रही है ?ं।
ं
भूणाजी सारी बात बताते हैं कि पिलोदा
पर देव, मेदू ने चढ़ाई कर दी है।
रानी ये बात सुनकर भूणाजी से कहती
है बेटा भोजन कर। माताजी भूणाजी
को भोजन कराती है और पंखा झुलाती
है और कहती है बेटा यदि तू मेरे
को देव, मेदू का सिर काटकर ला देवे
तो मैं तेरा दो-दो ब्याव करा
रानी पद्मनी से तेरी शादी करा
और सवा कोस पैदल चलकर सामने
आकर तेरी आरती उतार्रूं। यहां का राजपाट
सब तुझे सोंप दूं। रानी सांखली कहती
है कि सेना साथ में लेकर जाओ और
देव, मेदू के सिर काट कर लाओ। भूणाजी अच्छे जवानों और अच्छे घोड़ो को छांटकर १७ हजार की फौज तैयार करके महल में आकर रानी जी से कहते हैं कि मुझेे दरबार की मोहर लगाकर कागज लिखकर दो कि मेरे सारे गुनाह माफ हो तो मैं जाता हूं। रानी रावजी को बुलाकर कहती है कि भूणा देव, मेदू का सिर काटने जा रहा है, इसे दरबार की मोहर लगाकर पत्र लिखकर दे कि इसके सारे गुनाह माफ है। रावजी कागज पर लिखकर भूणाजी के हवाले कर देते हैं। भूणाजी सेना लेकर निकलते हैं और सोचते हैं कि रानी ने मेरे भाईयों के सिर मांगे हैं क्यों न रानी को उसी के भाइयों के सिर काटकर दे दूं ?ंगली अपना बैर भी निकल जायेगा। सातल-पातल ने जब मेरी काटी थी तब कहा था कि बड़ा होकर अगर अंगुली का बैर ले सके तो ले लेना। भूणाजी
की सवारी मारवाड़ में चान्दारुण की
ओर चल पड़ती है। चान्दारुण मारवाड़
की ओर जाते समय रास्ते में ग्वालें
गायें चरा रहे होते हैं। भूणाजी ग्वालों
से पूछते हैं कि ये गायें किसकी है ?
एक ग्वाला कहता है चान्दारुण के राजा
सातल और पातल सांखला की हैं। भूणाजी
कहते हैं मैं उनका भाणजा हूं और वो
मेरे मामाजी है। भूणाजी पत्र लिखकर
मामाजी को भेजते है, मैं भूणा आपने
जो मेरी उगली काटी उसका बैर लेने
आया हूं। मिलने के लिये सामने आ
जाओ । ग्वाले पत्र ले जाकर मामाजी को दरबार में सोपतें हैं और कहते हैं कि भूणाजी चान्दारुण गांव के बाहर बीहड़ में मामाजी का इन्तजार कर रहे हैं। मामा सातल-पातल पत्र पढ़ते हैं और दोनों भाई सलाह कर अपने हथियार साथ लेकर भूणा से मिलने आते हैं। भूणा से कहते हैं भाणजे राम-राम। आज तुझे हमारी याद कैसे आई है ? भूणाजी कहते हैं जब में ६ महीने का था तब आपने मेरी अंगुली काटी थी, उसी का बैर लेने आया हूं। मामा कहते हैं भाणजे रहने दे। तू हमारी बहन का एक ही बेटा है, क्यों लड़ता है ? भूणाजी कहते हैं कि बिना बैर लिये तो मैं पीछे हटूंगा नहीं । सातल-पातल दोनों भाई मिलकर भूणा पर वार करते हैं मगर भूणाजी उनके वार से हर बार बच जाते हैं और कहते हैं कि मामाजी एक बार मेरे को भी तो वार करने दो। इतना कहते ही अपनी बोर घोड़ी को हाथी के होदे पर चढ़ा देतें हैं और दोनों भाईयों को एक ही वार में खत्म कर देतें हैं। सातल और पातल को मारकर उनके सिर काट कर, उनकी चोटी को पकड़ कर सीधे पुष्कर आते हैं वहां अपने खाण्डे को पानी में धोते हैं और चान्दारुण से लाई गायों को दान कर देते हैं। वहां से राण लौट आते हैं और पत्र लिखकर सांडीवान को आगे भेज देते हैं कि रानी सा आरती लेकर सामने आओ मैं दोनों भाईयों के सिर काट कर लाया हूं। आरती करने सामने पधारों। रानी समाचार पढ़कर बहुत खुश होती है और आरती लेकर भूणाजी के सामने आती है। भूणाजी की आरती करती है। भूणाजी दोनों भाईयों के कटे सिर चोटी से पकड़ कर आरती की थाली में रख देते हैं। रानी सोचती है कि इन बैरियों का मुंह नहीं देखूगीं और रावजी को कहूंगी के गेंद की जगह देव, मेदू जी के सिर से खेलों। तब उनके मुंह देखूंगीं। रानी दोनों भाईयों के कटे सिर लेकर महल में आती है। उसे एक दासी आकर बताती है रानी जी ये देव और मेदू के सिर नहीं है, ये सिर तो आपके भाई सातल और पातल के हैं। ये बात सुनकर रानी दासी को डाटती है और कांच (आईना) मंगवाती है। और कांच के सामने दोनों कटे हुवे सिर रखकर देखती है। जब उसे पता चलता है ये सिर तो मेरे भाई सातल और पातल के हैं। तब कोप भवन में जाकर विलाप करती है और भूणाजी को कोसती है कि क्यों मैंने सांप को दूध पिला कर बड़ा किया ? इसने अपने मामा को ही मार दिया, इसको दया नहीं आयी।
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